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Gwalior News: मध्य प्रदेश के ग्वालियर में गंभीर बीमारियों का उपचार वेटिंग पर है. चंबल से लेकर बुंदेलखंड और पड़ोसी राज्य यूपी और राजस्थान से आने वाले गंभीर मरीजों क़े लिए ग्वालियर में त्वरित इलाज संभव नहीं है. दरअसल, यहां क़े सबसे बड़े सरकारी अस्पताल मे एमआरआईं से लेकर एक्स-रे तक के लिए लम्बी वेटिंग हैं. लापरवाही का आलम ये है कि जिला अस्पताल में मशीन इंस्टॉल हुए महीनों गुजर गए लेकिन उद्घाटन न होने से वह ताले मे कैद है.
ग्वालियर का जयारोग चिकित्सा समूह शासकीय गजराजा मेडिकल कॉलेज संचालित करता है. इसमें एक हजार बिस्तर क़े साथ, बच्चों और महिलाओं का कमलाराजा अस्पताल, न्यूरो अस्पताल और हार्ट संबंधी बीमारियों क़े अलग अलग अस्पताल हैं. यहां एमपी ही नहीं यूपी और राजस्थान तक से गंभीर मरीज आते हैं लेकिन यहां आकर उनको उपचार शुरू कराने में ही बड़ी दिक्क़त हो रही है. बजह है जाँच न हो पाना. सबसे बड़ी दिक्क़त एमआरआईं जैसी सबसे जरूरी जांच की लम्बी वेटिंग. यहां यह जांच सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल में होती है. इसके लिए अभी एक दो दिन या हफ्ते की नहीं बल्कि पूरे दो महीने की वेटिंग चल रही है. यानी आज नंबर लगाया तो अप्रैल में एमआरआईं हो सकेगी.
लंबा इंतजार क्यों?
असल मे पूरे जेएएच अस्पताल परिसर मे एमआरआईं करने क़े लिए सिर्फ एक मशीन है. तकनीकी क्षमता के अनुसार, इस मशीन से एक दिन में महज 25 मरीजों की ही जांच हो पाती है. जबकि लगभग 100 पेशेंट को यहां जांच कराने क़े लिए डॉक्टर्स भेजते हैं. यानी 75 लोग हर रोज नई वेटिंग मे चले जाते हैं. अभी यह वेटिंग दो महीने की चल रही है.
सरकार ने उठाया ये कदम लेकिन...
जयारोग अस्पताल से इस जांच की भीड़ कम कर लोगों को राहत देने क़े लिए सरकार ने जिला चिकित्सालय मुरार मे पीपीपी मॉडल पर एक एमआरआईं जांच मशीन लगाने का प्रयास भी किया. मशीन स्थापित भी हो गई लेकिन अफसरों की लापरवाही क़े कारण वह चालू ही नहीं हो पा रही है. सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल क़े अधीक्षक डॉ जीएस गुप्ता का कहना है कि सुबह आठ बजे से रात 11 बजे तक यहां हर रोज लगभग 25 एमआरआई जांच होती हैं जबकि जांच के लिए रोजाना 100 से अधिक मरीज आते हैं. इस कारण मरीजों को लंबी तारीख देना पड़ती है. अगर जिला अस्पताल की मशीन शुरू हो जाए तो यहां का दवाब कम होगा.
कैसे कम होगा इंतजार?
उधर गजराराजा मेडिकल कॉलेज क़े डीन डॉ आरक़ेएस धाकड़ का कहना है कि उनके यहां हर रोज तीन से चार हजार मरीज ओपीडी में आते हैं जबकि ढाई हजार भर्ती होकर उपचार करवाते हैँ. एक एमआरआईं में लगभग 45 मिनट लगते हैं. तो समझा जा सकता है कि कितनी जांच हो सकती है. हमने व्यवस्था ये की है कि जो गंभीर मरीज भर्ती हैं उनकी जांच प्राथमिकता पर होगी. जाहिर है कि बाह्य मरीजों को तारीख देनी ही पडती है. डॉ धाकड़ का कहना है कि हमने शासन से एक सीटी स्कैन और एक एमआरआईं मशीन की डिमांड और की है अगर ये मिल जाती है तो ज्यादा जांच कर सकेंगे और वेटिंग भी घट जाएगी.
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