
Symbolic marriage of children: मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड में अक्षय तृतीया के मौके पर बच्चे परंपरागत तरीके से मिट्टी के दूल्हा-दुल्हन के खिलौनों को सजाकर प्रतीकात्मक विवाह समारोह आयोजित करते हैं. इस प्राचीन परंपरा को निभाते हुए बच्चे बाजार जाकर दूल्हा दुल्हन के खिलौने खरीदते हैं, फिर उन्हें रंग-बिरंगे वस्त्र पहना कर विवाह की रस्मों का जीवंत मंचन करते हैं. समूह में मिलकर बच्चे बारात, हल्दी, वरमाला और फेरे जैसी रस्मों को निभाते हैं और घरों के बड़े-बुजुर्गों से बच्चे आशीर्वाद लेते हैं और मिठाइयां खिलाते हैं. इस आयोजन से बच्चों में सामूहिकता, परंपरा और भारतीय संस्कृति के प्रति प्रेम का संचार होता है.
मिट्टी के खिलौनों को सजा-संवारकर निभाते हैं विवाह की रस्में
बच्चे स्वयं नहीं, बल्कि बाजार से खरीदे गए मिट्टी के खिलौनों (दूल्हा-दुल्हन) को सजा-संवारकर विवाह की रस्मों को निभाते हैं. विवाह की सभी रस्में- हल्दी, वरमाला, फेरों की प्रतीकात्मक मनाई जाती है जो बड़ों के आशीर्वाद के साथ संपन्न होती हैं. बता दें कि एक घर में सभी बच्चे एकत्र होकर सामूहिक आयोजन करते हैं और विवाह के बाद सत्तू का प्रसाद बांटा जाता है. नए मिट्टी के घड़े इस दिन रखे जाते हैं, जो पवित्रता और नवीनता का प्रतीक माने जाते हैं. यह आयोजन बच्चों में सामाजिकता, सहयोग और सांस्कृतिक चेतना का विकास करता है. साथ ही उन्हें विवाह संस्कारों की प्राथमिक समझ भी देता है.
सनातन परंपरा का समृद्ध पर्व है अक्षय तृतीया
अक्षय तृतीया धार्मिक श्रद्धा, सांस्कृतिक रंग और मासूम बचपन की परंपरा का संगम है. अक्षय तृतीया, जिसे 'आखा तीज' के नाम से भी जाना जाता है और यह वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है. 'अक्षय' का अर्थ है- "जो कभी क्षीण न हो." यह दिन सतयुग और त्रेतायुग के प्रारंभ, भगवान परशुराम के जन्मदिवस, और अक्षय फल की प्राप्ति के कारण भारतीय संस्कृति में विशेष स्थान रखता है.
अक्षय तृतीया का धार्मिक महत्व
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु ने कुबेर को धन का अधिपति बनाया था. इसके अलावा पांडवों को अक्षय पात्र की प्राप्ति भी इसी दिन हुई. यही कारण है कि यह दिन धन, पुण्य और समृद्धि की कामनाओं के लिए श्रेष्ठ माना गया है.
अक्षय तृतीया पर किए जाते हैं विशेष कार्य
अक्षय तृतीया के दिन सभी शुभ कार्य किए जाते हैं. इस दिन किसी भी मुहूर्त को नहीं देखा जाता है. शादी विवाह, उद्घाटन जमीन और सोने का खरीदना सभी कुछ बिना मुहूर्त पर होता है. इसे अक्षय मुहूर्त भी कहा जाता है.
1. दान व पुण्य: अन्न, जल, गौदान, छाता, चप्पल आदि का दान करने से अक्षय पुण्य मिलता है.
2. स्नान और पूजन: गंगा स्नान, सूर्य अर्घ्य, और लक्ष्मी-नारायण पूजन विशेष फलदायी होते हैं.
3. नवीन कार्यों का आरंभ: विवाह, गृहप्रवेश, व्यापार, भूमि पूजन जैसी गतिविधियां इस दिन बिना मुहूर्त के की जाती हैं.
4. सोने की खरीदारी: यह दिन समृद्धि और स्थायित्व का प्रतीक माना जाता है, इसलिए लोग स्वर्ण और चांदी की खरीदारी करते हैं.
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