
आईआईटी इंदौर (IIT Indore) ने पर्यावरण अनुकूल निर्माण की दिशा में बड़ा कदम उठाते हुए एक नए प्रकार का कांक्रीट विकसित (Concrete Development) किया है, जिसमें सीमेंट का उपयोग नहीं होता है. यह सफलता आईआईटी इंदौर के सिविल इंजीनियरिंग विभाग (Department of Civil Engineering) के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अभिषेक राजपूत और उनकी शोध टीम को मिली है.

जियोपॉलिमर तकनीक (Geopolymer Technology) का उपयोग करके उच्च-क्षमता वाला कांक्रीट बनाया है, जो न केवल पर्यावरण की रक्षा में मदद करता है, बल्कि पारंपरिक कांक्रीट की तुलना में बेहतर प्रदर्शन और लंबे समय तक चलने वाला भी है.
सीमेंट की आवश्यकता हो जाएगी खत्म
साधारण पोर्टलैंड सीमेंट कांक्रीट (पीसीसी,Portland Cement Concrete) कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन के प्रमुख स्रोतों में से एक माना जाता है, जो वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में लगभग 8% का योगदान देता है. सीमेंट बनाने की प्रक्रियाओं, जैसे चूना-पत्थर और ईंधन के दहन के कारण यह हर साल लगभग 2.5 अरब टन कार्बन उत्सर्जित करता है. यह नव विकसित जियोपॉलिमर हाई-स्ट्रेंथ कांक्रीट (जी-एचएससी, Geopolymer High Strength Concrete) सीमेंट की आवश्यकता को पूरी तरह से समाप्त कर देता है.
पानी की नहीं होगी जरूरत
इसके बजाय यह फ्लाई ऐश और ग्राउंड ग्रेन्युलेटेड ब्लास्ट फर्नेस स्लैग (जीजीबीएस) जैसे औद्योगिक अपशिष्ट पदार्थों का उपयोग करता है. एक अन्य लाभ यह है कि इस कांक्रीट को जल उपचार की आवश्यकता नहीं होती है, जिससे पानी की बचत होती है. यह आज के जल संकट के समय में एक महत्वपूर्ण कारक है.
लागत में आएगी कमी
यह नया कांक्रीट कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को 80% तक कम कर सकता है और स्थानीय सामग्रियों के उपयोग से निर्माण लागत में 20% तक की कमी ला सकता है. यह न केवल टिकाऊ होता है, बल्कि किफायती भी होता है.
कम समय में देगा मजबूती
इसकी सबसे उल्लेखनीय विशेषताओं में से एक यह है कि यह बहुत कम समय में अत्यधिक मजबूती प्राप्त कर लेता है. यह केवल तीन दिनों में 80 MPa से अधिक कंप्रेसिव क्षमता प्राप्त कर लेता है. इस तीव्र क्षमता विकास के कारण, यह सैन्य बंकरों, पुलों, आपदा राहत संरचनाओं, पूर्वनिर्मित रेलवे स्लीपरों और राजमार्ग फुटपाथ मरम्मत जैसी अत्यावश्यक निर्माण परियोजनाओं में उपयोग के लिए एकदम सही है.
आईआईटी इंदौर के निदेशक प्रोफेसर सुहास जोशी ने इस नवाचार की सराहना करते हुए कहा, "यह इस बात का एक उत्कृष्ट उदाहरण है कि कैसे आईआईटी इंदौर सतत प्रौद्योगिकी के माध्यम से राष्ट्रीय प्राथमिकताओं में योगदान दे रहा है. इस तरह के विकास भारत के हरित बुनियादी ढांचे और कार्बन तटस्थता के दृष्टिकोण के अनुरूप हैं.
परियोजना के प्रमुख शोधकर्ता डॉ. अभिषेक राजपूत ने कहा "यह विकास हमारे भविष्य के बुनियादी ढांचे को और भी मज़बूत, तेज़ और हरित बनाने के तरीके को बदलने की दिशा में एक कदम है.
ये भी पढ़ें- CBI की MP और दिल्ली-NCR समेत 7 राज्यों में छापामारी, देश में साइबर क्राइम के खिलाफ चल रही बड़ी कार्रवाई