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This Article is From Mar 21, 2024

MP में धार की जिस भोजशाला का सर्वे ASI ने किया, जानिए उसका विवाद आखिर क्या है? ये रहा पूरा घटनाक्रम

Dhar Bhojshala ASI Survey News:1995 में हुए विवाद के बाद से यहां मंगलवार को पूजा और शुक्रवार को नमाज पढऩे की अनुमति दी गई. लेकिन मई 1997 को कलेक्टर ने भोजशाला में आम लोगों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया और मंगलवार की पूजा पर रोक लगा दी गई. 2003 में हिंदू जागरण मंच ने हिंदुओं के यहां नियमित प्रवेश की मांग को लेकर एक आंदोलन शुरु किया था. यह आंदोलन हिंसक हो उठा था और सांप्रदायिक तनाव के चलते कर्फ्यू लगाना पड़ा.

MP में धार की जिस भोजशाला का सर्वे ASI ने किया, जानिए उसका विवाद आखिर क्या है? ये रहा पूरा घटनाक्रम

Dhar Bhojshala dispute: भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण यानी (Archaeological Survey of India) या एएसआई (ASI) के अधिकारियों ने गुरुवार को जानकारी देते हुए कहा है कि मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय (Madhya Pradesh High Court)  के आदेश के मुताबिक धार के विवादास्पद भोजशाला परिसर का वैज्ञानिक सर्वेक्षण शुक्रवार सुबह से शुरू की जाएगी. धार स्थित भोजशाला (Dhar Bhojshala) का मसला सियासी रूप से भी काफी संवेदनशील माना जाता है. यह परिसर एएसआई द्वारा संरक्षित है. इस ऐतिहासिक भोजशाला परिसर को जहां हिन्दू (Hindu) पक्ष वाग्देवी (सरस्वती) का मंदिर (Sarswati Temple) मानते हैं, वहीं मुस्लिम समुदाय (Muslim Community) इसे कमाल मौला की मस्जिद (Kamal Maula Masjid) बताता है. आइए जानते हैं आखिर इसका इतिहास और विवाद क्या है?

पहले एक नजर इतिहास पर

धार जिसे की आधिकारिक वेबसाइट पर मौजूद जानकारी के अनुसार परमार राजवंश के सबसे बड़े शासक राजा भोज (Raja Bhoj) शिक्षा और साहित्य के अनन्य उपासक थे. उन्होंने धार में एक महाविद्यालय की स्थापना की, जिसे बाद में भोजशाला के रूप में जाना जाने लगा. यहां दूर-दूर और आस-पास के अनेक छात्र अपनी बौद्धिक प्यास बुझाने के लिए आते थे.

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इस भोजशाला या सरस्वती मंदिर को बाद में यहां के मुस्लिम शासक ने मस्जिद में परिवर्तित कर दिया था. इस भोजशाला के अवशेष अभी भी प्रसिद्ध कमाल मौलाना मस्जिद में देखे जा सकते हैं. मस्जिद में एक बड़ा खुला प्रांगण है, जिसके चारों ओर स्तंभों से सज्जित एक बरामदा एवं पीछे पश्चिम में एक प्रार्थना गृह स्थित है. बातया जाता है कि मस्जिद में प्रयुक्त नक्काशीदार स्तम्भ और प्रार्थना कक्ष की उत्कृष्ट रूप से नक्काशीदार छत भोजशाल के थे.

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धार भोजशाला की शिलाओं में कर्मावतार या विष्णु के मगरमच्छ अवतार के प्राकृत भाषा में लिखित दो स्तोत्र उत्कीर्ण हैं. दो सर्पबंध स्तंभ शिलालेख हैं, जिसमें एक पर संस्कृत वर्णमाला और संज्ञाओं व क्रियाओं के मुख्य अंतःकरण को समाहित किया गया है. जबकि दूसरे शिलालेख पर संस्कृत व्याकरण के दस काल और मनोदशाओं के व्यक्तिगत अवसान शामिल हैं. ये शिलालेख 11 वीं-12 वीं शताब्दी के बताए जाते हैं.

बारीक निरीक्षण से यह तथ्य सामने आया है कि मेहराब की परतों का निर्माण करने वाले दो बड़े काले पत्थरों के पीछे की तरफ के भाग पर लेख उत्कीर्ण है. ये शिलालेख शास्त्रीय संस्कृत में नाटकीय रचना हैं. यह अर्जुनवर्मा देव के शासनकाल के दौरान उत्कीर्ण किया गया था. यह नाटक राजकीय शिक्षक मदन द्वारा काव्य रूप में लिखा गया था, जो कि प्रसिद्ध जैन विद्वान आशाधर के शिष्य थे, जिन्होंने खुद भी परमारों की शाही अदालत को सुशोभित किया और मदन को संस्कृत काव्य पढ़ाया.

