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बकाया वेतन के भुगतान में अड़ंगा लगा रहा था अधिकारी, अब HC ने सुनाया जेब से 14 साल का ब्याज भरने का आदेश

MP News : कोर्ट में दलील दी गई कि विभागीय अधिकारी पहले से भुगतान की गई राशि को छोड़कर शेष राशि का भुगतान कर सकते थे. इस सबके चलते याचिकाकर्ता को मिलने वाली राशि के साथ ब्याज भी जुड़ता चला गया. अदालत ने मामला समझने और दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद पशुपालन विभाग के संबंधित अधिकारी को फटकार लगाई.

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बकाया वेतन के भुगतान में अड़ंगा लगा रहा था अधिकारी, अब HC ने सुनाया जेब से 14 साल का ब्याज भरने का आदेश

Madhya Pradesh High Court News : मध्य प्रदेश की जबलपुर हाईकोर्ट (Jabalpur High Court) ने एक सरकारी अधिकारी का बकाया वेतन 14 साल तक अटकाए रखने के मामले में सख्त रुख अपनाया है. जस्टिस विवेक अग्रवाल (Justice Vivek Agrawal) की एकल पीठ ने पशुपालन विभाग (Animal Husbandry Department) के संबंधित अधिकारी को निर्देश दिए हैं कि वो 30 दिन के भीतर याचिकाकर्ता के बकाया वेतन पर 14 साल की अवधि में चढ़े ब्याज की रकम अपनी जेब से चुकाए.

क्या है मामला?

याचिकाकर्ता जबलपुर निवासी चमनलाल दोहरे ने विभाग के अधिकारियों के खिलाफ यह याचिका लगाई थी. जिसमें उसकी ओर से अधिवक्ता अच्युत गोविंदम तिवारी ने पक्ष रखा. दलील दी गई कि याचिकाकर्ता पशुपालन विभाग से असिस्टेंट वेटरनरी फील्ड ऑफिसर (Assistant Veterinary Field Officer) के पद से सेवानिवृत्त हो चुका है.

कोर्ट में बताया गया कि याचिकाकर्ता वेतन निर्धारण के आधार पर अप्रैल, 2009 से दिसंबर, 2013 तक के बकाया वेतन का हकदार है. इस सिलसिले में आवेदन प्रस्तुत करने के बाद विभागीय अधिकारियों ने बकाया भुगतान की बात को तो स्वीकार कर लिया था, लेकिन मनमाने ढ़ंग से बकाया भुगतान सुनिश्चित करने की दिशा में बधाएं पैदा कर रहे थे.

अधिकारी द्वारा याचिकाकर्ता को पूर्व में त्रुटिपूर्ण तरीके से भुगतान हुई राशि वापस करने के आधार पर मनमाने तर्क दिए जाते रहे. इससे याचिकाकर्ता परेशान हो गया था.

नोटिस पर मिला अटपटा जवाब

सुनवाई के दौरान जारी किए गये नोटिस के सिलसिले में विभाग की ओर से प्रस्तुत जवाब में कहा गया कि प्राधिकारी ने याचिकाकर्ता के पक्ष में संशोधित पीपीओ और ग्रेच्युटी राशि जारी की, लेकिन विभागीय अधिकारी ने बकाया वेतन का भुगतान नहीं किया. ऐसा इसलिए क्योंकि याचिकाकर्ता के खाते में 43,432 रुपये की राशि गलती से जमा हो गई थी. यह राशि वास्तव में किसी और अधिकारी को भुगतान की जानी थी. दलील दी गई कि जैसे ही याचिकाकर्ता को गलती से भुगतान की गई यह राशि वापस कर दी जाएगी, वे वेतन निर्धारण के बकाया का भुगतान कर देंगे. इस जवाब को याचिका कर्ता की ओर से गूढ़ और मनमाना बताया गया.

कोर्ट में दलील दी गई कि विभागीय अधिकारी पहले से भुगतान की गई राशि को छोड़कर शेष राशि का भुगतान कर सकते थे. इस सबके चलते याचिकाकर्ता को मिलने वाली राशि के साथ ब्याज भी जुड़ता चला गया. अदालत ने मामला समझने और दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद पशुपालन विभाग के संबंधित अधिकारी को फटकार लगाई. साथ ही जेब से ब्याज भुगतान के निर्देश दे दिए.

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