International Museum Day 2024: देश भर में यूं तो कई संग्रहालय (Museum) बनाये गए जहां पर तमाम तरह की दुर्लभतम वस्तुएं संजोई जाती हैं. इन्ही दुर्लभ संग्रहालय (Rare Museum) में से एक पद्मश्री बाबूलाल दहिया (Padmashree Babulal Dahiya) का संग्रहालय भी है. दाहिया ने अपने घर के तीन कमरों को ही संग्रहालय में तब्दील कर दिया है. जहां पर 200 प्रकार के देसी बीज से लेकर भारत के प्राचीन कृषि संसाधन (Ancient Agricultural Resources of India) देखने को मिलते है.
कहां है ये म्यूजियम?
सतना जिले के छोटे से गांव पिथौराबाद में रहने वाले पद्मश्री बाबूलाल दाहिया एक ऐसी सख्सियत हैं, जिन्होंने गांव का नाम अंतरराष्ट्रीय पटल तक पहुंचा दिया. जिन्होंने समूचे गांव को तीर्थ स्थल के रूप में परिवर्तित कर परम्परागत दुर्लभ हो रहे अनाजों के संरक्षण में उम्र गुजार दी. उनके पास 200 से अधिक धान की परंपरागत दुर्लभ किस्में, 15 के लगभग गेहूं व मोटे अनाज सहित सब्जियों आदि की किस्मों का खजाना है.
पद्मश्री बाबूलाल दाहिया बताते हैं कि जब हम राजे महाराजों के किसी प्राचीन वस्तुओ के संग्रहालय में जाते हैं तो वहां उनके भाला, बरछी, ढाल, तलवार आदि सभी प्राचीन आयुध अपने इतिहास के साथ सुव्यवस्थित रूप में मिल जाते हैं. पर हमारी खेती की पद्धति और रहन-सहन बदल जाने से कृषि आश्रिति समाज के लगभग 2000 तरह के तमाम उपकरण यन्त्र एवं वर्तन चलन से बाहर हो कर गुमनामी का रूप ले चुके हैं.
चित्र भी लगाने की योजना है
मशीन युग आने और खेती की पद्धति बदल जाने से आज वह वस्तुए या तो घर के किसी कोने में धूल फांक रही हैं या वहां से निकाल बाहर कर दी गई हैं. इसलिए उन्होंने लकड़ी के उपकरण, लौह उपकरण, मिट्टी के बर्तन एवं वस्तुएं, बांस के बर्तन एवं सामग्री, धातु के बर्तन,पत्थर के बर्तन एवं उपकरण, चर्म वस्तुएं सभी मिलकर लगभग 2000 से अधिक वस्तुएं एक ही छत के नीचे एकत्र किया है. जिसको वर्तमान व भावी पीढ़ी इस संग्रहालय का भ्रमण करके कृषि की विकास यात्रा के बारे में ज्ञान हासिल कर सकेंगी.
विकास की धुरी को घूमते थे देशज इंजीनियर
दाहिया बताते हैं कि संग्रहालय में रखी गई वस्तुएं कृषि आश्रित समाज की जीवन शैली से जुड़ी थीं. गाँव के शिल्पी ही उन्हें बनाते थे. 7 ऐसे शिल्पी थे जो अपनी स्वनिर्मित वस्तुए समूचे समाज को देते थे. जिनमे लौह शिल्पी, काष्ठ शिल्पी, मृदा शिल्पी प्रस्तर शिल्पी, बांस शिल्पी, चर्म शिल्पी, धातु शिल्पी, इन सातों ग्रामीण शिल्पियों के बनाए यंत्रों, उपकरणों एवं परिकल्पित वस्तुएं करीब 2000 से अधिक वस्तुएं संग्रहालय मे रखी गई है. इन तमाम शिल्पियों ने किसी संस्थान में जाकर कभी इसका प्रशिक्षण नहीं लिया था? सारे उपकरण सारे यंत्र खुद ही बनाए और समस्त हुनर की स्वयं ही परिकल्पना करते थे. गाँव की अपनी उस आत्मनिर्भर सरकार में काश्तकार, शिल्पकार एवं कृषि श्रमिक समाज के तमाम लोग थे, जिनके सभी के कृषि उपज के हिस्से बंधे थे. व्यापार बहुत अल्प अवस्था में था. विकास की धुरी ही गाँव से संचालित थी और उस धुरी को घुमाने वाले हमारे इन देशज इंजीनियर ही थे.
संग्रहालय में अस्त्र-शस्त्र भी
कृषि उपकरणों पर आधारित संग्रहालय में जहां अनेक कृषि यंत्र, उपकरण एवं बर्तन हैं. वहीं कुछ अस्त्र शस्त्र भी है. क्योंकि किसान खेत में रात के समय जाते और वहां बस कर जंगली जानवरों से रखवाली करते थे. ऐसे समय में आसन्न खतरों से कुछ अस्त्र-शस्त्र भी रखना जरूरी होता था. इनमें बरछी, गड़ासा, बल्लम, फरसा, तलवार या गुप्ती आति कुल्हाड़ी तो रोजमर्रा की हाथ में रखने वाला अस्त्र थी.
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