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हे सरकार ! MP में आंगनबाड़ी कैसे देंगे 'पोषण' जब खुद ही हैं 'कुपोषण' के शिकार?

देश में आंगनबाड़ी केन्द्रों की शुरुआत को अब करीब 50 वर्ष पूरे हो गए हैं. इस बेहद शानदार योजना के 'गोल्डन जुबली' साल में NDTV ने मध्यप्रदेश में आंगनबाड़ी केन्द्रों की हालत का जायजा लिया तो कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए. खुद सरकार की रिपोर्ट बताती है कि प्रदेश में 34 हजार से ऐसे आंगनबाड़ी केन्द्र हैं जिनके पास अपना भवन नहीं है और हजारों जर्जर भवन में चल रहे हैं. पढ़िए इसी पर NDTV की ग्राउंड रिपोर्ट

हे सरकार ! MP में आंगनबाड़ी कैसे देंगे 'पोषण' जब खुद ही हैं 'कुपोषण' के शिकार?

Anganwadi News: देश के एक बड़े तबके की गर्भवती महिलाओं और छोटे नौनिहालों को पूरा पोषण मिल सके इस वजह से 2 अक्टूबर 1975 में ICDS के तहत आंगनबाड़ी कार्यक्रम शुरू किया गया. 50 साल के लंबे अंतराल के बाद यानी गोल्डन जुबली ईयर में मध्यप्रदेश में आंगनबाड़ी केन्द्रों की क्या स्थिति है इसी पर NDTV ने ग्राउंड पर जाकर हालात का जायजा लिया. हमें जो चौंकाने वाले तथ्य मिलें वो बताते हैं कि राज्य में नौनिहालों और गर्भवती महिलाओं की देखरेख करने की जिम्मेदारी निभाने वाली ये योजना खुद ही 'कुपोषण' की शिकार है.  इस पर हम आगे बात करेंगे लेकिन पहले ये जान लेते हैं कि खुद मध्यप्रदेश सरकार की रिपोर्ट आंगनबाड़ी केन्द्रों के बारे में क्या है? मध्य प्रदेश सरकार खुद मानती है कि प्रदेश की लगभग आधे आंगनबाड़ी केन्द्र किराए के कमरों में चलते हैं.   

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राज्य में एक चौथाई से ज्यादा आंगनबाड़ियों के पास खुद के मकान नहीं हैं. हजारों आंगनबाड़ी केन्द्र जर्जर हालात में हैं. 
ऐसे में NDTV की टीम ने शिवपुरी,गुना,अशोक नगर, पन्ना,छतरपुर और श्योपुर जिले की कुछ आंगनबाड़ियों की स्थिति जानने की कोशिश की है. इस दौरान हमें कहीं ये केन्द्र एक कमरे में, कहीं दुकान में और कहीं किराए के भवनों में चलते मिले. आंगनबाड़ी केन्द्रों का उद्देश्य है कि बच्चों को बेसिक शिक्षा दी जाए और उन्हें कुपोषण से बचाया जाए. लेकिन हमें कई ऐसे आंगनबाड़ी केन्द्र मिले जहां आसपास गंदगी का अंबार था. सबसे पहले बात शिवपुरी जिले की... 

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ये हालत तब है जबकि जिले में करीब दो लाख लाभार्थी बच्चे और गर्भवती महिलाएं इन केन्द्रों पर निर्भर हैं. इसके अलावा 680 स्टाफ की भी जरुरत है. अब आंकड़ों के आइने में इसी से सटे गुना जिले की हालत भी आप जान लीजिए. 

