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Indian Democracy: पेंशन का टेंशन! बेसहारों पर महंगाई की मार; करोड़पति नेता नहीं ले रहे डकार, ऐसे हैं आंकड़े

MP News: प्रश्न यह है कि जब करोड़पति विधायक अपनी जेबें भरने के लिए राज्य की ग़रीब जनता पर अतिरिक्त बोझ डाल सकते हैं, तो क्यों वही सरकारें करोड़ों विधवाओं, बुज़ुर्गों और विकलांगों को ₹300 पर ज़िंदा रहने को मजबूर रखती हैं? क्यों पेंशन की रकम बढ़ाने का कोई प्रस्ताव तक नहीं है?

Indian Democracy: पेंशन का टेंशन! बेसहारों पर महंगाई की मार; करोड़पति नेता नहीं ले रहे डकार, ऐसे हैं आंकड़े
Indian Democracy: पेंशन का टेंशन! बेसहारों पर महंगाई की मार; करोड़पति नेता नहीं ले रहे डकार, ऐसे हैं आंकड़ें

Economic Inequality: भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था का सबसे क्रूर मज़ाक शायद यही है जहाँ करोड़पति विधायक और मंत्री अपनी तनख्वाह और पेंशन बढ़ाने में एकजुट हैं, वहीं करोड़ों बूढ़े, विधवाएँ और दिव्यांग आज भी ₹300 से ₹500 महीने की पेंशन पर गुज़ारा करने को मजबूर हैं. यह रकम 13 से 18 साल से एक रु. भी नहीं बढ़ी. जबकि इस दौरान महँगाई कई गुना बढ़ चुकी है और नेताओं की सुविधाएँ कई बार. नीमच, मध्यप्रदेश के आरटीआई कार्यकर्ता चंद्रशेखर गौड़ को ग्रामीण विकास मंत्रालय से मिले जवाब में यह पूरी हक़ीक़त दर्ज है.

अमीरी-गरीबी की खाई

राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (NSAP) 15 अगस्त 1995 को शुरू हुआ था. तब इसमें तीन योजनाएँ थीं वृद्धावस्था पेंशन, राष्ट्रीय पारिवारिक लाभ योजना और मातृत्व लाभ योजना. वर्ष 2000 में अन्नपूर्णा योजना जोड़ी गई और मातृत्व योजना स्वास्थ्य मंत्रालय को सौंप दी गई.

साल 2007 में "निर्धन" की परिभाषा हटाकर बीपीएल मानक लागू किया गया और पेंशन ₹75 से बढ़ाकर ₹200 कर दी गई. 2009 में विधवा और विकलांग पेंशन योजनाएँ शुरू हुईं. 2011 में 80 साल से ऊपर बुजुर्गों के लिए ₹500 और 2012 में विधवाओं व विकलांगों के लिए ₹300 तय किया गया. इसके बाद से अब तक कोई बढ़ोतरी नहीं हुई.

आज की स्थिति यह है कि 40–79 साल की विधवाओं को ₹300 और 80 साल से ऊपर की विधवाओं को ₹500 मिलते हैं. वृद्धावस्था और दिव्यांग पेंशन भी इन्हीं दरों पर अटकी हुई है. आरटीआई साफ़ कहती है न रकम बढ़ाने का कोई प्रस्ताव है और न उम्र की सीमा घटाने की तैयारी.

2024–25 के आँकड़े बताते हैं, वृद्धावस्था पेंशन: 1.47 करोड़ बुज़ुर्गों को ₹6843 करोड़, विधवा पेंशन: 1.02 करोड़ महिलाओं को ₹3610 करोड़. दिव्यांग पेंशन: 8.5 लाख विकलांगों को ₹243 करोड़. कागज़ पर यह करोड़ों की राशि है, लेकिन हक़ीक़त में हर लाभार्थी को रोज़ाना ₹10–15 से ज़्यादा नहीं मिलता.

अब ज़रा मध्यप्रदेश विधानसभा की तस्वीर देखिए. पिछले नौ साल से विधायक ₹30,000 वेतन और ₹35,000 चुनाव भत्ता समेत कुल ₹1.1 लाख मासिक ले रहे हैं. अब विधानसभा ने प्रस्ताव दिया है कि इसमें ₹50,000 की बढ़ोतरी की जाए, ताकि वेतन ₹1.6 लाख हो जाए. इतना ही नहीं, पूर्व विधायकों की पेंशन ₹35,000 से बढ़ाकर ₹70,000 करने का भी प्रस्ताव है. अगर यह लागू हुआ तो एमपी के विधायक राजस्थान और गुजरात से भी ज़्यादा कमा लेंगे.

ADR की रिपोर्ट क्या कहती है?

विधायकों के पास और भी सुविधाएँ हैं पहली श्रेणी एसी में सालाना 10,000 किलोमीटर रेल यात्रा मुफ़्त, हर मीटिंग में ₹2500 डेली अलाउंस, ₹10,000 मेडिकल भत्ता. मंत्रियों की स्थिति और भी आलीशान है मुख्यमंत्री ₹2 लाख, कैबिनेट मंत्री ₹1.7 लाख, राज्य मंत्री ₹1.45 लाख और विधानसभा अध्यक्ष ₹1.87 लाख. प्रस्तावित बढ़ोतरी के बाद सरकार पर अतिरिक्त ₹99 लाख का बोझ आएगा.

एसोसिएशन फ़ॉर डेमोक्रेटिक रिफ़ॉर्म्स (ADR) की 2023 की रिपोर्ट के मुताबिक, मध्यप्रदेश के 230 विधायकों में से 205 करोड़पति हैं. इनमें से 102 विधायकों की संपत्ति ₹5 करोड़ से ज़्यादा है. फिर भी, सभी दलों के नेता वेतन बढ़ाने की पैरवी में एकजुट हैं. कांग्रेस विधायक आतिफ़ अकील कहते हैं “अगर सैलरी बढ़ी तो हम क्षेत्र का विकास बेहतर कर पाएँगे.” वहीं भाजपा के पूर्व मंत्री अरविंद भदौरिया कहते हैं “विधायक का वेतन वेतन नहीं, मानदेय है, इसे सेवा भाव से देखना चाहिए और बढ़ाना चाहिए.”

प्रश्न यह है कि जब करोड़पति विधायक अपनी जेबें भरने के लिए राज्य की ग़रीब जनता पर अतिरिक्त बोझ डाल सकते हैं, तो क्यों वही सरकारें करोड़ों विधवाओं, बुज़ुर्गों और विकलांगों को ₹300 पर ज़िंदा रहने को मजबूर रखती हैं? क्यों पेंशन की रकम बढ़ाने का कोई प्रस्ताव तक नहीं है?

सच्चाई यही है सामाजिक सुरक्षा पेंशन अब सुरक्षा नहीं, एक सांत्वना प्रमाणपत्र बन गई है. आँकड़े दिखाकर सरकारें वाहवाही लूटती हैं, मगर ज़मीनी हक़ीक़त में यह गरीबों के साथ एक निर्मम मज़ाक है.

भारत की लोकतंत्र व्यवस्था पर यह प्रश्नचिह्न है क्या यह व्यवस्था इसलिए है कि अमीर नेता और ज़्यादा अमीर हों, और गरीब केवल आँकड़ों की फाइलों में जिंदा गिने जाएँ? जब जनता के प्रतिनिधि करोड़पति हों और जनता को ₹300 पेंशन पर छोड़ा जाए, तो यह सिर्फ़ नीतिगत विफलता नहीं, बल्कि सामाजिक अन्याय का सबसे भयानक रूप है.

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