MP के इस किले में दबी है औरंगजेब की 'तिजोरी'! सोने के सिक्के ढूंढने आते हैं लोग
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मध्य प्रदेश के बुरहानपुर से लगभग 20 KM दूर स्थित असीरगढ़ किला अपने रहस्यमयी इतिहास, अद्भुत वास्तुकला और रणनीतिक महत्व के लिए जाना जाता है.
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यह किला मध्य प्रदेश के बुरहानपुर जिले में सतपुड़ा की पहाड़ियों पर स्थित है.
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इस किलों को मराठों और मुगल शासक औगरंजेब ने अपना ठिकाना बनाया था.
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कहा जाता है कि इस किले में आज भी औरंगजेब की 'तिजोरी' दबी हुई है.
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वहीं इस किले में आस पास के लोग सोने के सिक्के ढूंढने आते हैं. हाल ही में इस किले में सैंकड़ों लोग मोबाइल टॉर्च लेकर पहुंच गए और खुदाई करने लगे.
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दरअसल, मूवी छावा में भी बताया गया कि इस किले में औरंगजेब का खजाना था. जिसके बाद यहां लोग खजाना ढूंढने पहुंच गए
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स्थानीय लोगों का भी मानना है कि इस किले में अभी भी सोना छिपा है.
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यह किला लोकप्रिय पर्यटन स्थल के लिए भी फेमस है.
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ये किला 9वीं-10वीं शताब्दी में बना और इस पर मुगलों, मराठों और अंग्रेजों का शासन रहा.
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दरअसल, असीरगढ़ किला के चारों ओर गहरी खाई है. ऐसे में यहां दुश्मनों का पहुंचना आसान नहीं था. इसलिए मुगलों, मराठों और अंग्रेजों ने अपने शासन के दौरान इसे अपना ठिकाना बनाया.
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इस किलों को 'दक्षिण का द्वार' भी कहा जाता है. वहीं इस किले के अंदर एक मस्जिद, एक शिव मंदिर और एक महल है.
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ये किला तीन भागों में बंटा हुआ है- असिर्गगढ़, कमरगढ़ और मलयगढ़.
असिर्गगढ़- पहला भाग है, कमरगढ़- दूसरा भाग है, त्रिकोणीय आकार वाला मलयगढ़- तीसरा भाग है.
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असीरगढ़ किले का निर्माण 9वीं-10वीं शताब्दी में अहीर राजा असीराज ने करवाया था. इसी राजा के नाम पर इस किले का नाम असीरगढ़ पड़ा.
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1600 ई. में मुगल सम्राट अकबर ने इस किले पर आक्रमण कर अपने कब्जे में ले लिया.
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हालांकि बाद में ये किला मराठों के कब्जे में आ गया, लेकिन 1819 ई. में अंग्रेजों ने इसे अपने अधीन कर लिया था.
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