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Mahatma Gandhi Jayanti 2024: हे राम! इस 'गांधी गांव' में दम तोड़ रहा 'चरखा', आजीविका पर मंडराया संकट

Gandhi Jayanti 2024: गांधी जयंती पर चरखा की चर्चा बहुत जरूरी है. चरखा आत्मनिर्भरता का बड़ा साधन था, लेकिन मध्य प्रदेश के मैहर में गांधी गांव का चरखा अब दम तोड़ता दिख रहा है. यहां के पाल परिवार पर अब रोजी रोटी का संकट आ पड़ा है. आइए देखिए NDTV की स्पेशल रिपोर्ट.

Mahatma Gandhi Jayanti 2024: हे राम! इस 'गांधी गांव' में दम तोड़ रहा 'चरखा', आजीविका पर मंडराया संकट

Mahatma Gandhi Jayanti 2024: राष्ट्रपिता महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) के सम्मान में देश में तमाम योजनाएं, संग्रहालय बनाए गए हैं. वहीं राष्ट्रपिता के पद चिन्हों पर चलने के लिए संकल्पित मैहर (Maihar) जिले के 'गांधी गांव' (Gandhi Village) सुलखमा को अब तक कोई सरकारी मदद तक नसीब नहीं हो पायी. गांधी जयंती (Gandhi Jayanti) पर जब भी सुलखमा का जिक्र किया जाता है, तो प्रशासन के लोग दशा और दिशा सुधारने के लिए वादे तो करते हैं, लेकिन स्थिति जस की तस रही. अब तक सतना जिले की प्रशासनिक उपेक्षा को झेलते रहे इस गांव के लोग नये जिले मैहर पर निर्भर हैं. देखना होगा कि इस गांव की किस्मत कब तक बदलती है?

चरखे पर निर्भर है आजीविका

इस गांव का जीवन यापन गांधी जी के चरखे पर निर्भर है. यहां भेड़ों से बालों को चरखे से काटकर कंबल बनाए जाते हैं. गांव वाले लंबे समय से अपना जीवन यापन इसी से करते हैं. गांधीजी की विरासत को अपने जीवन यापन का साधन बनाने के बाद भी इस काम से ग्रामीणों की मजदूरी तक नहीं निकल पा रही. आजादी के बाद से बुनियादी सुविधाओं की राह देख रहे इस गांधी गांव में सरकारी मदद के अभाव में चरखा विलुप्त होने की कगार पर है.

सरकार और अधिकारी आये और गये, लेकिन गांव वालों को केवल आश्वासन ही हाथ लगा. गांधी जयंती पर 02 अक्टूबर को पूरे देश मे समारोह हो रहे हैं हर साल से होते भी आ रहे हैं, लेकिन गांधीवादी सुलखमा गांव के हाल दिया तले अंधेरा जैसे ही रह गए.

कहां है ये गांव?

महात्मा गांधी के विचारों पर चलने वाले इस गांव को गांधीवादी गांव के नाम से जाना जाता है. जो कि मैहर जिला मुख्यालय से 55 किमी दूर है. यहां के सभी घरों ने गांधी के विचार और आदर्श को न सिर्फ चरखे के रूप में अपनाया बल्कि अपने जीवन यापन का साधन भी बना लिया. आज भी गांव वालों की जिंदगी चरखे के भरोसे चलती है. जिस दिन चरखा नहीं चलता, घर का चूल्हा नहीं जलता. भेड़ो के बाल को धुनकर ऊन बनाना, ऊन से धागा पिंड बनाना, फिर चरखे से धागा कातकर कंबल बनाना. इतनी कवायद और मशक्कत के बाद तैयार माल औने पौने दामों पर बिकता है.

मुश्किल में ग्रामीणों का जीवन

ग्रामीण अब मजबूरी में चरखा चला रहे हैं. यहां तैयार माल का बाजार नहीं बन सका और न ही व्यापारी यहां आते हैं. सरकारी कोशिशें भी नकाफी साबित हुई है. देश आजाद हुआ. गांधी को राष्ट्रपिता का दर्जा मिला, लेकिन आज़ादी के 78 साल बाद भी गांधी के विचार, आदर्श और परंपरा निभाने वाला गांव सुलखमा गरीबी-भुखमरी से आजाद नहीं हो सका.

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