
Rape Victime In MP: मध्य प्रदेश विधानसभा में मंगलवार को विपक्षी विधायक आरिफ मसूद के सवाल के जवाब में मध्य प्रदेश सरकार ने प्रदेश में दलित और आदिवासी महिलाओं के साथ रोजाना हो रहे यौन अपराध के चौंकाने वाले आंकड़े पेश किए. इन आंकड़ों ने समाज में मौजूद जातिगत और लैंगिक हिंसा की भयावह सच्चाई को एक बार फिर सामने ला दिया है.
ये भी पढ़ें-पश्चिम बंगाल, असम और बिहार से आकर ग्वालियर में रह रहे हैं 94 बांग्लादेशी? पुलिस की रडार पर आए सभी संदेही
2022 से 2024 के बीच कुल 7418 SC- ST महिलाओं के साथ रेप हुआ
मध्य प्रदेश विधानसभा के मानसून सत्र के सदन में रखे गए आंकड़ों के मुताबिक बीते तीन वर्षों यानी 2022 से 2024 के बीच राज्य में कुल 7418 अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) वर्ग की महिलाओं के साथ बलात्कार की घटनाएं घटी. इनमें 558 महिलाओं की हत्या, और 338 महिलाओं के साथ गैंगरेप की घटनाएं दर्ज हुईं.
प्रदेश में औसतन हर दिन 5 SC/ST महिलाएं यौन हिंसा की शिकार हुईं
आंकड़े दर्शाते है कि प्रदेश में औसतन हर दिन 7 दलित या आदिवासी महिलाओं के साथ रेप हुआ. इस अंतराल में कुल 1906 महिलाओं को घरेलू हिंसा की शिकार हुईं. यानी हर दिन दो SC/ST महिलाएं अपने ही घर में प्रताड़ना झेलती रहींं. इस दौरान 5983 महिलाओं से छेड़छाड़ की घटनाएं दर्ज हुईं, यानी हर दिन 5 SC/ST महिलाएं यौन हिंसा की शिकार हुईं.
ये भी पढ़ें-शातिर ठग ने दक्षिणा का दिखाया सब्जबाग, 21 पुरोहितों के साथ किया ठगी का अनुष्ठान, फिर मोबाइल बंदकर हुआ फरार
ये भी पढ़ें-Mr. Zero: मध्य प्रदेश में है भारत का सबसे 'गरीब' इंसान, सालाना इनकम है शून्य रुपए!
हाशिए पर खड़े वर्गों की महिलाएं आज भी हैं सबसे ज्यादा असुरक्षित
गौरतलब है मध्य प्रदेश की कुल आबादी का करीब 38 फीसदी हिस्सा SC/ST समुदायों से आता है, जिसमें 16 फीसदी SC और 22 फीसदी ST हैं, इसके बावजूद इतने व्यापक स्तर पर अपराध यह दर्शाता है कि समाज के सबसे हाशिए पर खड़े वर्गों की महिलाएं आज भी सबसे ज्यादा असुरक्षित हैं.
ये भी पढ़ें-मानसून में किसानों का हितैषी अनोखा यंत्र, जमीन पर पटकते ही कोसों दूर भागता है बड़े से बड़ा सांप!
आजादी के 76 साल बाद भी SC-ST महिलाओं की सुरक्षा की गारंटी नहीं ?
विधानसभा में पेश इन आंकड़ों से सवाल खड़ा होता है कि क्या हमारे कानून, हमारी व्यवस्था, और हमारी सोच अब भी इन वर्गों की महिलाओं की सुरक्षा की गारंटी नहीं दे पा रही है? और सबसे गंभीर सवाल ये क्या ये सिर्फ आंकड़े हैं, या उन हज़ारों जिंदगियों की चीखें, जो कभी अदालत तक नहीं पहुंच पाईं?