
Shipra River Ujjain: क्षिप्रा नदी (Shipra River) को शुद्ध करने के लिए एक बार फिर मुहिम शुरू हो गई है. मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव (CM Mohan Yadav) की ओर से क्षिप्रा शुद्धिकरण के निर्देश देने के बाद विभिन्न एजेंसियां क्षिप्रा नदी को लेकर योजनाएं बनाती नजर आ रही हैं. लेकिन खास बात यह है कि अधिकारियों को अब तक नहीं पता कि क्षिप्रा में कुल कितने नाले गिर रहे हैं और कहां-कहां से मिल रहे हैं.
नहाने लायक नहीं है क्षिप्रा का पानी
मोक्षदायिनी क्षिप्रा नदी को शुद्ध करने के लिए प्रदेश और केंद्र सरकार ने कई योजनाएं बनाकर साल 2011 से अब तक 750 करोड़ रुपए से अधिक खर्च कर दिए. बावजूद इसके आज भी इंदौर की कान्ह नदी का भारी मात्रा में गंदा पानी राघो पिपलीया और त्रिवेणी से नदी में मिल रहा है. देवास के उद्योगों का गंदा पानी भी अब तक नहीं रोका जा सका है. वहीं शहर के सीवेज का गंदा पानी नाले के द्वारा गऊघाट पर मिलता दिख रहा है.

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खास बात तो यह है कि प्रत्येक स्नान के लिए सबसे महत्वपूर्ण रामघाट पर भी सीवेज और होटलों का गंदा पानी मिल रहा है. विशेषज्ञों की मानें तो क्षिप्रा में वर्तमान में डी केटेगरी का पानी है. इसका मतलब आचमन तो ठीक लेकिन यह नहाने लायक नहीं है.
अब 600 करोड़ रुपए की योजना
मुख्यमंत्री डॉ यादव ने 7 जनवरी को उज्जैन कलेक्टर नीरज कुमार सिंह, इंदौर कलेक्टर आशीष सिंह और देवास कलेक्टर ऋषभ गुप्ता की क्षिप्रा शुद्धिकरण को लेकर बैठक ली थी. शासन ने क्षिप्रा स्वच्छ करने के लिए 600 करोड़ रुपए मंजूर कर दिए, जिसके बाद प्रशासन जुट गया है. मंगलवार सुबह कलेक्टर नीरज सिंह कमिश्नर आशीष पाठक ने घाटों का निरीक्षण किया और शाम को बैठक भी तय कर दी. बावजूद इसके अधिकारियों को यह पता नहीं है कि नदी में कितने नाले गिर रहे हैं.
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नगर निगम पर बाकी 2 हजार करोड़ रुपए
अब तक करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद भी क्षिप्रा साफ नहीं हो पाई है. संत ज्ञानदास ने इसे शुद्ध करने की मांग करते हुए डेढ़ साल तक अन्न त्याग रखा था. बावजूद हर नहान पर पानी साफ करने के लिए नर्मदा का पानी लेना पड़ता है. यही वजह है कि पानी लेने का पिछले 11 साल में एनबीडीए का उज्जैन नगर निगम पर करीब दो हजार करोड़ रुपए बकाया बताया जा रहा है. हालांकि अब केंद्र ने भी क्षिप्रा को शुद्ध करने के लिए 'नमामि गंगे योजना' में शामिल कर लिया है.