Jhulelal Jayanti 2024 Wishes: आज सिंधी समाज के सबसे बड़े आस्था के प्रतीक भगवान झूलेलाल (Jhulelal) की जयंती (Jhulelal Jayanti 2024) यानी चेटीचंड (Cheti Chand 2024) का पर्व है. दुनिया भर में फैले सिंधी समाज (Sindhi Community) के लोगों के लिए आज का दिन खास (Sindhi New Year) है, लेकिन इसमें भी खास है ग्वालियर (Jhulelal Mandir Madhavganj) का झूलेलाल मंदिर (Jhulelal Mandir) जहां 1947 में देश विभाजन के समय कठिन चुनौतियों से भरे हालातों में भी सुरक्षित लाई गई अखंड ज्योति (Akhand Jyoti) तब से अब तक लगातार प्रज्ज्वलित हो रही है. यही वजह है कि देश भर के सिंधी समाज के लोग यहां पहुंचते है.
कैसे ग्वालियर पहुंची थी अखंड ज्योति?
पाकिस्तान (Pakistan) से इस अखंड ज्योति के ग्वलियर पहुंचने की कहानी चौंकाती है, रोंगटे भी खड़े करती है और धर्म के प्रति समर्पण की गौरवशाली दास्तान भी बयां करती है.
किस सिंधी युवा ने थामी थी अखंड ज्योति?
मंदिर से जुड़े लोग बताते हैं कि उस भागमभाग में 40 साल के एक युवा उद्धवदास अपने घर का सोना-चांदी (Gold-Shilver) समेटने की जगह सिंध में स्थित उस झूलेलाल मंदिर (Jhulelal Mandir) पहुंचे, जहां वे अखंड ज्योति के दर्शन करने प्रतिदिन जाते थे.
कई किलोमीटर पैदल चलकर सब लोग भारत की सीमा (India Border) पर पहुंचे और फिर भारत में घुस आए. उद्धवदास ने अखंड ज्योति को अपने हाथों में थामकर रखा. इसे छिपाकर लाने के लिए उन्होंने पीपा की मदद ली थी. इसमें तीन ओर टीन और एक तरफ शीशा था. उद्धवदास इसे लेकर ग्वालियर पहुंचे और यहां इसे प्रतिष्ठित किया. बाद में इसमे से एक ज्योति कानपुर में स्थापित की गई.
नीम के पेड़ से लटका दी थी ज्योति
सिंधी समाज के बुजुर्ग बताते है कि जब हम लोग पाकिस्तान से ग्वलियर आये तब हमारे पास न कोई सामान था न कोई ठौर-ठिकाना. उस समय हम लोगों ने इसे सुरक्षित रखने के लिए दाना ओली में स्थित एक पवित्र नीम (Neem Tree) के पेड़ से लटका दिया था. सब लोग वहीं जाकर दर्शन करते और फिर जो भी छोटा मोटा काम मिलता वह करते. धीरे-धीरे जब सब लोग व्यवस्थित हुए तो पहले उसी पेड़ के नीचे एक छोटा सा मंदिर बनवा लिया. इसके बाद माधोगंज और लाला का बाजार में भव्य मंदिर का निर्माण कर वहां इस अखंड ज्योति को पुनर्प्रतिष्ठित किया गया. इस पीतल के दीपक में हर रोज आधा लीटर तेल भरा जाता है.
देश भर से लोग यहां पहुंचते हैं ज्योति देखने
देश भर के सिंधी समाज में इस अखंड ज्योति का खास महत्व है. वे सिंधी भाषा (Sindhi Language) मे इसे बाहिराणा साहिब बोलते है और देश के कोने कोने से सिंधी परिवार इस ज्योति की प्रदक्षिणा करने पहुंचते है. उनमें यह भी मान्यता है कि इसी के कारण वे लोग सुरक्षित रहकर भारत पहुंच सके और इसी के आशीर्वाद से सिंधी समाज भारत मे प्रतिष्ठित हो सका.
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