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MP का सरकारी कॉन्सेप्ट स्कूल, 90% छात्र झुग्गी बस्तियों से, संस्कार से संविधान तक का सबक

Positive Story: यहां बच्चों को पढ़ाने और उनकी पढ़ाई को इंगेजिंग बनाने के लिए टीचर्स खुद भी घर से तैयारी करके आती हैं. कई बार टीचर्स खुद के खर्च से स्कूल में मदद करती हैं. घर के कई साज-सज्जा के सामान जैसे गमले तोरण लाकर लगाती हैं.

MP का सरकारी कॉन्सेप्ट स्कूल, 90% छात्र झुग्गी बस्तियों से, संस्कार से संविधान तक का सबक
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Government Concept School Bhopal: कहते हैं कि शिक्षा (Education) समाज को बदलने की सबसे बड़ी ताकत है, लेकिन जब संसाधनों की कमी और सुविधाओं की दिक्कत हो, तो यह काम और भी चुनौतीपूर्ण हो जाता है. लेकिन मध्य प्रदेश के एक सरकारी स्कूल (Government School) ने इन मुश्किलों को पीछे छोड़ते हुए जो मिसाल कायम की है, वो सचमुच प्रेरणादायक है. झुग्गी बस्ती (Slum Area) में बसे इस स्कूल में न सिर्फ बच्चों की जिंदगी बदल रही है, बल्कि शिक्षकों की मेहनत और इनोवेशन की कहानी हर किसी को सोचने पर मजबूर कर देती है. चलिए देखते हैं भोपाल के शाहपुरा इलाके के पास बिरसा मुंडा नगर में स्थित बाल हितैषी शासकीय सम्राट अशोक माध्यमिक शाला की खास कहानी.

Positive Story: भोपाल का सरकारी कॉन्सेप्ट स्कूल

Positive Story: भोपाल का सरकारी कॉन्सेप्ट स्कूल
Photo Credit: Ajay Kumar Patel

मध्य प्रदेश के सरकारी स्कूल शिक्षकों की कमी और बुनियादी सुविधा से बुरी तरह जूझ रहे हैं. इस तरह की हेडलाइन और सुर्खियां तो आपने लगभग सालभर देखी और सुनी होंगी. लेकिन अब छोड़ों कल की बातें… कल की बात पुरानी… नए साल में पढ़ना है ये सकारात्मक कहानी… आज हम आपको मध्य प्रदेश के एक सरकारी इंग्लिश मीडियम कॉन्सेप्ट स्कूल लेकर चलते हैं, ये स्कूल भोपाल के शाहपुरा इलाके से लगी हुई झुग्गी बिरसा मुंडा नगर में है. नाम है शासकीय सम्राट अशोक माध्यमिक शाला. इस स्कूल में 90 फीसदी बच्चे झुग्गी बस्ती के हैं. इतना ही नहीं बिना सरकारी मदद के इस स्कूल में इतने काम हुए हैं और बच्चों ने खुद को ऐसे निखारा है कि यकीन ही नहीं होता कि ये कोई सरकारी स्कूल है.

Positive Story: भोपाल का सरकारी कॉन्सेप्ट स्कूल

Positive Story: भोपाल का सरकारी कॉन्सेप्ट स्कूल
Photo Credit: Ajay Kumar Patel

भोपाल के शाहपुरा इलाके से लगी हुई झुग्गी बस्ती के बीच गवर्नमेंट कॉन्सेप्ट स्कूल पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर चलाया जा रहा है. इसका नाम शासकीय सम्राट अशोक माध्यमिक शाला है, यह वार्ड क्रमांक 51 बिरसा मुंडा नगर, शाहपुरा में स्थित है.

