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12 सालों में नहीं हटा अतिक्रमण, अब क्या कारोबारियों को हेलीकॉप्टर दे दें? - MP हाईकोर्ट

ग्वालियर के गौशपुरा इंडस्ट्रियल एरिया में अतिक्रमण के चलते कई कारोबारी परेशान है. इसी कड़ी में 2 कारोबारियों ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ में याचिका दायर की थी. जिस पर कोर्ट ने प्रशासन को फटकार लगाई है.

12 सालों में नहीं हटा अतिक्रमण, अब क्या कारोबारियों को हेलीकॉप्टर दे दें? - MP हाईकोर्ट
12 सालों में नहीं हटा अतिक्रमण, अब क्या कारोबारियों को हेलीकॉप्टर दे दें? - MP हाईकोर्ट

MP News in Hindi : मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के ग्वालियर (Gwalior) शहर में बिरलानगर ऐसी जगह है... जिस इलाके में कई सालों से  अतिक्रमण की समस्या है. हम बात कर रहे हैं गौशपुरा इंडस्ट्रियल एरिया की. इस जगह पर एक दशक से ज़्यादा का समय बीत जीने के बावजूद अवैध कब्जे की स्थिति बनी हुई है. आलम ऐसा है कि इसके चलते कारोबारियों का आना-जाना मुश्किल हो गया है. इस मामले को लेकर हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ में याचिका दायर की गई थी. जिसे लेकर आज याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कड़ी नाराजगी जताई. कोर्ट ने अफसरों पर तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि अफसर 12 साल में भी अतिक्रमण नहीं हटा पाए, तो बताएं कि अब कारोबारी अपनी फैक्ट्री तक जाने के लिए हेलीकॉप्टर का इस्तेमाल करें या उनके लिए फ्लाईओवर बनवाया जाए.

कब दायर की गई थी याचिका ?

दरअसल, गौशपुरा इंडस्ट्रियल एरिया में फैक्ट्री चलाने वाले नरेश अग्रवाल और राजकुमार अग्रवाल ने हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ में 26 जून 2023 को एक याचिका दायर की थी. इसमें उन्होंने कहा कि इंडस्ट्रियल एरिया की 80 फीट चौड़ी सड़क का ज्यादातर हिस्सा अतिक्रमण की चपेट में है. इसके चलते न तो वे लोग आसानी से फैक्ट्री पहुंच पाते हैं और न ही भारी माल उठाने वाली गाड़ियां. इससे उनका व्यापार बुरी तरह प्रभावित हो रहा है. 14 जुलाई 2023 को इस मामले में हाईकोर्ट ने सुनवाई की थी. तब सरकारी वकील ने कोर्ट को बताया था कि इस मामले को लेकर कलेक्टर ने अलग-अलग विभागों के अफसरों की एक कमेटी बनाई है. कमेटी ने मौके का जायजा ले लिया है और अब दस दिनों के अंदर कार्रवाई की जाएगी.

12 साल पहले मिला था आदेश

सोमवार को सुनवाई के दौरान बताया गया कि जिस नक्शे के आधार पर सड़क के 80 फीट चौड़ी होने का दावा किया जा रहा है.  वह नक्शा प्रशासन के पास उपलब्ध ही नहीं है. इसलिए नक्शे की सत्यता संदिग्ध है, जबकि याचिकाकर्ता ने कहा कि उसे यह नक्शा प्लॉट आवंटन के साथ उद्योग विभाग की तरफ से मिला था. सबसे पहले 2012 में कलेक्टर ने इसी आधार पर तहसीलदार को अतिक्रमण हटाने का निर्देश दिया था.

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कोर्ट ने प्रशासन की लगाई फटकार

सुनवाई के दौरान जस्टिस रमेश फड़के ने कहा कि 2012 में कार्यवाही के लिए पत्र लिखा गया था. तब से अब तक कई बार अंडरटेकिंग दी गई, लेकिन अतिक्रमण नहीं हटाया जा सका. DIC के अफसरों ने कहा कि जमीन उद्योग विभाग को आवंटित है. प्रश्न यह उठता है कि उस जमीन पर आखिर मकान कैसे बन गए? जस्टिस ने तंज कसते हुए कहा कि प्रशासन कारोबारियों को अपनी फैक्ट्री तक जाने के लिए हेलीकॉप्टर दे या फिर फ्लाईओवर बनवाए. कोर्ट ने कलेक्टर को ठोस कार्यवाही करने का निर्देश दिया है. मामले की अगली सुनवाई 21 अक्टूबर को होगी.

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