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कुछ इसी तरह से कुछ आंकड़े हमें अशोकनगर जिले से भी मिले. अशोकनगर जिले में कुल 1099 आगनवाड़ी केंद्र हैं. इसके लिए 529 भवन स्वीकृत किये गए हैं और 570 आगनबाड़ी केंद्रों को भवन नसीब ही नहीं हुआ. जो 529 भवन स्वीकृत हुए हैं उसमें से भी मात्र 393 भवन ही पूरे हो सके हैं. इसके अलावा 78 भवनों के काम अधूरे पड़े हैं और 24 पर तो काम भी शुरू नहीं हुआ. जिले भर में 406 आगनबाड़ी केंद्र किराए के भवनों में चल रहे हैं. बगल के पन्ना जिले के हालात भी अच्छे नहीं हैं. यहां कुल 1492 आंगनबाड़ी केन्द्रों में से 281 किराए के मकानों में संचालित हैं. यहां 15 केन्द्र तो जर्जर भवनों में चल रहे हैं.   

श्योपुर में जान जोखिम में डालकर आ रहे हैं नौनिहाल

श्योपुर में हमें हालात अपेक्षाकृत थोड़े अच्छे मिले. यहां 1269 आंगनबाड़ी संचालित हैं जिनमें से 956 ख़ुद के भवन में चल रही हैं. यहां 313 केन्द्र आज भी किराये के कमरों में  संचालित की जा रही है. हालांकि श्योपुर के आदिवासी विकास खंड कराहाल के गावों में संचालित आंगनबाड़ी केंदो की हालत चिंतजनक है. गोरस में आदिवासी बस्ती में संचलित आंगनवाड़ी केंद्र A की तस्वीर तो सबसे ज्यादा दयनीय मिली. यहां जर्जर भवन में नौनिहाल बच्चे जान जोखिम मे डाल कर आते हैं. यहां की आंगनवाड़ी कार्यकर्त्ता खुद बताती हैं कि आंगनवाड़ी का भवन सालों से मरम्मत नहीं हुआ है. 

जिम्मेदारों ने भी माना- फंड नहीं है

जानकार बताते हैं कि मध्य प्रदेश के इन इलाकों में अगर आंगनबाड़ी बेहतर काम कर रही होती तो कुपोषण खत्म हो गया होता.लेकिन सच्चाई ये है कि शिवपुरी,श्योपुर,अशोक नगर, गुना, पन्ना  और छतरपुर में कई बच्चे अभी भी कुपोषित हैं. आलम ये है कि यहां के NRC में बच्चे लगाता भर्ती हो रहे हैं. अशोकनगर में जर्जर भवनों की वजह से कई माता-पिता अपने बच्चों को इन केन्द्रों पर नहीं भेज रहे हैं.

जब हमने शिवपुरी जिले में आंगनबाड़ी केन्द्र के हालात पर महिला बाल विकास अधिकारी देवेंद्र सुंदर्याल से बात की तो उनका कहना था कि जिले में आधे से ज्यादा केन्द्र किराए के भवनों में चल रही हैं.

उन्होंने बताया कि हम बिल्डिंग बनाने के लिए काम कर रहे हैं लेकिन अभी फंड नहीं होने की वजह से काम शुरू नहीं हो सका है. श्योपुर के  महिला बाल विकास अधिकारी शिशु सुमन ने बताया कि हम हर व्यवस्था को बेहतर संचालित कर रहे हैं और अब ज्यादा से ज्यादा बच्चे आंगनबाड़ियों से जुड़ रहे हैं. 

जाहिर है सरकारी अधिकारी जो जिम्मेदार हैं वो सबकुछ ठीक तो बताएंगे ही लेकिन हकीकत ये है कि हाल ही में छतरपुर में बच्चों को परोसे जाने वाले खाने में कीड़े मिले थे.  शिवपुरी में तो खुद ऊर्जा मंत्री ने आंगनबाड़ी केन्द्रों में महिलाओं को मिलने वाले पोशक लडडू की चोरी पकड़ी थी. प्रदेश के 56 हजार केन्द्र ऐसे हैं जहां साल 2022 से अब तक प्री एजुकेशन किट उपलब्ध नहीं करवाई गई है.   
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