पीएचई घोटाले में आखिरकार आरोपियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली गई है. लंबे समय के इंतजार के बाद ट्रेजरी ने अपनी जांच रिपोर्ट पुलिस को सौंप दी है, जिसके बाद पुलिस ने यह कार्रवाई की. जांच रिपोर्ट में डीडीओ सहित 74 लोगों को दोषी ठहराया गया है. घोटाले में शामिल आरोपियों में विभाग के कई इंजीनियर भी शामिल हैं, जिनमें से कुछ रिटायर भी हो चुके हैं. मामले में चौंकाने वाली बात यह है कि घोटाले का मुख्य आरोपी विभाग में काम करने वाला पंप ऑपरेटर निकला और उसने घोटाले के पैसों से पांच करोड़ की लागत से एक आलीशान होटल भी बनवाया है.
घोटाले की रकम से पांच करोड़ का होटल बनाया
जांच में पाया गया कि इस घोटाले का आरोपी पम्प अटेंडर हीरालाल है. उसने अपने एक रिश्तेदार के लड़के को अवैध रूप से कम्प्यूटर ऑपरेटर के रूप में रखा था. इन दोनों ने मिलकर ही इस घोटाले को अंजाम दिया. जांच कर रहे एएसपी ऋषिकेश मीणा ने बताया कि कई ऐसे खाते भी सामने आए हैं जो किसी विभाग में कर्मचारी ही नहीं हैं. इन लोगों को दूसरे स्थान पर ट्रांसफर बताकर वेतन खाते शुरु किए गए और इनमें वेतन जारी कर दूसरे खातों में ट्रांसफर किए गए. मीणा ने बताया कि पीएचई घोटाले में खाताधारकों से पूछताछ से उनके खाते में ट्रांसफर की गई धनराशि होटल निर्माण के लिए दिए जाने की बात बताई गई. जिसके बाद इस होटल की बिक्री रोकने के लिए एसडीएम को पत्र लिखा गया है.
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16.42 करोड़ का हुआ घोटाला
आपको बता दें कि वेतन और भत्तों के नाम पर पीएचई विभाग में 16.42 करोड़ रुपए का घोटाला पकड़ा गया था. जिसके बाद ट्रेजरी ने इस घोटाले की जांच की. जिसमें डीडीओ सहित उन 74 लोगों की संलिप्तता पाई गई, जिनके नाम पर बैंक खाते खोले गए और खातों में रकम भेजी गई थी. एसपी राजेश चंदेल का कहना है कि ट्रेजरी की रिपोर्ट में डीडीओ सहित 74 लोगों की संलिप्तता पाई गई है. एएसपी ऋषिकेश मीणा ने बताया कि यह घोटाला बढ़कर 40 करोड़ रुपए तक पहुंच सकता है. मीणा ने कहा कि जो घोटाला उजागर हुआ वह 2018 का है जबकि घोटाले की प्रक्रिया उससे भी काफी पहले से चल रही थी. 2018 के बाद ट्रेजरी से भुगतान का सॉफ्टवेयर बदला गया तब यह घोटाला सामने आया.
ऐसे उजागर हुआ यह घोटाला
दरअसल, एजी की सॉफ्टवेयर जांच में पता चला कि ग्वालियर में एक खाते में बार-बार आईडी और पासवर्ड बदलकर लगातार पैसे ट्रांसफर हो रहे हैं. इस खाते से करोड़ों की राशि भेजी गई थी. इस संदिग्ध खाते से 71 लोगों के बैंक खातों में 16 करोड़ 24 लाख रुपए की राशि भेजी गई थी. इस सूचना के बाद आयुक्त कोष और लेखा ने एक जांच कमेटी बनाई. मामला सामने आने पर पीएचई विभाग के मुख्य अभियंता ने भी जांच शुरू करने का आदेश दिया, लेकिन कई महीने बीत जाने के बावजूद भी जांच रिपोर्ट नहीं आई. हारकर मुख्य अभियंता आरएलएस मौर्य ने कार्यपालन यंत्री को कहकर मामले की रिपोर्ट पुलिस में दर्ज करवाई.
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कैसे किया एक पम्प ऑपरेटर ने करोड़ों का घोटाला?
जांच पड़ताल में पता चला कि इस घोटाले का मुख्य आरोपी पीएचई विभाग के खंड क्रमांक एक में पम्प अटेंडर हीरालाल है. चौंकाने वाली बात यह है कि अफसरों ने इस चतुर्थ श्रेणी स्तर के कर्मचारी को न केवल करोड़ों के लेनदेन करने वाला एकाउंटेंट का काम दिया, बल्कि उसे क्रिएटर भी बना दिया. जिसके बाद उसने ओटीपी लेकर डीडीओ की जगह अपना मोबाइल नंबर जोड़ लिया. छह साल के दौरान विभाग में कई अधीक्षण यंत्री और कार्यपालन यंत्री आए गए और डीडीओ भी रहे, लेकिन किसी ने भी यह जानने की कोशिश नहीं की कि बिल भुगतान के ओटीपी उनके निजी मोबाइल पर क्यों नहीं आते? इससे अधिकारियों की भूमिका भी संदिग्ध हो जाती है.