NDTV की खबर सामने आने के बाद सतना के प्रधानमंत्री एक्सीलेंस कॉलेज में ग्रेस मार्क्स को लेकर चल रहा छात्रों का संघर्ष आखिरकार रंग लाया. कॉलेज प्रशासन, जो अब तक चुप्पी साधे हुए था, छात्रों की बात मानने को मजबूर हुआ और आश्वासन देकर भूख हड़ताल खत्म करवाई गई. छात्रों की आवाज न केवल परिसर तक सीमित रही बल्कि मीडिया में उठने के बाद प्रशासन को सक्रिय होना पड़ा.
भूख हड़ताल पर प्रशासन झुका
प्रधानमंत्री एक्सीलेंस कॉलेज, सतना में ग्रेस मार्क्स की मांग को लेकर छात्र कई दिनों से भूख हड़ताल पर बैठे थे. NDTV द्वारा खबर प्रसारित किए जाने के तुरंत बाद कॉलेज प्राचार्य हरकत में आए. उन्होंने आंदोलन कर रहे छात्रों से मुलाकात कर उचित कार्रवाई का भरोसा दिया और पानी पिलाकर हड़ताल समाप्त करवाई. कॉलेज की ओर से यह भी स्पष्ट किया गया कि पांच दिन के भीतर समाधान की दिशा में ठोस कदम उठाए जाएंगे.
SDM पहुंचे, दिया त्वरित कार्रवाई का भरोसा
हड़ताल स्थल पर रघुराज नगर के एसडीएम राहुल सिलड़िया पहुंचे और छात्रों को आश्वासन दिया कि उनकी वैध मांगों का त्वरित और न्यायसंगत समाधान किया जाएगा. इसके बाद कॉलेज प्राचार्य प्रो. एससी राय भी पहुंचे. उन्होंने कहा कि शिक्षा मंत्री को पत्र भेजा जाएगा और जिन छात्रों को सिर्फ 2–3 अंकों से फेल किया गया है, उनके परिणामों की समीक्षा का अवसर कॉलेज को मिलना चाहिए.
“यह सिर्फ अंकों का विवाद नहीं, भविष्य का सवाल”
ASAP सतना की जिला प्रभारी अवनी सिंह बैस ने साफ कहा कि 1, 2 या 3 अंकों से किसी विद्यार्थी को फेल करना छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ है. कई छात्र आगे की पढ़ाई के लिए प्रवेश ले चुके हैं और परिणाम न सुधरने पर उनका पूरा करियर प्रभावित हो सकता है. उन्होंने प्रशासन के आश्वासन का स्वागत किया, लेकिन यह भी जोड़ा कि आदेश जारी होने तक वे पूरी प्रक्रिया पर नज़र बनाए रखेंगी.
राजनीतिक समर्थन भी मिला
अनशन को समर्थन देने पहुंचे आम आदमी पार्टी सतना के पूर्व उपाध्यक्ष रोहित पाण्डेय ने कहा कि प्रशासन ने देर से सही, लेकिन उचित कदम उठाया है. उन्होंने यह भी कहा कि कॉलेज प्रबंधन की अब यह जिम्मेदारी है कि छात्रों का एक भी साल बर्बाद न हो. आश्वासन मिलने पर छात्रों ने हड़ताल तो खत्म कर दी, लेकिन अंतिम आदेश तक वे सतर्क रहेंगे.
समाधान की उम्मीद, सतर्कता जारी
कॉलेज प्रशासन के लिखित आश्वासन के बाद अनशन समाप्त हो गया है, हालांकि छात्रों ने साफ कहा कि जब तक आदेश जारी नहीं होता, वे स्थिति पर नजर रखेंगे. आंदोलन ने न सिर्फ कॉलेज प्रशासन को जगाया बल्कि यह भी साबित किया कि छात्रों की एकजुट आवाज़ और मीडिया की भूमिका बड़े बदलाव ला सकती है.