
Madhya Pradesh News: इस बार आईपीएल में न कोई गीली पिच थी, न मौसम का बहाना. इस बार जब गेंद हवा में घूमी, तो उसमें मध्यप्रदेश के नाम की गूंज थी... मानो इंदौर, भोपाल, रतलाम, रीवा, मऊगंज, सिवनी… सभी शहर बल्ले की धार पर कविता हो गए हों. आईपीएल 2025 का फाइनल और आख़िरी ओवर में सिर्फ़ छह रन का फ़ासला नहीं था, वो एक पूरी पीढ़ी की हिचकी थी – एक तरफ़ इंदौर का बेटा रजत पाटीदार, जो अब रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर का कप्तान है; दूसरी तरफ़ भोपाल का ‘हिटमैन' शशांक सिंह, जो अकेले दम पर 191 रन का पीछा कर रहा था. दोनों बेटे मध्यप्रदेश की मिट्टी से निकले – एक लक्ष्य बचा रहा था, दूसरा इतिहास लिखने दौड़ रहा था. शशांक का बल्ला बोलता रहा – 30 गेंदों पर नाबाद 61 रन. और पाटीदार खामोशी से कप्तानी करता रहा – मानो इंदौर की होलकर अकादमी की सारी ट्रेनिंग उस एक शाम में उतर आई हो.
MP के 11 खिलाड़ी IPL में चमक रहे हैं
खेल के आख़िरी ओवर में सिर्फ़ छह रन का फ़ासला नहीं था. वो उन सालों का फ़ासला था, जब मध्यप्रदेश का क्रिकेट सिर्फ़ चयन सूची के आख़िरी कॉलम में दिखता था – नज़र भरकर नहीं, सिर झुकाकर. शशांक हार नहीं गया...बस जीत थोड़ी किस्मतवालों के पाले में चली गई – उस कोहली-पाटीदार जोड़ी के पास, जिनका 18 साल का सूखा आखिरकार खत्म हुआ. पर इस हार में एक और जीत में छुपी थी – मध्यप्रदेश की जीत. जहां कभी सिर्फ़ भोपाल की हॉकी गूंजती थी, वहां अब 11 से ज़्यादा खिलाड़ी आईपीएल में चमक रहे हैं – आवेश खान, वेंकटेश अय्यर, शशांक सिंह, माधव तिवारी, अनिकेत वर्मा... और लंबी सूची है. एक बार 2023 के विधानसभा चुनाव में एक राजनीतिक दल ने वादा किया था –"हम मध्यप्रदेश की अपनी IPL टीम बनाएंगे." लेकिन सत्ता की पिच पर वे आउट हो गए. लेकिन मैदान के बच्चों ने खेल से जवाब दिया –"टीम भले न हो, पर हम हैं और हमारी गेंद, हमारा बल्ला, हमारी कहानी अब सब देख रहे हैं. प्रभाष जोशी ने कभी लिखा था – “खेल सिर्फ जीतने की चतुराई नहीं, हारने की विनम्रता भी सिखाता है.” तो इस बार एमपी ने विनम्रता में गर्व, और जीत में सादगी दिखाई.

रतलाम के आशुतोष अपने परिवार के साथ...अब वे स्टार क्रिकेटर हैं
नर्मदा की लय और सिवनी का विश्वास
ये कहानी रजत पाटीदार की है, जिनके कवर ड्राइव में होलकर स्टेडियम की गरिमा है. वो शशांक सिंह हैं, जिनका मुंह कम बल्ला ज़्यादा बोलता है, और ये कहानी आवेश की है, जिसने गेंद को सिर्फ फेंका नहीं, मैदान पर आत्मा की तरह विचराया. वेंकटेश अय्यर ने कोलकाता में जो विस्फोट किया, उसमें नर्मदा की लय थी. अरशद खान की यॉर्कर में सिवनी का विश्वास था. अनिकेत वर्मा की छक्कों में भोपाल के पुराने बोरिंग मैदान की धूल थी. रीवा के कुलदीप सेन के पिता बोले – “बेटा भले टीम में नहीं खेला, पर लड़ाई तो उसने भी लड़ी.“ ये सिर्फ भावुक लाइन नहीं थी – ये उस समाज की पहचान है जहां ‘खेल' अब करियर नहीं, चरित्र बन गया है. राम अत्रे हों या हेमकांत चौहान – ये वो कोच हैं जो गालियों में गाइडेंस और थप्पड़ में सीख भरते हैं. इनका क्रिकेट, शेर की तरह डपट कर सिखाता है – और पिता की तरह चुप रहकर आशीर्वाद देता है.
