Dhar Bhojshala dispute: भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण यानी (Archaeological Survey of India) या एएसआई (ASI) के अधिकारियों ने गुरुवार को जानकारी देते हुए कहा है कि मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय (Madhya Pradesh High Court) के आदेश के मुताबिक धार के विवादास्पद भोजशाला परिसर का वैज्ञानिक सर्वेक्षण शुक्रवार सुबह से शुरू की जाएगी. धार स्थित भोजशाला (Dhar Bhojshala) का मसला सियासी रूप से भी काफी संवेदनशील माना जाता है. यह परिसर एएसआई द्वारा संरक्षित है. इस ऐतिहासिक भोजशाला परिसर को जहां हिन्दू (Hindu) पक्ष वाग्देवी (सरस्वती) का मंदिर (Sarswati Temple) मानते हैं, वहीं मुस्लिम समुदाय (Muslim Community) इसे कमाल मौला की मस्जिद (Kamal Maula Masjid) बताता है. आइए जानते हैं आखिर इसका इतिहास और विवाद क्या है?
#WATCH | Madhya Pradesh: On ASI (Archaeological Survey of India) survey of Bhojshala in Dhar to begin tomorrow, Manoj Kumar Singh SP Dhar says, "In compliance with the instructions of the High Court, we have received a letter from the Additional Director of Indian Culture… pic.twitter.com/NV4JmQWZMG
— ANI (@ANI) March 21, 2024
पहले एक नजर इतिहास पर
धार जिसे की आधिकारिक वेबसाइट पर मौजूद जानकारी के अनुसार परमार राजवंश के सबसे बड़े शासक राजा भोज (Raja Bhoj) शिक्षा और साहित्य के अनन्य उपासक थे. उन्होंने धार में एक महाविद्यालय की स्थापना की, जिसे बाद में भोजशाला के रूप में जाना जाने लगा. यहां दूर-दूर और आस-पास के अनेक छात्र अपनी बौद्धिक प्यास बुझाने के लिए आते थे.
धार भोजशाला की शिलाओं में कर्मावतार या विष्णु के मगरमच्छ अवतार के प्राकृत भाषा में लिखित दो स्तोत्र उत्कीर्ण हैं. दो सर्पबंध स्तंभ शिलालेख हैं, जिसमें एक पर संस्कृत वर्णमाला और संज्ञाओं व क्रियाओं के मुख्य अंतःकरण को समाहित किया गया है. जबकि दूसरे शिलालेख पर संस्कृत व्याकरण के दस काल और मनोदशाओं के व्यक्तिगत अवसान शामिल हैं. ये शिलालेख 11 वीं-12 वीं शताब्दी के बताए जाते हैं.
नाटक को कर्पुरमंजरी कहा जाता है एवं यह अर्जुनवर्मा देव के सम्मान में है, जिन्हें मदन ने पढ़ाया था. यह नाटक परमारों और चालुक्यों के बीच युद्ध को संदर्भित करता है जो विवाह गठबंधन द्वारा समाप्त हो गया था.
अब जानिए विवाद किस बात का है?
इस परिसर को लेकर विवाद लंबे समय से चला आ रहा है वहीं हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस (Hindu Front for Justice) संस्था ने हाईकोर्ट में एक याचिका दाखिल की थी, जिसमें मुसलमानों को भोजशाला में नमाज पढ़ने से रोके जाने और हिंदुओं को नियमित पूजा का अधिकार देने की मांग की गई थी.
बीबीसी न्यूज के अनुसार मुस्लिम पक्ष का कहना है कि बार-बार इस मामले को उठाकर सांप्रदायिक स्थितियां पैदा करने की कोशिश हो रही है लेकिन मुस्लिम समुदाय ऐसा होने नहीं देगा.
कोर्ट का क्या कहना है?
उच्च न्यायालय की इंदौर पीठ (Indore Bench of Madhya Pradesh High Court) ने 11 मार्च को सुनाए आदेश में कहा था कि इस अदालत ने केवल एक निष्कर्ष निकाला है कि भोजशाला मंदिर-सह-कमाल मौला मस्जिद परिसर का जल्द से जल्द वैज्ञानिक सर्वेक्षण और अध्ययन कराना एएसआई का संवैधानिक और कानूनी दायित्व है.
ये घटनाक्रम अहम हैं
कुछ इतिहासकारों का मानना है कि 1401 ईस्वी में भोजशाला के एक भाग में मस्जिद का निर्माण करवाया गया था. उसके बाद 1514 ईस्वी में बचे हुए भाग पर भी मस्जिद बनवा दी गई थी. यह बताया जाता है कि अंग्रेजी हुकूमत के दौरान यहां विवाद की स्थिति बनी थी, जो धीरे-धीरे आजादी के बाद तक बढ़ती ही गई. 1909 में भोजशाला को संरक्षित स्मारक घोषित किया गया था, बाद में इसे ASI को सौंप दिया गया. 1935 में धार स्टेट ने इस परिसर में शुक्रवार को नमाज पढने की अनुमति दी थी. उस समय यह परिसर शुक्रवार को ही खुलता था.
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इससे पहले भी धार के भोजशाला क्षेत्र में सांप्रदायिक हिंसा हो चुकी थी. 2003 से कुछ बदलाव हुए जिसके तहत हर मंगलवार और बसंत पंचमी के दिन हिन्दुओं को पूजा की अनुमति और शुक्रवार को मुस्लिमों को नमाज की अनुमति दी गई. फरवरी 2003 को भोजशाला परिसर में सांप्रदायिक तनाव के बाद हिंसा फैल गई थी. बसंत पंचमी और शुक्रवार एक दिन आने पर 2013 में भी धार में माहौल बिगड़ गया था. 2016 में भी शुक्रवार के दिन बसंत पंचमी पड़ने से तनावपूर्ण स्थिति बनी थी.
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