
MP Women Commission News: आप मध्यप्रदेश महिला आयोग के दफ्तर चले जाइए. महिलाओं के अधिकार और उनके खिलाफ होने वाले अपराधों में सजा की जानकारी देने वाले बड़े-बड़े पोस्टर-बैनर या पट्टिकाएं आपको मिल जाएंगी. जिन्हें देखकर आपको लगेगा यहां आधी आबादी को लेकर सजगता आला दर्जे की है. इसके अलावा हमारे सभी राजनीतिक दलों से आप बात करिए तो वे भी महिला और उनके अधिकारों को लेकर लंबे-चौड़े दावे-वादे करते मिल जाएंगे. पर सवाल ये है कि महिलाओं को धरातल पर वाकई इंसाफ मिल पा रहा है? इसका जवाब आपको राज्य महिला आयोग (State Women's Commission) के दफ्तर के अंदर घुसते ही मिल जाएगा.
दरअसल मध्यप्रदेश में महिला आयोग सालों से बंद है. यहां एक-दो हजार नहीं बल्कि 50 हजार से ज्यादा शिकायतें लंबित है. आलम ये है कि महिलाओं की शिकायतें सुनने के लिये साल 2020 से यहां सदस्यों की संयुक्त बेंच तक नहीं बैठी है. हालांकि जब NDTV ने इस मसले पर राज्य के डिप्टी CM जगदीश देवड़ा (Jagdish Deora) से बात की तो थोड़ी उम्मीद जगी. उन्होंने कहा- जैसी भी व्यवस्था है उसके अनुसार ही इंतजाम किए जाएंगे और जल्द ही इसे दुरुस्त कर दिया जाएगा. बहरहाल आगे बढ़ने से पहले ये जान लीजिए महिला अपराधों के मामले में मध्यप्रदेश की स्थिति क्या है?

आप हालात की गंभीरता को समझ गए होंगे...अब जरा मध्यप्रदेश महिला आयोग दफ्तर की हालत भी जान लीजिए. यहां बाहर पार्किंग में गाड़ियां धूल खा रही हैं. अंदर जाइएगा तो फाइलों पर भी आपको धूल ही मिलेंगी. प्रीरेक बिद अजय शर्मा बताते हैं कि आयोग के दफ्तर में अधिकारी-कर्मचारी सभी नदारद हैं. जितने कमरे हैं फिलहाल सभी बंद हैं.

महिला आयोग के दफ्तर के बाहर खड़ी गाड़ियों की हालत से आप स्थिति का अंदाजा लगा सकते हैं
दरअसल पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ ने अपनी सरकार गिरने के ठीक पहले कांग्रेस नेता शोभा ओझा को मध्य प्रदेश राज्य महिला आयोग का अध्यक्ष बनाया था. तब सदस्यों की भी नियुक्ति हुई थी. मगर शिवराज सरकार ने आते ही इन नियुक्तियों को असंवैधानिक बताते हुये रोक लगा दी. नतीजा ये हुआ है कि आयोग को मिलने वाली महिलाओं की शिकायतें सुनने के लिये यहां साल 2020 से सदस्यों की संयुक्त बेंच तक नहीं बैठी है.शोभा ओझा बताती हैं कि जब उन्होंने कार्यभार संभाला था तब 1200 केस पेडिंग थे. कोर्ट ने हमें काम करने का अधिकार दिया था लेकिन बीजेपी ने काम नहीं करने दिया और ताला डालकर रखा. ये महिलाओं का अधिकार छीनने जैसा ज्यादा है.

बता दें कि आयोग में औसतन हर साल 3000 शिकायतें आती हैं. आज की तारीख़ में हजारों अर्जियाँ लंबित हैं. वकील सपना सिसोदिया के मुताबिक यदि लोगों के केस लिस्ट होंगे तो सात साल और लगेंगे इनका निपटारा होने में. महिला आयोग में आर्थिक रुप से कमजोर लोग ही जाते हैं. यदि उन्हें वहां भी न्याय नहीं मिलेगा तो वे क्या करेंगे. जाहिर है जिस महिला आयोग का गठन महिलाओं को सशक्त बनाने, महिलाओं के हितों की देखभाल और उनका संरक्षण करने, महिलाओं पर होने वाले अत्याचार एवं अपराधों पर त्वरित कार्रवाई करने के लिए किया गया था वो उद्देश्य बुरी तरह से फेल हो रहा है.
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