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Lok Sabha Elections 2024: जबलपुर में कभी नहीं चला जातिवाद,यहां मिलते हैं हर तरह के पत्थर और सांसद

जबलपुर लोकसभा सीट भारत के बीचोबीच स्थित इलाके का संसदीय क्षेत्र है. दरअसल आजादी के बाद से लेकर देश में अनेक तरह की राजनैतिक लहर चलीं.चीन और पाकिस्तान से युद्ध का समय रहा हो या फिर आपातकाल का, मंडल आरक्षण की आग रही हो या फिर कमंडल यानि राम जन्मभूमि आंदोलन का समयकाल. जबलपुर संसदीय क्षेत्र की जनता की खासियत यही रही कि इसने कभी भी जातिवाद के प्रति झुकाव नहीं दिखाया.

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Lok Sabha Elections 2024: जबलपुर में कभी नहीं चला जातिवाद,यहां मिलते हैं हर तरह के पत्थर और सांसद

Jabalpur Lok Sabha seat: मध्यप्रदेश को देश का दिल कहा जाता है...और आप भारत के मैप को देखें तो इसी सूबे का जबलपुर संसदीय क्षेत्र उसके बीचों-बीच स्थित दिखाई देता है. इस संसदीय सीट पर 1952 से अब तक 19 बार चुनाव हुए हैं जिसकी खास बात ये है कि यहां कभी जातिवाद की दाल नहीं गली. जबलपुर लोकसभा सीट भारत के बीचोबीच स्थित इलाके का संसदीय क्षेत्र है. दरअसल आजादी के बाद से लेकर देश में अनेक तरह की राजनैतिक लहर चलीं.चीन और पाकिस्तान से युद्ध का समय रहा हो या फिर आपातकाल का, मंडल आरक्षण की आग रही हो या फिर कमंडल यानि राम जन्मभूमि आंदोलन का समयकाल. जबलपुर संसदीय क्षेत्र की जनता की खासियत यही रही कि इसने कभी भी जातिवाद के प्रति झुकाव नहीं दिखाया. विशुद्ध रूप से महाकौशल का यह प्रमुख शहर कभी राजनीति की धुरी भी रहा लेकिन यहां मराठी,गुजराती,बंगाली और कश्मीरी पंडित तक चुनाव जीतने में कामयाब रहे. आगे बढ़ने से पहले यहां के इतिहास और भगौलिक स्थिति को भी जान लेते हैं. हाल के 27 वर्षों में यहां से भारतीय जनता पार्टी ही जीतती चली आ रही है. हालांकि साल 2024 में हालात कुछ अलग हैं क्योंकि राकेश सिंह जो यहां से लगातार 4 बार सांसद रहे हैं वे अब राज्य की सियासत में चले गए हैं. देखने वाली बात होगी कि BJP इस बार किस नेता पर दांव खेलती है या फिर विवेक तन्खा को राकेश सिंह की गैरमौजूदगी का फायदा मिलेगा?

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पुराणों और किंवदंतियों के अनुसार जबलपुर का संबंध जाबालि ऋषि से है. जिनके बारे में कहा जाता है कि वह यहीं निवास करते थे. 1781 के बाद ही मराठों के मुख्यालय के रूप में चुने जाने पर इस नगर की सत्ता बढ़ी, बाद में यह सागर और नर्मदा क्षेत्रों के ब्रिटिश कमीशन का मुख्यालय बना. यहां 1864 में ही नगरपालिका का गठन हो गया था.यहां एक पहाड़ी पर मदन महल स्थित है जो लगभग 1100 ई.में राजा मदन सिंह द्वारा बनवाया गया एक पुराना गोंड महल है. भेड़ाघाट,ग्वारीघाट और जबलपुर से प्राप्त जीवाश्मों से संकेत मिलता है कि यह प्रागैतिहासिक काल के पुरापाषाण युग के इंसान भी रहते थे. इस इलाके में डायनासोर के भी अवशेष मिले हैं. नर्मदा के सुंदर तटों के अलावा जबलपुर अपने  बैलेंसिंग रॉक्स के लिए भी मशहूर है. जिसे चमत्कार माना जाता है और पूरे देश से लोग इन्हें देखने आते हैं. जबलपुर संसदीय क्षेत्र में कृषि और उद्योग का अच्छा मिश्रण देखने को मिलता है. यहां पैदा होने वाला मटर जहां इसकी पहचान है तो वहीं सरकारी उपक्रम के टेलिकॉम, रक्षा क्षेत्र और आयुध निर्माण में शुमार रखने वाले 5 संस्थान मौजूद हैं. खनिज के क्षेत्र में बॉक्साइड,आयरन और चूना पत्थर यहां पर्याप्त मात्रा में मौजूद है. 

जबलपुर संसदीय क्षेत्र की आर्थिक स्थिति

जबलपुर संसदीय क्षेत्र में कृषि और उद्योग का अच्छा सम्मिश्रण देखने को मिलता है. यहां पैदा होने वाला मटर जहां इसकी पहचान है तो वहीं सरकारी उपक्रम के टेलीकॉम, रक्षा क्षेत्र और आयुध निर्माण में शुमार रखने वाले 5 संस्थान मौजूद हैं.खनिज के क्षेत्र में बॉक्साइड, आयरन और चूना पत्थर यहां पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है. 

