
MP Assembly Monsoon Session 2025: 28 जुलाई से शुरू हो रहे मध्यप्रदेश विधानसभा के मानसून सत्र से पहले ही एक नया आदेश राजनीतिक विवाद का कारण बन गया है. विधानसभा सचिवालय ने आदेश जारी कर सदन परिसर में किसी भी तरह की नारेबाजी, प्रतीकात्मक प्रदर्शन पर रोक लगा दी है. विपक्ष ने इस कदम को लोकतांत्रिक अधिकारों पर हमला बताया है और सवाल उठाया है कि क्या अब जनप्रतिनिधि विरोध भी नहीं कर सकते?
MP विधानसभा परिसर में नारेबाजी और प्रदर्शन पर रोक
पिछले कुछ सत्रों में कांग्रेस ने अपने विरोध प्रदर्शन को नए-नए तरीकों से दर्ज किया था. बजट सत्र के दौरान विधायक काले मास्क में विधानसभा पहुंचे थे, यह कहते हुए कि सरकार जनता के सवालों से मुंह छिपा रही है. दूसरे दिन कांग्रेस विधायक नकली सांप लेकर पहुंचे यह आरोप लगाते हुए कि सरकार नौकरियों पर सांप बनकर कुंडली मारकर बैठी है. कभी कंकाल और सोने की ईंटें लेकर भ्रष्टाचार पर निशाना साधा गया, तो कभी कर्ज को लेकर जंजीरें पहनकर प्रदर्शन किया गया. बाप पार्टी के एकमात्र विधायक ने बापू की प्रतिमा के सामने उपवास किया था, लेकिन अब यह सब बीते दिनों की बात हो चुकी है.
कांग्रेस ने जताया विरोध
कांग्रेस ने इस आदेश का तीखा विरोध किया है. पूर्व नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह ने इसे सरकार के दबाव में लिया गया फैसला बताया और कहा कि अगर विधायकों को सदन में अपनी बात रखने की अनुमति नहीं दी जाएगी, तो वे जेल में भी जाकर जनता की आवाज उठाएंगे.
कांग्रेस ने बताया संविधान का उल्लंघन
उपनेता प्रतिपक्ष हेमंत कटारे ने कहा, 'मीडिया बाइट्स पर भी रोक लगा दी गई है. क्या गांधी और आंबेडकर के नारे भी अब आपत्तिजनक हो गए हैं? क्या मध्य प्रदेश में आपातकाल लागू किया जा रहा है?' पूर्व मंत्री और वरिष्ठ विधायक लखन घनघोरिया ने इसे असंवैधानिक और लोकतांत्रिक परंपराओं के खिलाफ बताया.
विधानसभा 'धरना-प्रदर्शन' के लिए नहीं- BJP
वहीं भाजपा विधायक और पूर्व प्रोटेम स्पीकर रामेश्वर शर्मा ने आदेश का बचाव करते हुए कहा कि विधानसभा 'धरना-प्रदर्शन और कुश्ती' के लिए नहीं, बल्कि संविधान के तहत गंभीर चर्चा के लिए होती है. उन्होंने कहा कि प्रदर्शन करना है तो रोशनपुरा या दशहरा मैदान में किया जाए, विधानसभा को थिएटर न बनाया जाए.
इसी बीच इस बार विधानसभा के ई-विधान प्रारूप में जाने के चलते विधायकों ने 3377 प्रश्न लगाए हैं. इनमें से 2076 प्रश्न ऑनलाइन और 1301 प्रश्न ऑफलाइन दर्ज किए गए हैं. विधानसभा सचिवालय ने संबंधित विभागों से समयसीमा के भीतर जवाब मांगे हैं, ताकि प्रश्नकाल के दौरान विधायकों को सटीक जवाब मिल सकें.
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