“संघर्ष से चमक तक – एक ‘मालवा मूवमेंट'”
एक वक़्त था जब मध्यप्रदेश के लिए खेल जगत की सबसे बड़ी खबर यही होती थी कि कोई लड़का नेट्स तक पहुंच गया है. अब खबर ये है कि उसी नेट्स से निकलकर कप्तानी तक पहुंच गया. 2011 में शुरू हुई एमपीसीए की ‘प्रशिक्षण योजना' अब एक विराट प्रयोगशाला बन चुकी है. तभी तो राज्य के खेल मंत्री विश्वास सारंग विश्वास से कहते हैं – “अब हमारी खुद की आईपीएल टीम का सपना है”. अब ये कोई राजनीतिक वायदा नहीं,ये उस मां की आंख का सपना है –जिसने बेटे के बल्ले पर राखी बांधकर कहा था – "तू छक्का मारना, भले शादी में ना आ पाना. " “यह सिर्फ IPL नहीं था... यह मध्यप्रदेश का आत्मबोध था” मुंबई की टीम हार गई, लेकिन मध्यप्रदेश जीत गया – क्योंकि यहां हारने वाले खिलाड़ी अब ये कहते नहीं थकते –“पापा, अगली बार ट्रॉफी नहीं, आपको स्टेडियम में लाऊंगा”
“खेल का असली धर्म – आत्मा की जीत”
एमपी के मैदान मंदिर नहीं – 'आंगन' हैं. जहां कोई भी बच्चा बल्ला उठाकर खुद को विराट समझ सकता है और वो कोच उसे ये कहने से नहीं रोकता – बल्कि धीरे से सिर पर हाथ रखकर कहता है –
"बेटा, कवर ड्राइव में कविता रखनी है...बाकी सब छक्के से निपट जाएगा. यहां अब खेल सिर्फ आंकड़ों की कहानी नहीं...यह रजत की मुस्कान, शशांक की चुप्पी, आशुतोष की मां की ताली, और कुलदीप के पिता की दुकान है. तो खेल के इस समाज में मध्यप्रदेश अब सिर्फ खिलाड़ी नहीं, रचयिता बन चुका है.
इंदौर के शांत स्वभाव वाले रजत पाटीदार ने रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर को पहली बार आईपीएल चैंपियन बनाया. भोपाल के शांत फिनिशर शशांक सिंह ने पंजाब किंग्स को फाइनल तक पहुंचाया. कोलकाता नाइट राइडर्स के उपकप्तान बने वेंकटेश अय्यर इस सीजन के सबसे ज्यादा कमाई करने वाले खिलाड़ी रहे, तो इंदौर के ही आवेश खान अब भारत की नई तेज गेंदबाजी की पहचान बन चुके हैं. अब इन्हें आप जोड़िए अशुतोष शर्मा की स्थिरता, अनिकेत वर्मा की छक्कों की आंधी और अरशद खान की रॉ स्विंग से — तो आपको एक ऐसी टीम मिलती है जो खुद एक आईपीएल फ्रेंचाइज़ी हो सकती है.
इस बार मध्यप्रदेश का जलवा बोला!
क्योंकि आईपीएल 2025... लेकिन इस बार सिर्फ गेंद और बल्ला नहीं चला... इस बार मध्यप्रदेश का जलवा बोला! क्रिकेट के इस महामंच पर एमपी ने वो कर दिखाया,जिसकी कल्पना कुछ साल पहले तक एक सपना लगती थी. अब एमपी सिर्फ दर्शक नहीं...खिलाड़ी बन चुका है, नायक बन चुका है. इस साल आईपीएल के 18वें सीजन में मध्यप्रदेश के 11 खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया... और 11 सितारे तो अब तक टूर्नामेंट की कहानी खुद लिख रहे हैं.रजत पाटीदार, वेंकटेश अय्यर, आवेश खान, शशांक सिंह, और आशुतोष शर्मा... ये खिलाड़ी एमपी के उन मैदानों से निकले हैं, जहां पहले सिर्फ रणजी ट्रॉफी की उम्मीदें पलती थीं.अब वहीं से IPL का तूफ़ान उठ रहा है. कभी मध्यप्रदेश का क्रिकेट सिर्फ होलकर स्टेडियम में सीमित था … अब वह इंडियन प्रीमियर लीग में सिर्फ जर्सी नहीं, इतिहास लिख रहा है.
