
Chandel period stepwells: बुंदेलखंड का नाम आते ही सूखा, भुखमरी और पलायन जैसे शब्द जहन में आते हैं लेकिन यहां स्थित चंदेल कालीन बावड़ियां अलग कहानी कहती हैं. चंदेल कालीन समय में बनाई गई संरचनाओं को देखकर लगता है कि उस समय जो संरचनाएं बनाई गई थी उनको बनाने के लिए जिस प्रकार से आर्किटेक्ट का प्रयोग किया गया होगा वह बहुत ही आधुनिक होगा... क्योंकि जिस प्रकार से छतरपुर जिले के पानी की समस्या को लेकर लोग परेशान हो रहे हैं लेकिन वहीं चंदेल कालीन बावड़ियों में आज भी पानी भरा हुआ है. हालांकि इस बावड़ियां मैं सिर्फ कुछ सुधार की जरूरत है. लोगों की मांग है कि सरकार इसे सुरक्षित करने की दिशा में कदम उठाए.
गांव के लोग बताते हैं कि जब सबसे ज्यादा सूखा पड़ा था, उस समय इन बावड़ियों ने हम गांव लोगों की प्यास बुझाई थी. छतरपुर जिला प्रशासन के द्वारा कुछ बावड़ियां को सुरक्षित किया जा रहा है लेकिन अभी भी बहुत सारे चंदेल कालीन बावड़ियां ऐसी हैं जिनको सुरक्षित करने की जरूरत है.
लोगों का मानना है कि जो शेष बची बावड़िया हैं इनको भी सरकार को सुरक्षित और संरक्षित करने की जरूरत है. क्योंकि जब पूरे गांव का पानी सूख जाता है तो इन बावड़ियों से ही गांव के लोग अपनी प्यास बुझाते हैं.
66 बावड़ियां चिन्हित
छतरपुर जिला प्रशासन ने 66 बावड़ियों को चिन्हित कर इसे संरक्षित करने का काम कर रही है. चंदेलकालीन बावड़ियों को पुनर्जीवित करने में मध्य प्रदेश का पंचायत और ग्रामीण विकास विभाग, जल संरक्षण पर काम करने वाली सामाजिक संस्थाएं और जनता एक साथ मिलकर काम करेगी. बता दें कि जल संरक्षण के लिए चंदेल राजाओं ने मध्य प्रदेश के जिलों में बावड़ियां बनवाए थे, जिससे बुंदेलखंड में पानी की कमी न हो सके. वहीं अब मध्य प्रदेश सरकार ने चंदेल कालीन राजाओं द्वारा निर्माण किए गए इन संरचनाओं और धरोहरों को बचाने के लिए छतरपुर जिले की 66 बावड़ियां और तालाबों को चिन्हित कर काम कर रही है.
शेष बावड़ियों को संरक्षित करने की मांग
चंदेल शासन ने इन बावड़ियों का निर्माण करवाया था. जो बची हुई बावड़ियां इनको और सुरक्षित करने की लोग मांग कर रहे हैं, जिससे पानी का स्रोत खतम ना हो. बता दें कि बुंदेलखंड में पानी का लगातार स्तर नीचे जा रहा है, लेकिन आज भी चंदेल कालीन बावड़ियों में पानी का स्तर अच्छा बना हुआ है.
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