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MP में माननीयों की मेहरबानी से खुल गए कई कॉलेज ! 119 में 100 से कम स्टूडेंट्स, 14 में तो 10 भी नहीं संख्या

एमपी में विधायकों/सांसदों के दबाव में कई कॉलेज तो खुल गए लेकिन उनमें से कई में पढ़ाई के नाम पर शायद ही कुछ हो पा रहा है। हालांकि ऐसे कई कॉलेजों में स्टाफ भी हैं लेकिन स्टूडेंट्स का ही अता-पता नहीं है.

MP में माननीयों की मेहरबानी से खुल गए कई कॉलेज ! 119 में 100 से कम स्टूडेंट्स, 14 में तो 10 भी नहीं संख्या

Colleges of Madhya Pradesh: मध्यप्रदेश में टूरिज्म का प्रचार करने के लिए अक्सर कहा जाता है- मध्यप्रदेश अजब-गजब है...लेकिन आए दिन ऐसी खबरें आ जाती हैं जो इसके ऐसा होने पर मुहर लगा देती है...ताजा मामला राज्य के सरकारी कॉलेजों का है. प्रदेश में 571 सरकारी कॉलेज हैं लेकिन इसमें से 119 कॉलेज में छात्रों की संख्या 100 से भी कम है. यही नहीं कई कॉलेज तो ऐसे हैं जहां छात्रों के ज्यादा स्टॉफ हैं. कई कॉलेज तो ऐसे हैं जहा आप जाएंगे को तो आपको कुल्हाड़ी-फावड़ा-गैंती मिल जाएंगे...दूसरे शब्दों में कहें तो यहां सिलेबस नहीं बल्कि सन्नाटे की पढ़ाई होती है...हम ऐसा क्यों कह रहे हैं वो इस रिपोर्ट से आपको पता चल जाएगा. 

दरअसल राज्य में विधायकों-सांसदों की सिफारिशों को ध्यान में रखते हुए बीते एक साल में राज्य सरकार ने 12 नए कॉलेज खोले हैं. लेकिन हालत ये है कि इन कॉलेज में छात्र आते नहीं और यहां या तो स्टॉफ की संख्या ज्यादा है या फिर वो भी नहीं आते और कॉलेज की इमारते सूनीं पड़ी रहती है. हालत क्या है ये इस आंकड़े से समझ सकते हैं.  

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माननीयों की सिफारिश पर खुले हैं कॉलेज

बता दें कि इनमें से अधिकांश कॉलेज सत्ताधारी दल के माननीयों की सिफारिश पर खुले हैं. NDTV ने इनमें से कई कॉलेज में जाकर ग्राउंड रियलिटी को भी समझने की कोशिश की. सबसे पहले हम पहुंचे राजधानी भोपाल से सिर्फ 14 किलोमीटर दूर फंदा शासकीय महाविद्यालय में. नाम सुनकर लगा था कि अज्ञान का फंदा खुलेगा, पर यहां तो कॉलेज ही फंदे में फंसा मिला. जब हम कॉलेज में पहुंचे तो उसके कमरों में अजब-अजब 'नजारे' देखने को मिले. एक कमरे में हमें  कुल्हाड़ी, फावड़ा, गैंती मिला तो ऐसा लगा जैसे यहां  पढ़ाई नहीं, खुदाई होती है. जबकि कागजों में ये फर्स्ट ईयर के स्टूडेंट्स का क्लासरुम है. 

कॉलेज के एक कमरे में हमें कुल्हाड़ी-फावड़ा-गैंती रखा मिला...किताबे कहीं नहीं मिलीं

कॉलेज के एक कमरे में हमें कुल्हाड़ी-फावड़ा-गैंती रखा मिला...किताबे कहीं नहीं मिलीं

विधायक ने भी माना- स्टूडेंट्स नहीं आ रहे

इसी तरह दूसरे कमरे में घुसते ही हमें लगा कि बॉडीबिल्डिंग का कोई नया गुप्त मिशन चल रहा है. डम्बल, ट्रेडमिल, कुर्सियां सब मिलीं. हालांकि डम्बल, ट्रेडमिल, कुर्सियां देखकर एहसास हुआ कि ये क्लासरुम ही है. आगे बढ़ने पर हमें पानी से भरी दो बाल्टियां मिलीं जो यहां टॉयलेट के इस्तेमाल के लिए रखी गई थीं. इमारत में ही गर्मी से बचने के लिए ग्रीन मेट की चादर टांगी गई है. इस कॉलेज की स्थिति देखकर जब हमने स्थानीय विधायक रामेश्वर शर्मा से बात की तो उन्होंने भी माना- ये सही बात हे कि बच्चे कॉलेज नहीं जाते हैं, दाखिला नहीं ले रहे हैं. लेकिन यदि वो आएंगे तो हम एक स्थाई इमारत की व्यवस्था कर देंगे. बता दें कि ये वही विधायक हैं जिनके प्रेशर में सरकार ने यहां ये कॉलेज खोला है. लगे हाथ आपको ये भी बता दें कि इस कॉलेज में कुल 17 छात्रों ने दाखिला ले रखा है लेकिन उनमें से अधिकांश यहां आते नहीं हैं. आश्चर्य ये है कि इन 17 विधार्थियों के लिए यहां सरकार ने 17 स्टॉफ रख रखे हैं. अब आपको प्रदेश में ऐसे ही कॉलेजों की सूची से भी रुबरु करा देते हैं. 

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 दरअसल रामेश्वर जी अकेले नहीं हैं, उनके जैसे प्रदेश में और 11 माननीय हैं जिन्होंने शिक्षा को लेकर इतना गंभीर दबाव बनाया कि कॉलेज तो खुल गए, लेकिन छात्र नहीं आए.कहीं एक बच्चा है, कहीं तीन, कहीं चार — कहीं कॉलेज को ‘मिनिमम स्टाफ - नो स्टूडेंट्स' पॉलिसी से चलाया जा रहा है. ये वो शिक्षा है जिसमें सिलेबस से ज़्यादा सन्नाटा पढ़ाया जाता है.

ये है कॉलजों का हाल: क्लास और जिम टू इन वन

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भोपाल के इस कॉलेज में जब हम गए तो वहां हमें दो स्टॉफ मिले. उनमें से एक थे योग क्लासेज में गेस्ट फैकल्टी अजय अनोखी और दूसरे थे कंप्यूटर ऑपरेटर राहुल कुमार. अजय अनोखी ने हमें बताया- मैं योग टीचर हूं बाकी जो प्रिंसिपल मैडम कहती हैं वो करता हूं. कुल 17 बच्चे हैं यहां और कुछ बच्चे आते हैं. राहुल कुमार का कहना है- मेरी तो अभी भर्ती हुई है. प्रिंसिपल मैडम के लिए लेटर बनाता हूं .आवक-जावा देखता हूं और मेल भी करता हूं. 

इसी तरह से सतना के रैगांव में भी हमें एक कॉलेज मिला. ये बीए-बीएससी का कोर्स कराता है. यहां कुल छात्रों की संख्या 16 है और उन्हें पढ़ाने के लिए यहां 15 स्टॉफ के साथ एक प्रभारी प्राचार्य भी तैनात हैं.कॉलेज की क्लास नहीं लगती, पर फैकल्टी की फीलिंग पक्की है.  कुल मिलाकर हमें पूरे प्रदेश में इन स्कूलों के रियलिटी टेस्ट में तो ऐसा ही लगा- छात्र कॉलेज नहीं जाते और फैकल्टी कॉलेज आकर सोचते हैं – कब आएगा छात्र ?
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