जबलपुर संसदीय क्षेत्र का सियासी इतिहास

आजादी के बाद जबलपुर जिले में दो संसदीय सीटें थीं जबलपुर उत्तर और जबलपुर मंडला. 1952 में हुए आम चुनाव में यहां से सुशील कुमार पटैरिया, मंगरु गनु उइके निर्वाचित हुए। इसके बाद 1957 में जबलपुर लोकसभा सीट अस्तित्व में आई। जिस पर लगातार 4 मर्तबा सेठ गोविंददास निर्वाचित होते रहे. सेठ गोविंदास के अलावा यहां से राकेश सिंह, बाबूराव परांजपे भी 4 बार सांसद बने. सबसे पहले साल 1982 में सांसद मुंदर शर्मा के निधन के बाद हुए उपचुनाव में वे सांसद निर्वाचित हुए। इसके बाद साल 1989, 1996 और 1998 में परांजपे फिर चुनाव जीतकर संसद पहुंचे.लेकिन कमोवेश हर बार मध्यावधि चुनाव के चलते वे पूरे 5 साल तक इस पद पर नहीं रह पाए. 

सबसे लंबे वक्त तक राकेश सिंह रहे सांसद

सबसे लंबे समय तक जबलपुर लोकसभा सीट से प्रतिनिधित्व करने वाले सांसद का रिकॉर्ड राकेश सिंह के नाम है. वर्तमान में मध्यप्रदेश शासन में पीडब्ल्यूडी मंत्री के रूप में पदस्थ राकेश सिंह ने दिसंबर 2023 में ही लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दिया. इस तरह वे करीब-करीब 20 वर्ष तक यहां से सांसद रहे.राकेश सिंह के बाद सबसे ज्यादा लंबे वक्त तक सेठ गोविंददास ने यहां की जनता की आवाज संसद में उठाई.सेठ गोविंददास 1957 से लेकर मृत्युपर्यंत यानि साल 1974 तक सांसद रहे.वहीं सबसे कम समय तक सांसद रहने वाले शख्स मुंदर शर्मा रहे. 

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सबसे बड़ी और सबसे छोटी जीत रही इनके नाम

जबलपुर लोकसभा क्षेत्र से सबसे बड़ी जीत हासिल करने वालों में राकेश सिंह का नाम आता है.साल 2019 के चुनावों में उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी कांग्रेस प्रत्याशी विवेक कृष्ण तन्खा को करीब 4.5 लाख मतों से पराजित किया था. वहीं सबसे छोटी जीत की बात की जाए तो साल 1991 में कांग्रेस के श्रवणभाई पटेल ने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी बीजेपी के बाबूराव परांजपे से करीब 7 हजार मतों से जीत दर्ज की थी.  

शरद यादव यहीं से बने थे सबसे युवा सांसद

यह बात 1974 की है, सांसद सेठ गोविंददास के निधन के बाद हुए उपचुनाव में जेपी आंदोलन और समाजवाद से प्रभावित युवा शरद यादव ने चुनाव में ताल ठोंकी और जबलपुर के प्रतिनिधित्व को अपनी धरोहर समझने वाले बखरी(सेठ) परिवार को न सिर्फ चुनौती दी बल्कि चुनाव में धूल भी चंटाई .शरद उस समय में देश के सबसे युवा सांसद बनकर संसद में पहुंचे थे. शरद यादव ने अपनी जीत का सिलसिला आपातकाल के बाद हुए आमचुनाव 1977 में भी जारी रखा.लेकिन साल 1980 में कांग्रेस आई के उम्मीदवार मुंदर शर्मा ने उन्हें बुरी तरह परास्त किया था.जिसके बाद शरद यादव हमेशा के लिए मध्यप्रदेश छोड़कर बिहार से राजनीति करने विस्थापित हो गए थे. 

 जबलपुर लोकसभा चुनाव परिणाम 2019

जबलपुर लोकसभा सीट से भाजपा के राकेश सिंह सांसद थे जिन्होंने विधान सभा चुनाव 2023 में सदन से इस्तीफ़ा दे दिया था  . यहां की कुल जनसंख्या 25,41,797 है, जिनमें से 40 प्रतिशत लोग गांवों में और 59 प्रतिशत लोग शहरों में निवास करते हैं.साल 2014 के चुनाव में इस सीट पर नंबर 2 पर कांग्रेस और नंबर 3 पर बसपा थी, उस साल यहां कुल वोटरों की संख्या 17 लाख 11 हजार 683 थी, जिसमें से मात्र 10 लाख 2 हजार 184 लोगों ने अपने मतों का प्रयोग किया, जिनमें से पुरुषों की संख्या 5,58,617 और महिलाओं की संख्या 4,43,567 थी.जबलपुर की 87 प्रतिशत आबादी हिंदू धर्म में और 8 प्रतिशत लोग इस्लाम धर्म में भरोसा रखते हैं.

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