
NGT द्वारा गठित संयुक्त समिति की रिपोर्ट में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है कि जबलपुर में केवल 35% क्षेत्र ही सीवेज नेटवर्क से जुड़ा है. शेष 2.57 लाख घरों का गंदा पानी सीधे नालों से होकर नर्मदा में जा रहा है. शहर से हर दिन 174 MLD गंदा पानी निकलता है, जिसमें से सिर्फ 58.7 MLD का ही ट्रीटमेंट किया जा रहा है. यानी हर दिन करीब 115 MLD गंदा पानी बिना शुद्धिकरण के सीधा नर्मदा नदी में डाला जा रहा है.
नालों की सफाई बदहाल, पीने के पानी की गुणवत्ता पर भी संकट
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि शहर की स्टॉर्म वाटर ड्रेनेज व्यवस्था और नालों की सफाई बेहद खराब स्थिति में है. कई इलाकों में पीने के पानी में गंदगी और गुणवत्ता में कमी देखी गई है, जिससे जनस्वास्थ्य को खतरा है. रिपोर्ट ने नगर निगम की ओर से की गई व्यवस्थाओं की पोल खोल दी है.
समिति की सिफारिशें: बायोरिमेडिएशन, OCEMS और जवाबदेही की जरूरत
NGT की समिति ने सिफारिश की है कि सभी नालों की नियमित सफाई हो, बायोरिमेडिएशन तकनीक अपनाई जाए, ट्रीटमेंट प्लांट की पूरी क्षमता का उपयोग हो और पीने के पानी की गुणवत्ता BIS मानकों के अनुसार सुनिश्चित की जाए. इसके साथ ही गंदे पानी की रीयल टाइम निगरानी के लिए OCEMS (Online Continuous Effluent Monitoring System) सिस्टम लगाने पर भी जोर दिया गया है.
अब जवाबदेही की घड़ी: NGT की फटकार से हिल चुका प्रशासन
NGT की इस सख्ती के बाद जबलपुर नगर निगम और राज्य प्रशासन की जवाबदेही तय होनी तय है. करोड़ों खर्च के बावजूद अगर नर्मदा में गंदा पानी जा रहा है तो यह न सिर्फ पर्यावरणीय अपराध है, बल्कि आमजन के स्वास्थ्य के साथ भी खिलवाड़ है. अब देखना यह होगा कि प्रशासन अगली सुनवाई से पहले ठोस सुधारात्मक कदम उठाता है या नहीं.