
Bone Marrow Transplant done in Jabalpur Medical College: जबलपुर मेडिकल कॉलेज ने बड़ी उपलब्धि हासिल की है. दरअसल, नेताजी सुभाष चंद्र बोस मेडिकल कॉलेज जबलपुर के कैंसर संस्थान ने मध्य प्रदेश में दूसरी बार सफलतापूर्वक बोन मैरो ट्रांसप्लांट किया है. इससे पहले यह सुविधा केवल इंदौर के सरकारी अस्पताल में उपलब्ध थी. इस नई सुविधा की अगुवाई डॉ. श्वेता पाठक ने की है. उन्होंने इस क्षेत्र में विशेष प्रशिक्षण प्राप्त किया है. डॉ श्वेता से ही बातचीत करके हमने इसकी पूरी प्रक्रिया जानी और इससे संबंधित भ्रांतियों पर भी उनकी राय जानी.
देखा जाए तो ये बेहद अहम विषय है. मध्यप्रदेश में सरकारी अस्पतालों की बात करें तो ये सुविधा सिर्फ इंदौर के सरकारी अस्पताल में मौजूद थी लेकिन अब जबलपुर में इस सुविधा की शुरुआत होने से गरीब व आदिवासी क्षेत्र के पीड़ितों का जीवन बदलेगा. इससे जबलपुर के आसपास के 20 जिलों के पीड़ित लोगों को लाभ मिलेगा. वैसे आपको बता दें कि राज्य के कई निजी अस्पतालों में भी बोन मैरो ट्रांसप्लांट की सुविधा उपबल्ध है लेकिन वहां इसकी लागत 20 से 30 लाख रुपये तक हो सकती है.
बोन मैरो ट्रांसप्लांट क्या है?
बोन मैरो ट्रांसप्लांट एक जीवन रक्षक प्रक्रिया है, जिसमें स्वस्थ बोन मैरो या स्टेम सेल्स को एक मरीज के शरीर में प्रत्यारोपित किया जाता है. यह रक्त कैंसर (ल्यूकेमिया), लिंफोमा, अप्लास्टिक एनीमिया और अन्य रक्त संबंधी बीमारियों के इलाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.
दो तरह से किया जाता है बोन मैरो ट्रांसप्लांट
1. ऑटोलोगस ट्रांसप्लांट- मरीज के अपने ही शरीर से स्टेम सेल लेकर वापिस लगाई जाती है.
2. एलोजेनिक ट्रांसप्लांट- किसी और स्वस्थ व्यक्ति से स्टेम सेल लेकर लगाई जाती है.
कब किया जाता है बोन मैरो ट्रांसप्लांट?
बोन मैरो ट्रांसप्लांट ब्लड कैंसर (ल्यूकेमिया, लिम्फोमा, मायलोमा), थैलेसीमिया जैसी जन्मजात बीमारियों में, अप्लास्टिक एनीमिया जैसे खून न बनने की बीमारी में, हाई रिस्क या बार-बार लौटने वाले कैंसर में किया जाता है.
इन चरणों में पूरा होता है बोन मैरो ट्रांसप्लांट
1. तैयारी- कीमो/रेडियोथेरेपी देकर खराब कोशिकाएं खत्म की जाती हैं.
2. प्रत्यारोपण- नई स्टेम सेल्स शरीर में डाली जाती हैं.
3. रिकवरी- नई कोशिकाएं खून बनाना शुरू करती हैं, मरीज धीरे-धीरे ठीक होता है.
बोन मैरो ट्रांसप्लांट में कितना समय लगता है?
बोन मैरो ट्रांसप्लांट के लिए तैयारी में 2–10 दिन का समय लगता है.
प्रत्यारोपण से पहले: 2-3 हफ्ते
रिकवरी: 2–5 हफ्ते या ज्यादा
ट्रांसप्लांट के बाद क्या होता है?
- बोन मैरो ट्रांसप्लांट के बाद स्टेम सेल्स शरीर में जाकर खून बनाना शुरू करती हैं.
- मरीज को संक्रमण से बचाने के लिए दवाएं दी जाती हैं.
- खून की नियमित जांच होती रहती है.
- जरूरत पड़ने पर मरीज को खून या प्लेटलेट्स भी चढ़ाई जाती हैं.
कैसे करें बोन मैरो दान
1. रजिस्ट्रेशन: बोन मैरो दाता बनने के लिए आप https://datri.org/ पर अधिकृत बोन मैरो रजिस्ट्र्री (जैसे DATRI या BMST) में पंजीकृत कराना आवश्यक है.
2. एचएलए टाइपिंग टेस्ट: रजिस्ट्रेशन के बाद एचएलए (HLA) टाइपिंग टेस्ट किया जाता है, जिससे यह तय होता है कि आप किसी मरीज के लिए उपयुक्त दाता हो सकते हैं या नहीं.
इस प्रक्रिया से कर सकते हैं बोन मैरो दान
पेरीफेरल ब्लड स्टेम सेल (PBSC) डोनेशन: इसमें रक्त से स्टेम सेल्स निकाली जाती हैं, जो ब्लड डोनेशन की तरह ही आसान प्रक्रिया होती है.
बोन मैरो हार्वेस्टिंग: यह प्रक्रिया बेहोशी में की जाती है, जिसमें कमर की हड्डी से बोन मैरो निकाला जाता है.
बोन मैरो दान से जुड़ी गलतफहमियां
कोई गंभीर दर्द नहीं होता: डोनेशन के दौरान केवल हल्की असुविधा हो सकती है, लेकिन यह पूरी तरह सुरक्षित है.
कोई स्थायी नुकसान नहीं: बोन मैरो खुद को कुछ ही हफ्तों में पुनः विकसित कर लेता है.
कोई लंबी अस्पताल यात्रा नहीं: PBSC दान के बाद दाता को उसी दिन या अगले दिन छुट्टी दे दी जाती है.
बोन मैरो दान क्यों है जरूरी?
भारत में लाखों मरीज बोन मैरो ट्रांसप्लांट का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन दाताओं की कमी के कारण उन्हें समय पर उपचार नहीं मिल पाता है. यदि अधिक लोग रजिस्ट्रेशन कराएंगे, तो कई जीवन बचाएं जा सकते हैं.
कैसे करें रजिस्ट्रेशन?
आप https://datri.org/ लिंक पर जाकर रजिस्टर कर सकते हैं और इस जीवनदायी अभियान का हिस्सा बन सकते हैं.
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