Gadapahra Fort Mystery: बुन्देलखण्ड अपने वीर इतिहास, किलों और सांस्कृतिक विरासत के कारण देश-दुनिया में जाना जाता है. यहां के किले न सिर्फ स्थापत्य कला के उदाहरण हैं, बल्कि अपने भीतर कई अंजान कहानियां भी समेटे हुए हैं. इन्हीं में से एक है सागर का गढ़पहरा किला (Gadapahra Fort)... जिसकी कहानी सुनकर आज भी लोगों की रूह कांप उठती है. विश्वासघात, प्रेम और श्राप से भरी यह दास्तान चार 400 वर्ष पुरानी है, लेकिन इसके रहस्य आज भी स्थानीय लोगों के मन-मस्तिष्क में जीवित हैं.
किले से सुनाई देती हैं घुंघरू की आवाज
गढ़पहरा किला अब खंडहर में तब्दील हो चुका है. टूटी दीवारें, जर्जर महल और वीरान रास्ते आज भी बीते युग की करुण कथा सुनाते प्रतीत होते हैं. लोग बताते हैं कि इस किले के आसपास अक्सर अजीब-सी आवाजें सुनाई देती हैं. कभी किसी नटनी के घुंघरू बजते प्रतीत होते हैं तो कभी पहाड़ियों से आती चीखें किला परिसर में गूंज जाती हैं. यही वजह है कि स्थानीय लोग सूर्यास्त के बाद इस क्षेत्र में जाने से कतराते हैं.
हालांकि दिन में पर्यटक यहां घूमने आते हैं और कई लोग यहां प्री-वेडिंग शूट भी करवाते हैं, लेकिन शाम ढलते ही यह स्थान पूरी तरह वीरान हो जाता है.

कैसे उजड़ गया दांगी राजपूत का शासन?
गढ़पहरा किले से जुड़ी यह कथा 1500 ईसवी के आसपास की मानी जाती है, जब यहां दांगी राजपूतों का शासन था. उसी समय राज्य में एक नट और नटनी अपनी अद्भुत कलाबाजियों के लिए प्रसिद्ध थे. जब उनकी कला की चर्चा राजा तक पहुंची, तो उन्हें किले में विशेष प्रदर्शन के लिए बुलाया गया. राजा ने उनके सामने एक कठिन चुनौती रखी—किले से दूर घाटी तक बांधी गई रस्सी पर चलकर जाना. यदि नट दंपत्ति यह कारनामा कर देते, तो राजा राज्य का आधा हिस्सा उन्हें दान में देने वाला था.

राजा का मन भले ही उदार था, लेकिन रानी इस निर्णय के बिलकुल पक्ष में नहीं थीं. उन्हें भय था कि यदि नट-नटनी सफल हो गए, तो राज्य का बड़ा हिस्सा हाथ से निकल जाएगा. इसी ईर्ष्या ने आगे चलकर इस राज्य का विनाश कर दिया.
नर्तकी ने दिया था श्राप
चुनौती के तहत नटनी ने रस्सी पर चलना शुरू किया. लोग सांस थामकर इस अद्भुत करतब को देख रहे थे. नटनी आधी दूरी पार कर चुकी थी और जीत का पल करीब था. तभी रानी ने अपने स्वार्थवश धोखे से रस्सी काट दी. अचानक रस्सी टूटने से नटनी गहरी घाटी में गिर पड़ी. घायल नटनी की मौके पर ही मृत्यु हो गई. मरने से पूर्व उसने श्राप दिया- 'जिस राज्य में विश्वासघात की नींव पड़ी है, वह राज्य जल्द ही नष्ट होगा.'

धूल में मिल गया शीशमहल
अपनी पत्नी की मौत से व्यथित नट ने भी वहीं प्राण त्याग दिए. कहते हैं कि उस श्राप के बाद राज्य धीरे-धीरे खत्म हो गया. महल उजड़ गया, शीशमहल धूल में मिल गया और गढ़पहरा किला खंडहर बनकर रह गया.
किंवदंती यह भी है कि इस विश्वासघात की साजिश का राजा को जीवनभर पता नहीं चला. यदि वह जान जाता, तो रानी को दंडित करना निश्चित था, लेकिन सच्चाई अनजानी ही रह गई.
रात होते ही आती है रहस्यमय आवाजें
स्थानीय लोग मानते हैं कि नटनी-नट की आत्माएं आज भी इस किले में भटकती हैं. पर्वतों से आने वाली अजीब आवाजें, घुंघरुओं की झंकार और रात में किसी स्त्री के लाल जोड़े में वाहन के पीछे दौड़ने की कथाएं वर्षों से सुनाई जाती रही हैं. कई ग्रामीण दावा करते हैं कि शाम के बाद इस क्षेत्र में कदम रखते ही अजीब-सा बोझ और डर महसूस होता है.
गढ़पहरा किला आज भी रहस्य, लोक-कथाओं और इतिहास का संगम बना हुआ है. इसकी वीरान दीवारें प्रेम, कला और विश्वासघात की वह कहानी आज भी बयां करती हैं, जिसने पूरे राज्य का भाग्य बदल दिया था.
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