इंदौर के राजकुमार रजत पाटीदार और भोपाल का खामोश फिनिशर शशांक सिंह...
IPL 2025 का फाइनल एक क्रिकेट मैच नहीं था, यह तो 'मालवा बनाम नवाब', 'बट्टा बनाम ब्रश स्टोक', और 'कहानी बनाम कविता' जैसा कुछ था. रजत ने कप्तानी का चोगा पहना और विराट कोहली के उत्तराधिकारी की तरह खेला — एक क्लासिक कवर ड्राइव मारा, तो इंदौर में चाय की दुकानों पर ‘रजत चौक' बन गया.वहीं, शशांक सिंह ने जैसे बल्ले में चुप्पी भर ली हो लेकिन जब छक्के मारे, तो भोपाल के झीलों में लहरें उठीं. रजत ने जहां 41 गेंदों में 74 रन जड़कर बेंगलुरु को 191 पर पहुंचाया, वहीं शशांक ने 30 गेंदों पर नाबाद 61 रन ठोके —एक ऐसा पीछा जिसमें जान थी, जज़्बा था... पर किस्मत नहीं. खेल में हार-जीत की जगह होती है, लेकिन खेल को जीतने का तरीका – वो सिर्फ खिलाड़ी नहीं, संस्कृति गढ़ता है. मध्यप्रदेश अब क्रिकेट में ‘संस्कृति' गढ़ रहा है।
इंदौर के रजत पाटीदार – होलकर मैदान से आईपीएल की कप्तानी तक का सफर।
भोपाल के शशांक सिंह – 'रेलवे स्टेशन के पास के मैदान से पंजाब किंग्स के स्टार तक।'
रजत का क्रिकेट सफर शुरू हुआ था इंदौर के विजय क्रिकेट क्लब से... 7 साल की उम्र में समर कैंप में पहुंचे इस शर्मीले बच्चे को उनके कोच राम अत्रे ने पहचाना और तराशा. रजत जब भी इंदौर आते हैं, अपने पुराने क्लब में बच्चों को ट्रेनिंग देते हैं, उनकी गलतियां सुधारते हैं.अत्रे ने कहा - रजत बचपन से ही शर्मीला था, साल 2000 में पहली बार समर कैंप में यह 7 वर्षीय बालक पहुंचा था जिसके बाद उसने आईपीएल और इंटरनेशनल क्रिकेट तक का सफर तय किया. रजत पाटीदार अपने लीडरशिप क्वालिटीज के लिए पहचाने जाते हैं और कहीं ना कहीं उनकी इस लीडरशिप ने आरसीबी को इस बार यह खिताब जिताया है. क्रिकेट का जज्बा रजत के अंदर देखने को मिलता है. शुरू से ही कभी विकेट कीपिंग, कभी बैटिंग तो कभी बॉलिंग करते हुए उन्हें देखा जा सकता था. कोच राम अत्रे बताते हैं ऐसा एक भी क्षण नहीं रहा जब रजत ग्राउंड पर हों और वो बैठे हों. उनका पूरा परिवार सरल और शांत स्वभाव का है. शुरू में भी जब रजत खेलने आते थे तब उनके अभिभावक दूर से उन्हें देखा करते थे. वे आज भी ग्लैमर से दूर रहने का प्रयास करते हैं.