नाटक को कर्पुरमंजरी कहा जाता है एवं यह अर्जुनवर्मा देव के सम्मान में है, जिन्हें मदन ने पढ़ाया था. यह नाटक परमारों और चालुक्यों के बीच युद्ध को संदर्भित करता है जो विवाह गठबंधन द्वारा समाप्त हो गया था.

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अब जानिए विवाद किस बात का है?

इस परिसर को लेकर विवाद लंबे समय से चला आ रहा है वहीं हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस (Hindu Front for Justice) संस्था ने हाईकोर्ट में एक याचिका दाखिल की थी, जिसमें मुसलमानों को भोजशाला में नमाज पढ़ने से रोके जाने और हिंदुओं को नियमित पूजा का अधिकार देने की मांग की गई थी.

हिंदू पक्ष की ओर से कोर्ट में कहा गया है कि यह पर मौजूद मस्जिद का निर्माण भोजशाला मंदिर पर किया है. यह मंदिर मस्जिद के काफी पहले से मौजूद था, लेकिन 13वीं-14वीं शताब्दी में अलाउद्दीन खिलजी के शासनकाल के दौरान मंदिर के प्राचीन ढांचों को गिराकर मस्जिद का निर्माण किया गया है.

बीबीसी न्यूज के अनुसार मुस्लिम पक्ष का कहना है कि बार-बार इस मामले को उठाकर सांप्रदायिक स्थितियां पैदा करने की कोशिश हो रही है लेकिन मुस्लिम समुदाय ऐसा होने नहीं देगा.

धार के शहर काजी का कहना है कि इस मामले को अयोध्या का रूप देने की कोशिश की जा रही है. यहां लगभग 800 साल से मुसलमान नमाज (Namaz) पढ़ रहे हैं. अब इसका स्वरूप बदलने की कोशिश हो रही है.

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कोर्ट का क्या कहना है?

उच्च न्यायालय की इंदौर पीठ (Indore Bench of Madhya Pradesh High Court) ने 11 मार्च को सुनाए आदेश में कहा था कि इस अदालत ने केवल एक निष्कर्ष निकाला है कि भोजशाला मंदिर-सह-कमाल मौला मस्जिद परिसर का जल्द से जल्द वैज्ञानिक सर्वेक्षण और अध्ययन कराना एएसआई का संवैधानिक और कानूनी दायित्व है. 

कोर्ट ने कहा है कि इस परिसर को लेकर जो रहस्य की स्थिति बनी है, उससे विवाद बड़ा हो गया है. अब इस पूरे स्थल की प्रकृति से रहस्य हटाने और इसे संशय के बंधनों से मुक्त कराने की ज़रूरत है. दोनों पक्षों के नामित प्रतिनिधियों की मौजूदगी में फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी हो.

ये घटनाक्रम अहम हैं

कुछ इतिहासकारों का मानना है कि 1401 ईस्वी में भोजशाला के एक भाग में मस्जिद का निर्माण करवाया गया था. उसके बाद 1514 ईस्वी में बचे हुए भाग पर भी मस्जिद बनवा दी गई थी. यह बताया जाता है कि अंग्रेजी हुकूमत के दौरान यहां विवाद की स्थिति बनी थी, जो धीरे-धीरे आजादी के बाद तक बढ़ती ही गई. 1909 में भोजशाला को संरक्षित स्मारक घोषित किया गया था, बाद में इसे ASI को सौंप दिया गया. 1935 में धार स्टेट ने इस परिसर में शुक्रवार को नमाज पढने की अनुमति दी थी. उस समय यह परिसर शुक्रवार को ही खुलता था.

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1995 में हुए विवाद के बाद से यहां मंगलवार को पूजा और शुक्रवार को नमाज पढऩे की अनुमति दी गई. लेकिन मई 1997 को कलेक्टर ने भोजशाला में आम लोगों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया और मंगलवार की पूजा पर रोक लगा दी गई. 2003 में हिंदू जागरण मंच ने हिंदुओं के यहां नियमित प्रवेश की मांग को लेकर एक आंदोलन शुरु किया था. यह आंदोलन हिंसक हो उठा था और सांप्रदायिक तनाव के चलते कर्फ्यू लगाना पड़ा.

इससे पहले भी धार के भोजशाला क्षेत्र में सांप्रदायिक हिंसा हो चुकी थी. 2003 से कुछ बदलाव हुए जिसके तहत हर मंगलवार और बसंत पंचमी के दिन हिन्दुओं को पूजा की अनुमति और शुक्रवार को मुस्लिमों को नमाज की अनुमति दी गई. फरवरी 2003 को भोजशाला परिसर में सांप्रदायिक तनाव के बाद हिंसा फैल गई थी. बसंत पंचमी और शुक्रवार एक दिन आने पर 2013 में भी धार में माहौल बिगड़ गया था. 2016 में भी शुक्रवार के दिन बसंत पंचमी पड़ने से तनावपूर्ण स्थिति बनी थी.

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