पहले यह स्कूल टीटी नगर में स्थित था. लेकिन स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत इसे वहां से विस्थापित किया गया है. स्कूल प्रभारी महेंद्र तिवारी बताते हैं कि इस स्कूल में कुल 213 बच्चे है, जिसमें से प्राइमरी स्कूल में 144 रजिस्टर्ड हैं जबकि मिडिल स्कूल में 69 बच्चे पंजीकृत हैं. जिस दिन NDTV की टीम स्कूल पहुंची उस दिन 213 में से कुल 155 बच्चे उपस्थित थे. इस स्कूल की एक-एक क्लास का दौरा करने पर हमने पाया कि पूरी स्कूल में साफ-सफाई है. पहली कक्षा के बच्चों को टैब के माध्यम से स्मार्ट क्लास जैसे पढ़ाया जा रहा था. बच्चों को क्रिएटिव ढंग से पढ़ाया जा रहा है. हर क्लास में लाइब्रेरी कॉर्नर है, जहां किताबें भी मौजूद हैं. यहां सोलर सिस्टम भी लगा है. क्राफ्ट के लिए एक अलग से कमरा है, जहां बच्चे खुद की क्रिएटिविटी से तरह-तरह के क्रॉफ्ट तैयार करते हैं. इनको सुव्यवस्थित ढंग से संजोकर रखा गया है.

Positive Story: भोपाल का सरकारी कॉन्सेप्ट स्कूल

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Photo Credit: Ajay Kumar Patel

  • 20 बच्चों से शुरु हुआ था सफर, अब 200 पार
  • 90 फीसदी बच्चे झुग्गी बस्तियों के
  • नीपा (National Institute of Educational Planning and Administration) द्वारा सराहा गया
  • सीएसआर की मदद से संवारा स्कूल
  • टीचर खुद सीखते हैं अंग्रेजी
  • हर क्लास में लाइब्रेरी कॉर्नर
  • क्रिएटिव रूम भी बनाया गया
  • दूर से आने वाले बच्चों को रियायती दर पर वैन सुविधा उपलब्ध है
Positive Story: भोपाल का सरकारी कॉन्सेप्ट स्कूल

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Photo Credit: Ajay Kumar Patel

इन दिनों संविधान की चर्चा जोरों पर है ऐसे में यहां लगे एक पोस्टर ने काफी आकर्षित किया, यह पोस्टर था हमारे संविधान की ‘उद्देशिका' का. यहां के बच्चे संविधान और उसमें निहत कुछ अधिकारों को लेकर अपनी बातें भी हमसे साझा की. संविधान फैलो के तौर मुझे एक पोस्टर ने काफी आकर्षित किया, यह पोस्टर था हमारे संविधान की ‘उद्देशिका' का. यहां के बच्चे संविधान और उसमें निहत कुछ अधिकारों को लेकर अपनी बातें भी हमसे साझा की. स्कूल के प्रभारी महेंद्र तिवारी बताते हैं कि हमारे यहां बच्चों को किताबी ज्ञान के साथ-साथ व्यवहारिक नॉलेज भी दिया जाता है. उनको विभिन्न किस्सों के माध्यम से प्रेरित किया जाता है. हर शनिवार बाल कैबिनेट लगायी जाती है

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Photo Credit: Ajay Kumar Patel

पूरे स्कूल में गजब की साफ-सफाई है. पहली कक्षा के बच्चों को टैब के माध्यम से स्मार्ट क्लास जैसे पढ़ाया जा रहा था. हर क्लास में लाइब्रेरी कॉर्नर है, जहां किताबें भी मौजूद हैं. यहां सोलर सिस्टम भी लगा है. क्राफ्ट के लिए एक अलग से कमरा है, जहां बच्चे खुद की क्रिएटिविटी से तरह-तरह के क्रॉफ्ट तैयार करते हैं. इनको सुव्यवस्थित ढंग से संजोकर रखा गया है.

स्कूल में व्यवस्थित तरीके से मिड डे मील कराया जाता है. जिस दिन हम पहुंचे उस दिन हमारे सामने ही हॉट कंटेनर से गुणवत्ता युक्त भोजन परोसा गया. इस स्कूल की पढ़ाई और यहां के माहौल से बच्चे भी काफी खुश हैं.