रतलाम से निकले रॉकस्टार आशुतोष शर्मा
आइए अब रतलाम के आशुतोष शर्मा की गली में चलते हैं – जहां प्लास्टिक की गेंद से क्रिकेट शुरू हुआ. पिता रामबाबू सरकारी कर्मचारी थे, मां हेमलता अब हर बाउंड्री पर ताली बजाती हैं. बचपन में कहा जाता था – पढ़ाई नहीं करेगा तो क्या क्रिकेटर बनेगा? अब कहा जाता है – क्रिकेटर बन जा,पढ़ाई तो सबने कर ली है!आशुतोष ने इंदौर में पढ़ाई पूरी की और वहीं से पेशेवर क्रिकेट प्रशिक्षण प्राप्त किया. उन्होंने 2018 में मध्य प्रदेश की रणजी टीम से डेब्यू किया, लेकिन 2020 में टीम से बाहर कर दिए जाने पर वे मानसिक रूप से टूट गए. इस दौरान उन्होंने रेलवे में नौकरी भी की, लेकिन क्रिकेट से जुड़ाव बना रहा और उन्होंने हार नहीं मानी.
उन्होंने इस विश्वास को सही ठहराया और लखनऊ सुपर जायंट्स के खिलाफ 31 गेंदों में नाबाद 66 रन बनाकर टीम को एक विकेट से जीत दिलाई. हाल ही में इंग्लैंड में हुए एक क्लब मैच में उन्होंने 70 गेंदों में शतक जड़ा, जिसमें 8 चौके और 6 छक्के शामिल थे.आशुतोष की सफलता के पीछे उनके परिवार का बड़ा योगदान रहा है. उनके पिता श्री रामबाबू शर्मा, जो अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं, सरकारी कर्मचारी थे। वे बताते हैं कि बचपन में आशुतोष को क्रिकेट का ऐसा जुनून था कि कई बार उन्हें डांटना भी पड़ता था. मां हेमलता शर्मा आज अपने बेटे की उपलब्धियों को देखकर फूली नहीं समातीं. वे हर मैच देखती हैं और बेटे का हर स्कोर उन्हें याद रहता है. उन्होंने बताया कि अब वे चाहती हैं कि आशुतोष जल्द ही भारतीय टीम के लिए खेलें और विवाह भी करें, लेकिन आशुतोष अभी शादी के लिए तैयार नहीं हैं.आशुतोष के बड़े भाई अनिल शर्मा का कहना है कि उनका भाई आज भी अगर किसी बात को लेकर परेशान होता है तो रात दो बजे भी फोन करके सलाह लेता है. आशुतोष को हर जरूरत में सबसे पहले अपने भाई की ही याद आती है.
अनिकेत ठोक चुके हैं एक ओवर में 6 छक्के
भोपाल से निकले अनिकेत वर्मा, पैदा झांसी में हुए लेकिन अब ज़रा ध्यान दीजिए – इस खिलाड़ी का न कोई फर्स्ट क्लास रिकॉर्ड था,न लिस्ट-ए.. यानी क्रिकेट के रजिस्टर में उसका नाम तब तक नहीं था, जब तक उसने मैदान पर बल्ले से दस्तखत नहीं किए. एक ओवर में छह छक्के मारने वाले अनिकेत ने वो कर दिखाया जो कई मंत्री सिर्फ भाषणों में करते हैं – जनता का दिल जीतना. रीवा में मैच हारने के बाद भी जश्न की तैयारी थी – लड्डू भी बंधवाए थे. लेकिन जब पंजाब फाइनल हार गई, तो पिता रामपाल सेन फिर से अपनी सैलून दुकान में लौट गए. कहते हैं – “बेटा भले न खेले, लेकिन टीम को फाइनल तक तो ले आया।” भांजियों ने कहा – “हमारा मामा लकी है, अगली बार मामा खेलेगा और टीम जीतेगी.
15 किमी साइकिल चला कर प्रैक्टिस करने आते आवेश खान
आवेश खान और वेंकटेश अय्यर -एक ने 140 की स्पीड से डर पैदा किया, दूसरा कोलकाता का भरोसा बना. आवेश कभी अमय खुरासिया के ट्रायल में दिखे थे – और अब भारत के भरोसेमंद तेज़ गेंदबाज हैं. कोच कपिल यादव बताते हैं 11 साल की उम्र में आवेश ने उनके साथ ट्रेनिंग शुरू कर दी थी, शुरुआती दौर में इंदौर के तुलसी नगर इलाके में स्थित उनके क्लब में आवेश 15 किलोमीटर साइकिल चलाकर पहुंचते थे इसके बाद भी उनका जज्बा कम नहीं होता था. हर दिन उनका टारगेट 20 स्टंप गिराने का रहता था, जिसकी लगातार प्रैक्टिस करते रहने से उन्होंने आईपीएल में तेज गेंदबाजों की लिस्ट में अपना नाम दर्ज करवाया है. सबसे पहले दिन में स्कूल से आने के बाद 1:00 बजे ग्राउंड पहुंचते थे और रात को वापस घर जाते थे.
