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'चाक पर घूमती जिंदगी, ठहरी उम्मीदें...' अब मिट्टी भी मिलना मुश्किल, कहानी कुम्हार की

Singrauli News: सुरेश प्रजापति बताते हैं कि 'जमीनी स्तर पर काम करने वाले कुम्हार को किसी भी तरह की मदद नहीं मिलती. पहले मिट्टी आसानी से मिल जाती थी, लेकिन अब इसका भी मिलना मुश्किल होता जा रहा है.

'चाक पर घूमती जिंदगी, ठहरी उम्मीदें...' अब मिट्टी भी मिलना मुश्किल, कहानी कुम्हार की

MP Kumhar Community: कहते हैं, हर सभ्यता की शुरुआत मिट्टी से हुई है. मिट्टी ही वह आधार है जिसने हमें घर, चूल्हा और सभ्यता का निर्माण करना सिखाया. इसी मिट्टी को अपने हुनर और मेहनत से कला का रूप देने वाले कुम्हार समाज ने हमारे जीवन में अनगिनत छाप छोड़ी हैं. लेकिन, आज वही समाज उपेक्षा, असमानता और संघर्ष के अंधकार में गुम होता जा रहा है. मध्यप्रदेश के सिंगरौली जिले के कुम्हार समाज की यह कहानी हर उस दिल को झकझोरती है जो विकास के नारे लगाता है, लेकिन उन हाथों की मेहनत को अनदेखा करता है जो मिट्टी से सपने गढ़ते हैं.

सिंगरौली जिले के माजन इलाके में सैकड़ों कुम्हार परिवार रहते हैं, जो मिट्टी के बर्तन बनाते हैं और उन्हें खुद ही बेचते हैं. 'NDTVMPCG' से खास बातचीत में कुम्हारों ने अपनी पीड़ा बयां की. उन्होंने बताया कि मिट्टी ही हमारी जिंदगी है, इसी से हमारे जीवन में उजाला आया है. कई पीढ़ियों से मिट्टी से ही आजीविका चल रही है. हम मिट्टी से कई प्रकार के उत्पाद तैयार करते हैं.

माना जाता है कि कुम्हार सबसे पहले उस समुदाय में से हैं, जिन्होंने धरती की मिट्टी की अहमियत को पहचाना और चाक का आविष्कार किया. मिट्टी के बर्तन, दीये, घड़े और मूर्तियां बनाकर उन्होंने हमारी रोजमर्रा की जिंदगी को सरल बनाया, शादी–विवाह की परंपराओं से लेकर त्योहारों तक, कुम्हार के बनाए बर्तन हर जगह अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं. लेकिन, आज यह परंपरागत कला आधुनिकता की चकाचौंध और उपेक्षा के कारण खोती जा रही है.

अब मिट्टी भी आसानी से नहीं मिलती 

सुरेश प्रजापति बताते हैं कि 'जमीनी स्तर पर काम करने वाले कुम्हार को किसी भी तरह की मदद नहीं मिलती. पहले मिट्टी आसानी से मिल जाती थी, लेकिन अब इसका भी मिलना मुश्किल होता जा रहा है. हमें सरकार की ओर से कोई मदद नहीं मिलती. मध्यप्रदेश के कुछ जिलों में कुम्हारों की स्थिति पहले के मुकाबले बेहतर हुई है, लेकिन सिंगरौली जिले में कुछ नहीं बदला. 

रोजगार ही नहीं, परंपरा और संस्कृति की विरासत  

इसका पीछे सबसे बड़ा कारण यह है कि लोग अब बाजारों से सजे-धजे बिजली के लैंप या सजावटी लाइटें खरीदने लगे हैं, जिससे पारंपरिक दीयों की मांग घट रही है. लेकिन फिर भी सिंगरौली जिले के कुम्हार हिम्मत नहीं हारते, वे इस हुनर को पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ा रहे हैं. बच्चों को चाक चलाना और मिट्टी से दीप बनाना सिखा रहे हैं. उनके लिए यह सिर्फ रोजगार नहीं बल्कि परंपरा और संस्कृति की विरासत है. दीवाली के मौके पर कुम्हारों की एक ही अपील है कि लोग दिवाली ही नहीं हर मौके पर मिट्टी के दीये और अन्य सामान जरूर खरीदें, जिससे उनकी मेहनत और परंपरा ही नहीं पर्यावरण भी बचा रहे.

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