टीचर्स का क्या कहना है?

यहां की शिक्षिका विनीता मैम और शिवानी मैम का कहना है कि चूंकि ये स्कूल इंग्लिश मीडियम है. ऐसे में हमें खुद से यह प्रेरणा मिलती है कि हम भी यहां अंग्रेजी में बात करने और शब्दों को सीखने-समझने में हिस्सा लें. इसके लिए हम खुद पढ़ाई करते हैं. कुछ चीजें जो समझ में नहीं आती उन्हें घर से पढ़कर आते हैं. इंटरनेट पर समझते हैं. कई शब्दों को समझने के लिए शब्दकोश की मदद भी लेते हैं.

Positive Story: भोपाल का सरकारी कॉन्सेप्ट स्कूल

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Photo Credit: Ajay Kumar Patel

शिक्षा में संवैधानिक मूल्य

शिक्षा में संवैधानिक मूल्यों की बात करें तो इसमें सहानुभूति, दूसरों के प्रति सम्मान, स्वच्छता, शिष्टाचार, लोकतांत्रिक भावना, सार्वजनिक संपत्ति के प्रति सम्मान, वैज्ञानिक दृष्टिकोण, स्वतंत्रता, जिम्मेदारी, बहुलवाद और न्याय यानी विभिन्न समूहों को स्वतंत्र रूप से विकास करने और राजनीतिक प्रक्रिया में भाग लेने जैसे कारक आते हैं. इस स्कूल में कई जगहों पर संवैधानिक मूल्यों का सुंदर उदाहरण देखने को मिलता है जबकि कुछ जगहों पर उसका ह्रास भी देखने को मिल रहा है.

शुरुआती दौर के बारे में स्कूल प्रभारी बताते हैं कि जब यहां स्कूल शिफ्ट हुआ तो कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ा. कभी सिस्टम से भिड़ना पड़ा तो कभी झुग्गी बस्ती के बच्चों व उनके अभिभावकों को समझाना पड़ा. यहां स्कूल स्थापित करने में कई अड़ंगे आए, लेकिन किसी तरह से उन अड़चनों को दूर किया. उसके बाद यहां झुग्गी बस्ती में गाली-गलौज और मारपीट देखकर बच्चे बिगड़ रहे थे, किसी का सम्मान नहीं करते थे, कुछ काफी शर्मीले थे. ऐसे में न केवल बच्चों की बल्कि उनके पैरेंट्स की काउंसलिंग की बल्कि बच्चों को खुलकर अपनी बात रखने के लिए प्रोत्साहित किया गया.

महेंद्र तिवारी बताते हैं कि जब उनका स्कूल यहां शुरू हुआ तब 10-20 बच्चे ही स्कूल में थे लेकिन अब ये आंकड़ा 200 के पार पहुंच गया है. इस कॉन्सेप्ट स्कूल की वजह 4-5 प्राइवेट स्कूल आस-पास के बंद हो गए. स्कूल प्रभारी ने आगे बताया कि बिना सरकारी मदद के व्यक्तिगत स्तर पर और कई संस्थानों की मदद से स्कूल को बनाने का प्रयास जारी है. SBI की मदद से कंप्यूटर सिस्टम और कुर्सियां मिली हैं. कुछ समय पहले ही SBI के सहयोग से पेंटिंग भी करवायी गई है. किसी के सहयोग से किताबें व छोटी सी लाइब्रेरी बनायी गई, तो वहीं बच्चों को समझाने के लिए बॉडी पार्ट्स व बॉयोलॉजी के प्रोजेक्ट्स रखे गए हैं.

Positive Story: भोपाल का सरकारी कॉन्सेप्ट स्कूल

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Photo Credit: Ajay Kumar Patel

यहां सभी क्लास में कुर्सी और बेंच की बैठक व्यवस्था है. यहां के रिजल्ट भी शानदार हैं. हिंदी मीडियम का 100 प्रतिशत तो अंग्रेजी माध्यम का 85 फीसदी रहा.

