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Balaghat: शहर में 'बुड्ढी मंढई' का हुआ आयोजन, बढ़-चढ़कर लोगों ने लिया हिस्सा

बालाघाट में दीपावली के बाद आयोजित किया जाने वाला "बुड्ढी मंढई" का आयोजन फिर से इस साल किया गया. जिसमें शहर के लोगों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. इस बार बुड्ढी मंढई का आयोजन नए रूप में जयहिंद टाकीज मैदान परिसर में किया गया.

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Balaghat: शहर में 'बुड्ढी मंढई' का हुआ आयोजन, बढ़-चढ़कर लोगों ने लिया हिस्सा
बालाघाट में बुड्ढी मंढई का आयोजन बीते 60 वर्षों से होता आ रहा है.

Madhya Pradesh News: बालाघाट में दीपावली (Diwali 2023) के बाद आयोजित किया जाने वाला "बुड्ढी मंढई" (Buddhi Mandhai) का आयोजन फिर से इस साल किया गया. जिसमें शहर के लोगों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. इस बार बुड्ढी मंढई का आयोजन नए रूप में जयहिंद टाकीज मैदान परिसर में किया गया. जिसमें गोवारी समाज (Gowari society) के लोगों ने अपने परिधान में नृत्य किया और परिसर में लगी दुकानों का मंढई में पहुंचे लोगों ने लुत्फ उठाया. इस दौरान कुम्हारी की प्रसिद्ध ढंढार का आयोजन भी किया गया. इसके साथ ही यहां लगाई गई एलईडी स्क्रीन में वर्ल्ड कप फाइनल मैच का भी लुत्फ उठाते लोग नजर आए.

मंढई को अस्तित्व में लाने की हुई पहल

बताया जाता है कि बालाघाट जिले (Balaghat District) की प्रसिद्ध बुड्ढी मंढई का आयोजन नगर जयहिंद टाकीज मैदान में बीते 60 वर्षों से होता आ रहा था. जहां बच्चों से लेकर बड़ों तक इसका आनंद उठाया करते थे. मंढई में लगने वाले झूले और कुश्ती के साथ ही चटकारे वाला भेल सभी को खूब लुभाता था, लेकिन बीते कुछ वर्षों में इसका अस्तित्व समाप्त होने की कगार पर था. जिसके बाद शहर की जयहिंद सेवा समिति द्वारा बीते वर्ष से इसे संरक्षित करने का बीड़ा उठाया गया और एक आयोजन कर इसकी नई शुरुआत की गई.

जानिए बुड्ढी मंढई के बारे में

बता दें कि बुढ़ा से बालाघाट बने इस शहर की पहचान बुढ्ढी मंढई थी. दीपावली के एक हफ्ते बाद बुड्ढी मंढई प्राचीन देवी तालाब के पास जयहिंद टॉकीज मैदान में भरा करती थी. बुजुर्गों की मानें तो मंढई का ऐसा जलवा था कि हर शहरवासी इसका इंतजार करता था. जब मंढई भरती थी तो शहर के लोगों के साथ-साथ उनके रिश्तेदार भी मंढई जाया करते थे. दीपावली के बाद मंढई, ग्रामीण क्षेत्र का पारंपरिक आयोजन है. ऐसा कहा जाता है कि मंढई के बहाने बाहर रहने वाले लोग अपने गांव आते हैं और अपने साथियों और रिश्तेदारों से मिलते हैं. बालाघाट में बुढ्ढी मंढई की पहचान समय के साथ विलुप्त हो गई थी. लेकिन इसके महत्व को समझते हुए इसकी पहचान और अस्तित्व को कायम रखने के लिए वर्षों पुरानी इस परंपरा को निभाने का दायित्व बालाघाट के कुछ जागरूक लोगों ने उठाया है.

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