इन सब कठिनाइयों के बावजूद आवेश के अभिभावकों ने हमेशा उनके साथ दिया.आईपीएल में बढ़ते इंदौरी खिलाड़ियों की संख्या पर कोच कपिल यादव कहते हैं इसका पूरा श्रेय इंदौर डिविजन को जाता है, इंदौर डिविजन में अब 20 से अधिक ए ग्रेड क्लब शामिल हो चुके हैं वही पहले सिर्फ 10 ए ग्रेड क्लब शामिल थे, आसपास के छोटे शहरों से भी बच्चे इंदौर पहुंच कर इन ए ग्रेड क्लब में प्रैक्टिस कर रहे हैं.
GT का सबसे खतरनाक हथियार हैं अरशद खान
गुजरात टाइटन्स के साथ पहले ही सीजन में अरशद खान का जलवा दिखा. सिवनी के इस तेज़ गेंदबाज़ की स्विंग और यॉर्कर ने उन्हें GT का सबसे खतरनाक हथियार बना दिया. अरशद अब सिर्फ बॉल नहीं फेंकते… वो विपक्ष की उम्मीदें गिराते हैं. उनकी मां आलिया खान ने कहा बहुत खुशी होती है मुझे, बहुत बड़ी तमन्ना है कि अल्लाह बेटे को भारतीय टीम में खेलते दिखाया. उनके भाई जकारिया ने कहा हमारे घर में पूरा माहौल क्रिकेट का है, गांव में एमसीसी क्रिकेट क्लब था हमारे अब्बू ने अरशद पर बहुत मेहनत की है. अरशद जितना बेहतरीन स्विंग बॉलर है, उतना ही अच्छा बैट्समैन भी है. अब हम सबकी ख्वाहिश है कि वो नीली जर्सी में हो, भारतीय टीम से खेले. उनके पिता अशफाक़ खान ने उनकी पुरानी पारियों को याद करते हुए कहा -सीके नायडू में असम के खिलाफ नौवें नंबर पर खेलते हुए सेंचुरी मारी थी फिर मुंबई के खिलाफ भी 80 से ज्यादा रन बनाए. बहुत बड़ी तमन्ना है कि अरशद को नीली जर्सी में भारतीय टीम में देखें. मुझे जबलपुर उसे बस से ले जाना पड़ता था, सिवनी जाना होता था तो कई बार सुबह 4 बजे छोड़ना पड़ता था.मुझे लगता है सभी लोग अपनी औलाद के लिये करते हैं हमारे घर में, गांव में टर्फ क्रिकेट की कमी महसूस होती थी लेकिन जब आगे बढ़ गया खेलते हुए तो इसकी भरपाई हो गई.
क्रिकेट की नसों में मध्यप्रदेश दौड़ रहा है
इनके अलावा एमपी के कुमार कार्तिकेय (RR), अनिकेत वर्मा (भोपाल), माधव तिवारी (मऊगंज), कुलवंत खेझरोलिया (GT) जैसे कई सितारे इस बार आईपीएल की टीमों का हिस्सा बने. एमपी क्रिकेट अब सिर्फ एक टीम नहीं… ये एक आंदोलन बन चुका है.क्रिकेट यहां धर्म नहीं, कर्म है. मैदान मंदिर नहीं, वह आँगन है – जहां कोई भी बच्चा बल्ला उठाकर खुद को विराट समझ लेता है. कभी एमपी से सिर्फ चार खिलाड़ियों ने टेस्ट क्रिकेट खेला, और पांच ने वनडे… लेकिन अब आईपीएल 2025 में एमपी संयुक्त रूप से पांचवें स्थान पर है – उत्तर प्रदेश के बराबर, 11 खिलाड़ियों के साथ.
