
Madhya Pradesh High Court: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में गुरुवार का दिन ऐतिहासिक रहा. दरअसल, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में गुरुवार को 10 नवनियुक्त न्यायाधीशों ने गरिमामय समारोह में अपने पद की शपथ ली. कोर्ट रूम क्रमांक-एक में आयोजित इस शपथ ग्रहण समारोह की अध्यक्षता मुख्य न्यायाधीश संजीव सचदेवा ने की.
शपथ लेने वालों में पुष्पेंद्र यादव, जय कुमार पिल्लई, आनंद सिंह बहरावत, हिमांशु जोशी, अजय कुमार निरंकारी के अलावा, अतिरिक्त न्यायाधीश रामकुमार चौबे, राजेश कुमार गुप्ता, आलोक अवस्थी, रत्नेश चंद्र सिंह बिसेन एवं भगवती प्रसाद शर्मा शामिल रहे. सभी ने एक स्वर में कहा कि "जो जिम्मेदारी हमें सौंपी गई है, उसे हम पूर्ण निष्ठा, न्यायप्रियता और कर्तव्यबोध के साथ निभाने के लिए कृतसंकल्प हैं."
वकीलों ने दी शुभकामनाएं
कार्यक्रम की शुरुआत रजिस्ट्रार जनरल धरमिंदर सिंह की ओर से सभी नियुक्ति-पत्रों के वाचन से हुई. इसके बाद वरिष्ठ वकीलों ने नव नियुक्त न्यायाधीशों के प्रति शुभकामनाएं व्यक्त करते हुए उनके न्यायिक दृष्टिकोण, व्यवहार और व्यक्तित्व को रेखांकित किया. शपथ ग्रहण समारोह में महाधिवक्ता प्रशांत सिंह, एमपी स्टेट बार काउंसिल के चेयरमैन राधेलाल गुप्ता, सीनियर एडवोकेट काउंसिल की अध्यक्ष शोभा मेनन, हाई कोर्ट बार अध्यक्ष धन्य कुमार जैन, एडवोकेट्स बार एसोसिएशन अध्यक्ष संजय अग्रवाल, और केंद्र सरकार के स्थायी अधिवक्ता पीयूष भटनागर सहित इंदौर व ग्वालियर बार के प्रतिनिधि भी उपस्थित रहे. सभी ने इस अवसर को न्यायपालिका के लिए एक सकारात्मक संकेत बताया.
अब हाईकोर्ट में नौ पद बचे रिक्त
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में न्यायाधीशों के स्वीकृत पदों की संख्या 53 है. दस नए न्यायाधीशों के शामिल होने के बाद अब कुल 44 जज कार्यरत हैं. यानी अब सिर्फ 9 पद रिक्त बचे हैं, जो न्यायिक प्रक्रिया की सुचारुता के लिहाज से एक महत्वपूर्ण उपलब्धि मानी जा रही है.
हाई कोर्ट बार एसोसिएशन का अभिनंदन समारोह
इसके बाद शाम को हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के सिल्वर जुबली आदर्श सभागार में एक विशेष अभिनंदन समारोह आयोजित किया गया, जिसमें नव नियुक्त सभी दस न्यायाधीशों के साथ-साथ न्यायमूर्ति दीपक खोट और न्यायमूर्ति विवेक सिंह का भी सादर स्वागत किया गया. इस अवसर पर न्यायमूर्ति गणों के मार्गदर्शकों, परिजनों और सहयोगियों के प्रति उनके भावुक आभार ने माहौल को और गरिमा प्रदान की.
यह समारोह न केवल न्यायिक प्रणाली के सशक्तिकरण की दिशा में एक सार्थक कदम था, बल्कि न्यायिक आस्थाओं के प्रति जनविश्वास को भी और सुदृढ़ करने वाला क्षण बन गया.