Bhopal's toxic waste: भोपाल की यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री के गोदाम में 337 मीट्रिक टन जहरीला कचरा पीथमपुर पहुंच चुका है.अब इसको नष्ट किए जाने की कार्रवाई शुरू की जाएगी. ये कचरा भोपाल ने 12 कंटेनरों में लोड होकर करीब 250 किलोमीटर लंबे ग्रीन कॉरिडोर के जरिए यहां पहुंचा है. लेकिन इस कचरे को लेकर तमाम तरह की आशंकाएं हैं. पीथमपुरा में ऐसा सुना और सुनाया जा रहा है कि ये कचरा यहां के लिए खतरा है. यहां भी भोपाल जैसा कुछ हादसा हो सकता है. लेकिन गैस राहत एंव पुनर्वास विभाग जिसकी निगरानी में ये सारी प्रक्रिया की जा रही है उसका कहना है कि इस कचरे के निष्पादन में कोई खतरा नहीं है और इससे डरने या चिंतित होने की कोई जरुरत नहीं है. पहले विभाग द्वारा दी गई जानकारी के आधार पर जान लाते हैं कि कचरे का निष्पादन कैसे किया जाएगा.
गैस राहत एंव पुनर्वास विभाग के डायरेक्टर स्वतंत्र कुमार सिंह ने NDTV को कचरे के निष्पादन का पूरा प्रोसेस बताया. जिसके मुताबिक ये जहरीला कचरा दो अलग-अलग चीजों कन्वर्ट होगा. एक हिस्सा हवा में जाएगा. जो हिस्सा हवा में जाएगा वो भी 4 स्टेज पर फिल्टर होगा. इस दौरान इसके पैरामीटर को भी नोट किया जाएगा. दूसरा हिस्सा ठोस रुप में रहेगा. जिसे जलाने के बाद जो अवशेष निकलेगा उसे लैंडफिल साइट में टू लेयर मेंब्रेन में रखा जाएगा. इस लैंडफिल साइट को विशेष तौर पर तैयार किया गया है ताकि पानी और मिट्टी में कचरे का कोई हिस्सा न जा पाए. स्वतंत्र कुमार सिंह के मुताबिक भोपाल से आए कचरे को 90 किलोग्राम , 180 किलोग्राम और 270 किलोग्राम में बांट कर नष्ट किया जाएगा. नष्ट करने की प्रक्रिया को लगातार मॉनिटर किया जाएगा. अगर कचरा ज्यादा जहरीला (Toxic) होता है तो फिर इसे दो बार नष्ट किया जाएगा. अगर फीड रेट ठीक रहा तो तीन महीने या अधिकतम 9 महीने में इस पूरे 337 मीट्रिक टन कचरे को खत्म कर दिया जाएगा.
इस कचरे को पूरी तरह से वैज्ञानिक तरीके से नष्ट किया जाएगा हालांकि इसके बावजूद स्थानीय लोगों में इसको लेकर आशंकाएं हैं. स्थानीय लोगों ने NDTV से बातचीत में भी इस जाहिर किया.
स्थानीय लोगों का कहना है कि इस प्लांट से अभी भी बदबू आने की वजह से परेशानी होती है. जब इस कचरे को नष्ट किया जाएगा तो उस दौरान हालत और खराब हो सकती है. तमाम आशंकाओं के मद्देनजर 3 जनवरी को 10 से ज्यादा संगठनों ने पीथमपुरा बंद का भी आह्वान किया है. पीथमपुर बचाओ समिति तो दिल्ली में जाकर जंतर-मंतर पर प्रदर्शन कर रही है. स्वतंत्र कुमार सिंह की माने तो ये कचरा भोपाल में हादसे के दौरान लीक हुए मिथाइल आयोसाइनाइड गैस जितना खतरनाक नहीं है. इसके अलावा इस कचरे की एक सेल्फ लाइफ होती है जो कई सालों पहले पूरी हो चुकी है. वैज्ञानिकों ने इसके रासायनिक संरचना की भी जांच की है. साल 2015 में इसी तरह का 10 मीट्रिक टन कचरा नष्ट किया गया जिसके बाद कोई खतरा नहीं हुआ था. उन्होंने आग्रह किया है कि इस कचरे को निपटाने की प्रक्रिया पूरी तरह से वैज्ञानिक इसलिए लोग न डरें.
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