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पेट की खातिर पलायन: सतना में रोजगार नहीं...गांव छोड़ने पर मजबूर लोग, 2 लाख में से 620 लोगों को मिला सौ दिन का काम

International Workers' Day 2024: सरकार और प्रशासन के लाख दावों के बाद भी मजदूर रोजगार की तलाश में दूसरे राज्यों की तरफ रुख करने के लिए मजबूर हैं. इतना ही नहीं सतना में दो लाख जॉबकार्डधारी में से सिर्फ 620 लोगों को ही 100 दिन का काम मिल रहा है.

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पेट की खातिर पलायन: सतना में रोजगार नहीं...गांव छोड़ने पर मजबूर लोग, 2 लाख में से 620 लोगों को मिला सौ दिन का काम

International Labour Day: मध्य प्रदेश में मजदूरों के उत्थान के लिए सरकार कई स्कीम लेकर आई और मजदूरों की मजदूरी भी निर्धारित की, लेकिन संगठित क्षेत्र और असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले मजदूरों की मजदूरी सिर्फ कागज तक ही सीमित रह गई है. यही नहीं श्रमिकों के पलायन को रोकने के लिए पंचायत स्तर पर 100 दिनों के वेतन रोजगार की गारंटी भी है, लेकिन धरातल पर स्थिति कैसी है? इसे देखने वाला कोई नहीं है.  

1 मई यानी विश्व मजदूर दिवस (Labour Day 2024) के मौके पर एनडीटीवी की टीम सतना जिले के श्रमिक मंडी सिंधी कैंप पहुंची और रोजगार की तलाश में यहां पहुंच रहे मजदूरों से बातचीत की. इस दौरान मजदूरों का कहना था कि पेट के लिए उन्हें पलायन करना ही पड़ता है.

महज  620 लोगों को ही मिल पा रहा है रोजगार

इतना ही नहीं सतना में आंकड़े भी मजदूरों की दर्दनाक स्थिति को बता रही है. दरअसल, जिले में संगठित क्षेत्र में मजदूरों की संख्या लगभग 30 से 35 हजार है, जबकि असंगठित क्षेत्र में मजदूरों की संख्या लगभग तीन से चार लाख है. वहीं ग्राम पंचायत स्तर पर दर्ज श्रमिकों की बात करें तो ये आंकड़ा मनरेगा वेबसाइट के अनुसार, 198555 है. वहीं जब रोजगार की बात करते हैं तो असंगठित क्षेत्र में मनरेगा श्रमिक जिन्हें काम मांगने के बाद सौ दिन का रोजगार देने की गारंटी है, उनमें से महज 620 लोगों को ही रोजगार मिल पा रहा है. यह आंकड़े मजदूरों की दुर्दशा का प्रमाण हैं और शासन-प्रशासन की उदासीनता को भी दर्शा रही है, लेकिन कभी इनके दुर्दशा पर विचार नहीं होता.

संगठित क्षेत्र के श्रमिक भी परेशान

सतना शहर के बिरला सीमेंट प्लांट में संगठित क्षेत्र के मजदूर रहे रामनरेश सेन ने एनडीटीवी से बातचीत में कहा कि यहां भी ठेका प्रथा लाकर कंपनियों ने मजदूरों के हक मार दिया. अदालत से केस जीतने के बाद भी उन्हें न्याय नहीं मिल पाया और अब वो असंगठित क्षेत्र में मजदूरी करने के  लिए विवश हैं. उन्होंने बताया कि अपना जीवन प्लांट में खपा दिया. अब अपने क्लेम के लिए भटकते रहते हैं. छह साल की लंबी लड़ाई के बाद कागजी आदेश तो हो गए, लेकिन कंपनी से उनका हक आज तक नहीं मिल पाएगा.

उम्मीद में शहर की यात्रा, 10-15 दिन ही मजदूरों को मिलता है काम

ग्रामीण इलाकों से लगभग 20 से 25 हजार मजदूर सतना शहर की हर रोज यात्रा करते हैं. कुछ मजदूर सिंधी कैंप की मंडी तो कई लालता चौक में भी काम की तलाश में पहुंचते हैं. यहां आने वाले श्रमिकों को रोज काम मिलेगा यह भी नियति पर ही निर्भर है. महीने में औसतन एक मजदूर को 10 से 15 दिन ही काम मिल पाता है. यहां इनके रुकने के लिए न तो 
कोई शेड है और न ही पानी की सुविधा. हालांकि मजदूरों ने कई बार आवाज उठाई, लेकिन अफसरों और नेताओं ने आश्वासन की चासनी चटाकर मुंह फेर लिया.

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