Madhya Pradesh Politics: पुरानी कहावत है- माया मिली न राम. लगता है कि मध्यप्रदेश कांग्रेस (Madhya Pradesh Congress) के पूर्व नेताओं के साथ कुछ ऐसा ही हो रहा है. कुछ बड़ा और अच्छा होने की चाहत में उन्होंने भगवा चोला तो ओढ़ा लेकिन ज्यादतर को कुछ खास फायदा नहीं हुआ. आंकड़े बताते हैं कि बीते 10 सालों में 35 कांग्रेसी विधायकों ने हाथ का साथ छोड़ा और बीजेपी (Madhya Pradesh BJP) का दामन थामा लेकिन आज की तारीख में उसमें से 22 नेताओं का सियासी सफर लगभग गुमनामी में चला गया है. इसमें से ज्यादातर नेता या तो चुनाव हार गए या फिर उन्हें टिकट ही नहीं मिला. इन 35 नेताओं में फिलहाल सिर्फ 9 ही विधायक हैं और उनमें से भी केवल 4 ही मंत्रीपद की शोभा बढ़ा रहे हैं. इसके अलावा पांच पूर्व कांग्रेसी नेताओं (Former Congress Leader) को न तो मंत्री पद ही मिला और न ही कोई और बड़ी जिम्मेदारी.
वैसे इन सबमें कुछ पेंच भी है. देखा जाए तो बीते दो महीने में कांग्रेस के 3 विधायकों बीजेपी का दामन थामा है.29 मार्च को अमरवाड़ा से कांग्रेस विधायक कमलेश शाह (kamlesh shah) ने सबसे पहले बीजेपी की सदस्यता ली थी. इसके बाद 30 अप्रैल को विधानसभा से उनका इस्तीफा मंजूर हो गया. 30 अप्रैल को ही पूर्व मंत्री और श्योपुर से विधायक रामनिवास रावत (Ramnivas Rawat)ने बीजेपी की सदस्यता ली, लेकिन अभीतक उन्होंने ना तो विधायकी छोड़ी है, ना ही कांग्रेस. 5 मई को बीनागंज से कांग्रेस विधायक निर्मला सप्रे (Nirmala Sapre)भी बीजेपी में शामिल हो गई हालांकि उन्होंने भी विधायकी और कांग्रेस से इस्तीफा नहीं दिया है.
2013 में शुरू हुआ था पलटी मारने का खेल
ये तीन विधायक तो हाल ही में बीजेपी में शामिल हुए लेकिन अगर पुराने पन्नों को पलटें तो 2013 से ही कांग्रेस विधायकों का भगवा चोला पहनना शुरू हो गया था. शुरुआत भी नाटकीय तरीके से विधानसभा के अंदर हुई थी.जब कांग्रेस सदन में सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लेकर आई तो तत्कालीन उपनेता प्रतिपक्ष चौधरी राकेश सिंह ही बीजेपी की तरफ चले गये.2014 के लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस विधायक संजय पाठक, नारायण त्रिपाठी और दिनेश अहिरवार बीजेपी में शामिल हो गए.2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया के करीबी 22 विधायकों ने कांग्रेस का हाथ झटक दिया, जिससे कमलनाथ सरकार गिर गई कुछ महीनों में ही 4 और विधायक बीजेपी में शामिल हो गये.2021 में खंडवा उपचुनाव के दौरान सचिन बिड़ला सत्ताधारी पार्टी में शामिल हो गए. इसके बाद 2023 के विधानसभा चुनाव में 230 में 163 विधायक बीजेपी से बने, 66 सीटों पर कांग्रेस जीती. लेकिन उसके 3 विधायकों ने फिर पाला बदल लिया.
"जो वहां गए वे सिर्फ एक दिन सुर्खियों में रहे"
कांग्रेस नेताओं के पार्टी छोड़ने के सवाल पर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी (Jitu Patwari) थोड़े तल्ख नज़र आए. उन्होंने कहा-किसी के आने और जाने से कोई फ़र्क नहीं पड़ता है,जो लोग यहां से बीजेपी में गए हैं.आज आप बता दीजिये एक दिन सुर्खियों में रहने के अलावा उन्हें कितनी इज्जत मिल रही है? आपको चुनावों के दौरान कहीं पर कोई भी नज़र आया है क्या? हमारे पास जो लोग आए थे हमने उनका स्वागत माला पहनाकर किया था. दरअसल इस तरह के दलबदल से जन प्रतिनिधियों का सम्मान जनता की नज़रों में ख़त्म होता जा रहा है,सिर्फ़ लोकतंत्र की हत्या करने की कोशिश की जा रही है.
"हर नेता को उचित सम्मान मिलता है"
दूसरी तरफ बीजेपी प्रवक्ता अजय सिंह यादव का इस मसले पर कहना है कि कांग्रेस में तुष्टिकरण की राजनीति चलती है. इसलिए नेता और कार्यकर्ता पार्टी छोड़कर बीजेपी में आ रहे हैं.बीजेपी में कई नेताओं को सम्मान मिला है कोई मंत्री हैं कोई पूर्व मंत्री रह चुके हैं. आने वाले दिनों में भी कई नेता और कार्यकर्ता जो शामिल हुए हैं उनको महत्वपूर्ण पदों की ज़िम्मेदारी दी जाएगी.कांग्रेस में ही किसी भी नेता का सम्मान नहीं किया जाता है. हमारी पार्टी दूरदर्शी है इसलिए हर नेता को उचित सम्मान दिया जाएगा हर कार्यकर्ताओं को उचित स्थान दिया जाएगा. यहां ये जान लेना दिलचस्प है कि अजय सिंह यादव खुद कुछ दिनों पहले कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आए हैं.बता दें कि साल 1985 में राजीव गांधी की सरकार दल-बदल कानून लेकर आई थी लेकिन इसकी जरूरत 1967 से ही महसूस होने लगी थी. जब राजनीति में 'आया राम, गया राम' मुहावरे की नींव हरियाणा के विधायक गया लाल ने डाल दी छी. उन्होंने एक दिन में तीन बार पार्टी बदली थी. नया दल बदल कानून कहता है कि अगर कोई विधायक या सांसद अपनी मर्जी से पार्टी की सदस्यता छोड़कर दूसरी पार्टी में शामिल होता है तो उसकी सदस्यता जा सकती है. व्हिप के उल्लंघन पर भी सदस्यता जा सकती है, लेकिन एक नया तरीका ये है कि विधायक दूसरे दल में शामिल हो रहे हैं पर विधानसभा में इस्तीफा नहीं दे रहे हैं. मतलब विधायकी भी बनी रहे और दूसरी पार्टी का साथ भी मिल जाए.
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