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NDTV Impact: बुक स्टोर्स पर छापेमारी, हजारों किताबें फर्जी, प्रशासन का सराहनीय काम, पैरेंट्स चुकाएंगे सही दाम

Jabalpur News: जिन बुक सेलर्स के यहां छापे मारे गए वहां ड्राइंग बुक, ड्राइंग कॉपी और क्राॅफ्ट की सामग्री का भंडार मिला. स्कूल (School) के द्वारा क्राफ्ट के पीरियड में इस तरीके के प्रोजेक्ट वर्क (Project Work) दिए जा रहे थे, जो कहीं अन्य मिलना संभव ही नहीं था.जिला प्रशासन ने पाया कि छोटे बच्चों (School Students) को भी 10 से 12 किताबें और 200-300 पेज की कॉपी और रजिस्टरों को खरीदवाया जा रहा था, बड़ी क्लास में तो 20 से 22 कॉपियों की लिस्ट दी जा रही है.

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NDTV Impact: बुक स्टोर्स पर छापेमारी, हजारों किताबें फर्जी, प्रशासन का सराहनीय काम, पैरेंट्स चुकाएंगे सही दाम

Jabalpur News: NDTV की मुहिम (NDTV Campaign) इन दिनों सुर्खियों में हैं. मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल सहित संस्कारधानी जबलपुर में भी इसके सार्थक परिणाम देखने को मिल रहे हैं. जबलपुर में बुक स्टोर्स (Book Store) और स्कूलों (Jabalpur School) के बीच चल रहे गठजोड़ को तोड़ने के लिए जिला कलेक्टर (Jabalpur Collector) दीपक सक्सेना के नेतृत्व में पांच एसडीएम (SDM) ने बुक स्टोर्स पर छापा (Raid on Book Shop) मारा और रात तक कार्रवाई करते रहे. अचानक हुई छापेमारी (Raid) से बुक स्टोर्स के मालिक भौचक्के रह गए और अपनी बड़ी पहुंच का उपयोग करने लगे, लेकिन अभिभाविकों को उचित मूल्य पर किताबें दिलाने के लिए प्रतिबद्ध जिला प्रशासन (District Administration) के अधिकारी बिना किसी भी दबाव में आए कार्रवाई जारी रखते हुए दिखे.

NDTV Campaign: जबलपुर में बुक स्टोर पर छापामार कार्रवाई करते हुए अधिकारी

NDTV Campaign: जबलपुर में बुक स्टोर पर छापामार कार्रवाई करते हुए अधिकारी

फर्जी किताबों का मिला जखीरा

छापामार कार्रवाई करने पहुंची टीम उस समय चकित रह गई जब उसे हजारों की संख्या में बिना आईएसबीएन (ISBN) यानी इंटरनेशनल स्टैंडर्ड बुक नंबर (International Standard Book Number) की किताबें मिलीं या फिर किताबों में जो आईएसबीएन नंबर प्रिंट किया गया था वह गलत था.

जबलपुर कलेक्टर दीपक सक्सेना ने एनडीटीवी को बताया कि उन्हें जब शिकायतें मिलनी शुरू हुईं  तो जांच-पड़ताल शुरू की गई जिसमें पता चला कि डुप्लीकेट बुक्स (Duplicate Books) भी बेची जा रही है, साथ ही एक ही बुक (Book Price) में अलग-अलग रेट (Rate) प्रिंट किए गए हैं.

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एक स्कूल एक ही सिलेबस और एक ही क्लास की किताबों के मूल्य में अंतर

एसडीएम (SDM) पंकज श्रीवास्तव जब संगम बुक डिपो पहुंचे तो उन्हें आश्चर्य हुआ कि एक ही क्लास की बुक अलग-अलग दामों में बेची जा रही है इतना ही नहीं कुछ किताबों में तो ₹100 से भी ज्यादा का फर्क देखने में आया. एसडीएम द्वारा की जा रही इस जांच में लगभग 24 हजार से ज्यादा किताबों को जप्त किया गया है, इनमें प्रकाशक की जानकारी को जब वेबसाइट से मिलाया गया तो वह मैच नहीं कर रही थीं, अनेक किताबों में तो जानकारी अधूरी है या थी ही नहीं.

अब पब्लिशर्स के ऊपर नकेल कसेगा जिला प्रशासन

जबलपुर जिला प्रशासन नें बुक सेलर्स पर कार्रवाई करने के बाद अब उन पब्लिशर्स (Publishers) पर भी नकेल कसने की तैयारी कर ली है, जिन्होंने बिना आईएसबीएन की किताबें छापी हैं या जिनमें पब्लिशर्स के नाम, पता और वेबसाइट गलत हैं. इसके लिए जिला प्रशासन दूसरे शहरों के प्रशासन से भी मदद लेकर बड़ी कार्यवाही करेगा. जिला प्रशासन उन बुक पब्लिशर तक पहुंचाने की तैयारी कर रहा है, जिन्होंने यह फर्जी किताबें छपी हैं. इसके लिए मथुरा, आगरा, दिल्ली, मेरठ, गुजरात, राजस्थान और मध्य प्रदेश के प्रकाशकों से संपर्क कर किताबों से जुड़े दस्तावेज मांगे जाएंगे.

NDTV Campaign: जबलपुर में बुक स्टोर पर छापामार कार्रवाई करते हुए अधिकारी

NDTV Campaign: जबलपुर में बुक स्टोर पर छापामार कार्रवाई करते हुए अधिकारी

जरूरत से ज्यादा कॉपी और किताबें खरीद का दबाव

जिला प्रशासन ने पाया कि छोटे बच्चों (School Students) को भी 10 से 12 किताबें और 200-300 पेज की कॉपी और रजिस्टरों को खरीदवाया जा रहा था, बड़ी क्लास में तो 20 से 22 कॉपियों की लिस्ट दी जा रही है. उपयोग हो या ना हो अनिवार्य रूप से रजिस्टर नुमा 200-300 पेज की कॉपियां खरीदना जरूरी था, एक कक्षा (Class) में औसतन बच्चों को 30 कॉपी-किताबों का बंडल खरीदना पड़ता था.

ड्राइंग बुक, ड्राइंग कॉपी और क्राॅफ्ट कॉपी का भंडार

जिन बुक सेलर्स के यहां छापे मारे गए वहां ड्राइंग बुक, ड्राइंग कॉपी और क्राॅफ्ट की सामग्री का भंडार मिला. स्कूल (School) के द्वारा क्राफ्ट के पीरियड में इस तरीके के प्रोजेक्ट वर्क (Project Work) दिए जा रहे थे, जो कहीं अन्य मिलना संभव ही नहीं था. क्राॅफ्ट के लिए विशेष तरह के पेपर और मॉडल बनवाये जा रहे थे, जिसमें प्रति बच्चा 200 से लेकर ₹2000 तक का खर्च था. जिला प्रशासन को देखने में यह भी आया कि जो मॉडल बनवाए जाते थे, वह छोटे बच्चे बना ही नहीं सकते. उनके अभिभावक ही मॉडल बन सकते थे, इसलिए कई बुक सेलर्स ने मॉडल बनाने वाले लोगों को भी रखा हुआ था ताकि रेडीमेड मॉडल मिल सके.

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