इस बदलाव की जड़ें हैं — 2011 में शुरू हुआ MPCA का एज-ग्रुप कोचिंग प्रोग्राम, 2024 में शुरू हुई MPL लीग और चंद्रकांत पंडित का अनुशासन लाने वाला नेतृत्व. MPCA अध्यक्ष अभिलाष खंडेकर कहते हैं, “ये सफलता अचानक नहीं आई है। यह सालों की मेहनत, योजना और अनुशासन का नतीजा है।” ग्वालियर, भोपाल, जबलपुर, सागर, होशंगाबाद और रीवा जैसे शहरों में अब सब-अकेडमीज़ चल रही हैं, जहां छोटे शहरों के बच्चों को भी समान अवसर मिल रहे हैं.
"क्रिकेट अब धूल में जन्म लेता है, नीतियों में नहीं"
2011 में होलकर स्टेडियम की मिट्टी पर एक बीज बोया गया — नाम रखा गया "सतत प्रशिक्षण योजना". उम्र 12 से 15 साल, और सपना वही पुराना – टीम इंडिया की जर्सी, लेकिन रास्ता नया – कोचिंग, मेहनत और यकीन. उसी योजना से निकले आवेश खान, आशुतोष शर्मा और राहुल बाथम – जिन्हें कोई सेलेक्शन कमेटी नहीं पहचानती थी, पर जिनकी गेंद और बल्ला मैदान को पहचानते थे. और फिर आया 2024-25 — जब मध्यप्रदेश ने अपनी खुद की प्रीमियर लीग रची, एमपीएल। न आईपीएल का शोर, न दिल्ली-मुंबई की चमक। बस मऊगंज से माधव तिवारी और भोपाल से अनिकेत वर्मा — जिन्होंने एमपीएल की लाल मिट्टी से सीधे आईपीएल की नीली स्क्रीन तक छलांग मारी.
रीवा की मिट्टी, सिवनी की हवा, मंडला की ऊबड़-खाबड़ गलियों से भी अब गेंदबाज़ निकल रहे हैं, जिनकी गेंद टीवी पर घूमती है. और अब जब चंबल की भी फ्रेंचाइज़ी है, तो समझिए कि मध्यप्रदेश के क्रिकेट में अब डकैत नहीं, बल्लेबाज़ पैदा हो रहे हैं. महिलाओं के लिए भी अपनी टी-20 लीग शुरू हो चुकी है — यानी, मैदान अब सबके लिए खुला है. जो दौड़ना चाहता है, वो दौड़े... कौन पूछता है कि तुम लड़का हो या लड़की?
जब MP खेलता है तो देश देखता है
खेल मंत्री का बयान आता है – “अब एमपी की खुद की आईपीएल टीम चाहिए।” बिलकुल चाहिए, पर टीम नहीं, पूरी की पूरी स्क्रिप्ट ही चाहिए – एमपी की मिट्टी से लिखी गई.और यह संयोग नहीं था। यह संघर्ष की संगत थी - मध्यप्रदेश अब सिर्फ नायक नहीं बन रहा... वो खेल के उस आखिरी ओवर में मौजूद है, जहां स्टेडियम चिल्ला रहा होता है – और कोई चुपचाप बल्ला घुमा देता है.अब मांग उठ रही है — मध्य प्रदेश को अपनी IPL टीम मिलनी चाहिए। खेल मंत्री विश्वास सारंग कहते हैं, “खिलाड़ी तैयार हैं, इन्फ्रास्ट्रक्चर मजबूत है। टीम होगी तो सपना और बड़ा होगा.” आईपीएल 2025 सिर्फ रन और विकेट की कहानी नहीं थी, यह पहचान की पुनर्खोज थी. होलकर से लेकर ईडन गार्डन तक, रतलाम की गलियों से लेकर बेंगलुरु के पोडियम तक — मध्य प्रदेश ने वो कहानी लिखी है जिसमें क्रिकेट एक खेल नहीं, बल्कि साहस, संघर्ष और सफलता की परिभाषा बन गया है.जब IPL 2025 का आखिरी ओवर पड़ा और रजत पाटीदार ने ट्रॉफी उठाई — तो सिर्फ बैंगलोर नहीं, इंदौर ने भी जश्न मनाया. भोपाल ने भी, रतलाम ने भी, और हर वो बच्चा भी जो अभी प्लास्टिक की गेंद से गली में खेल रहा है, एक दिन कुछ बड़ा करने के सपने के साथ. क्योंकि अब,जब MP खेलता है तो देश देखता है.
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