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ड्रग और थिंनर देकर गिरोह बच्चों से करवा रहा था ये काम, पांच साल में  600 से अधिक मासूमों का किया रेस्क्यू

MP News : ड्रग और थिंनर पेडरल बच्चों को खतरनाक नशे की आदत लगाकर एडिक्ट बना देते थे. फिर इन मासूम बच्चों से भिक्षावृत्ति और चोरी कराई जाती थी.  लेकिन इस मामले पर सामाजिक संस्थाओं और प्रशासन की मदद से अब तक 600 से अधिक बच्चे रेस्क्यू किए गए हैं.   

ड्रग और थिंनर देकर गिरोह बच्चों से करवा रहा था ये काम, पांच साल में  600 से अधिक मासूमों का किया रेस्क्यू

MP News in Hindi :  नशे की लत लगाकर बच्चों से उनकी जिंदगी कैसे छीनी जाती थी?  ये खेल सालों से चल रहा था. अब इस मामले में बेहद ही चौकाने वाले खुलासे हो रहे हैं, कैसे गिरोह के लोग सालों से इस खेल को अंजाम दे रहे थे, सब कुछ जानेंगे इस खबर में. दरअसल, इंदौर में भिक्षावृत्ति मुक्त अभियान के अंतर्गत रेस्क्यू किए गए बच्चों को नशे का आदी पाया गया. 6 से 15 साल तक के बच्चे ड्रग एडिक्ट हैं, और रेस्क्यू हुए सबसे छोटे बच्चे की उम्र मात्र 6 वर्ष थी और वो थिंनर का आदी पाया गया. शहर में कई ऐसे गिरोह सक्रिय हैं, जो बच्चों को नशे की लत लगाकर चोरी जैसी वारदात में शामिल कर रहे हैं. इन गिरोह से पिछले 5 सालों में ऐसे तकरीबन 600 से अधिक बच्चे रेस्क्यू किए गए है. वहीं, अब भिक्षावृत्ति मुक्त अभियान में रेस्क्यू किए गए बच्चे भी नशे के आदी पाए जा रहे हैं. इन छोटे बच्चों को बचपन से ही थिंनर, अयोडेक्स, टायर पंचर सोलुशन की आदत लगा दी जाती है. इन्हे इसकी आदत इस कदर लगा दी जाती है कि इसके दम पर पेडलर इन बच्चों से भिक्षा से लेकर चोरी तक की वारदात में शामिल कर देते है.

भिक्षावृत्ति का दिया जाता था टॉरगेट 

मासूमों को हर दिन का टारगेट दिया जाता है और इसे पूरा करने पर ही उन्हें इनाम के तौर पर यह नशीले पदार्थ दिए जाते है. शहर में यह काफ़ी समय से चलते आया है पर अब प्रशासन ने सख़्ती दिखाई है और अब भिक्षावृत्ति मुक्त अभियान में पकड़े जा रहें ऐसे बच्चों को नशा मुक्ति केंद्र भेजा जा रहा है.

मुख्य धारा से जोड़ने का प्रशासन कर रहा प्रयास 

 इस अभियान की सफलता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अब बच्चे ठीक होकर वापस अपने घर या एन.जी.ओ पहुंच रहें है. इन मासूमों को मुख्य धारा में प्रशासन लगातार जोड़ने का प्रयास कर रही है. 

जानें क्या बोलीं इंदौर भिक्षुक पुनर्वास की अध्यक्ष रुपाली 

रुपाली कहती हैं कि बच्चों में यह प्रवृत्ति स्वतंत्र पैदा नहीं हुई और कार्यकाल में कई ऐसे बच्चों को रेस्क्यू किया गया, जो भीख मांगते थे, लेकिन इस दौरान यह एंगल भी देखने को मिला की इन बच्चों को कई तरह के नशे का आदी बना दिया गया था.संस्था द्वारा कई ऐसे ड्राइव चलाई गई, जिसमें देखने में आया की सबसे कम उम्र का बच्चा जो रेस्क्यू किया गया. वह 6 साल का था. यह बच्चा अपने हाथ से थिंनर लगा हुआ रुमाल छोड़ने को तैयार नहीं था. ऐस गंभीर हालत में बच्चों को नशा मुक्ति केंद्र और काउंसलिंग के लिए भेजा जाता है और उन्हें समझाइश दी जाती है. 

'भूख खत्मकर दी जाती थी'

रेस्क्यू में यह भी पता लगा की इन्हे जिस पदार्थ का आदी बनाया जा रहा था. उससे भूख खत्म हो जाती है. बिना खाए भी पूरा दिन गुज़र जाता है. इनका नर्वस सिस्टम भी कमजोर हो चुका है, कई बार मेमोरी इरेज़ भी हो जाती है, काउंसलिंग में पता लगा की बच्चे बोलते बोलते बीच में भूल जाते हैं.

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मेहंदी और पेंटिंग सिखाई जा रही

ऐसे कई बच्चों को रेस्क्यू कर जब उन्हें नशा मुक्ति केंद्र भेजा गया और अभी तक 850 बच्चों को स्वस्थ कर शिक्षा से जोड़ा गया है. यही बच्चे अब आंगनवाड़ी और स्कूल जा रहें है, फ्री टाइम में उन्हें मेहँदी और पेंटिंग सिखाई जा रही है. उनके स्किल डेवलपमेंट पर भी ध्यान दिया जा रहा है.

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