बच्चों का क्या कहना है?

इस स्कूल की पढ़ाई और यहां के माहौल से बच्चे भी काफी खुश हैं. उनका कहना है कि यह स्कूल घर जैसा लगता है. यहां के सर और मैडम, माता-पिता की तरह बर्ताव करते हैं. बड़े ही प्यार से समझाया और पढ़ाया जाता है. कुछ दिनों पहले NIPA यानी राष्ट्रीय शैक्षिक योजना और प्रशासन संस्थान (National Institute of Educational Planning and Administration) की टीम ने इस स्कूल का दौरा किया था. ये टीम देश भर के ऐसे स्कूलों का दौरा कर रही है जो अपने आप में कुछ खास हैं. वहीं अब इस स्कूल के लिए अच्छी खबर यह है कि नीपा की टीम की ओर इस स्कूल की न केवल सराहना की गई है बल्कि पूरे स्कूल स्टॉफ को दिल्ली में सम्मानित करने की बात भी कही गई है. इसके अलावा स्कूल प्रभारी ने बताया कि उनसे कॉल करके इस पूरे कॉन्सेप्ट और मॉडल की विस्तृत जानकारी मांगी गई है.

व्यवस्था है तो कुछ सामजिक और सरकारी समस्याएं भी हैं...

स्कूल परिसर के एक हिस्से में मंदिर बना हुआ. ये साफ तौर पर अतिक्रमण है, शिकायत के बाद भी एक्शन नहीं हुआ. मेन रोड़ से एप्रोच रोड़ की हालात बहुत खराब है. धूल भरी रहती है. सड़क बनाने की गुहार लगाई अब तक सुनवाई नहीं हुई. आस-पास के लोगों ने स्कूल के किनारे अवैध कब्जा कर रखा है जिससे कई क्लास में एयर फ्लो नहीं है.

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एक चेहरा प्रदेश की सरकारी स्कूलों का यह भी है

स्कूल शिक्षा विभाग के आंकड़ें दर्शाते हैं कि वर्ष 2023-24 में पंजीकृत छात्रों की संख्या की तुलना में वर्ष 2024-25 में 23 लाख 73 हजार 458 कम बच्चों का रजिस्ट्रेशन हुआ है. यानि 23 लाख से ज्यादा छात्रों का स्कूलों से मोहभंग हो गया है. इतना बड़ा आंकड़ा आने के बाद सरकार के कान खड़े हो गए थे तब सरकार ने ऐसे ड्रॉपआउट छात्रों को ढूंढने के लिए  शिक्षकों की ड्यूटी लगाई. ऐसे विद्यार्थियों को खोजकर वापस स्कूल में नामांकन करवाने व नामांकित विद्यार्थियों की मैपिंग करवाने के निर्देश दिए गए थे.

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वहीं मध्यप्रदेश के सरकारी स्कूलों में शिक्षकों के करीब 89 हजार पद खाली हैं. प्रदेश के सरकारी स्कूलों में पढ़ाने वाले शिक्षकों की कमी किसी से छिपी नहीं है. यहां 70 हजार से ज्यादा अतिथि शिक्षकों को पढ़ाने के लिए लगाया गया है. कुछ रिपोर्ट कहती हैं कि इनमें से कईयों पास न तो बच्चों को पढ़ाने का पर्याप्त अनुभव है और न ही इन्हें विभागीय प्रशिक्षण दिया जाता है. कई सरकारी स्कूलों में इंग्लिश मीडियम के टीचर ही नहीं हैं. इसके अलावा सरकारी स्कूल में बच्चों को दिया जाने वाला मध्यान्ह भोजन और नि:शुल्क यूनीफार्म व किताब वितरण में भी खामियों की खबर उजागर होती रहती है.

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