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MP में 27% OBC आरक्षण पर कानूनी जंग, सरकार के फैसले पर 8 अक्टूबर से सुप्रीम में हर दिन सुनवाई

मध्य प्रदेश में 27% OBC आरक्षण पर कानूनी जंग अब सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गई है, जहां 8 अक्टूबर से इस मामले पर हर दिन सुनवाई होगी. यह फैसला सुप्रीम कोर्ट ने दिया है, जिसमें मध्य प्रदेश सरकार के 27% OBC आरक्षण देने के फैसले को चुनौती दी गई है.

MP में 27% OBC आरक्षण पर कानूनी जंग, सरकार के फैसले पर 8 अक्टूबर से सुप्रीम में हर दिन सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट 8 अक्टूबर से हर दिन मध्य प्रदेश में OBC को 27% आरक्षण देने के सरकार के फैसले पर सुनवाई शुरू करेगा, लेकिन उससे पहले सोशल मीडिया पर एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया है. वायरल पोस्ट्स में दावा किया गया कि राज्य का हलफनामा 1983 की रामजी महाजन आयोग रिपोर्ट का भी सहारा लेता है, जिसमें शंबूक और एकलव्य जैसे पौराणिक प्रसंगों का ज़िक्र है. हालांकि राज्य सरकार ने इन दावों को सिरे से गलत बताया है. कहा कि वायरल अंश भ्रामक हैं, प्रसंग से काटकर पेश किए गए हैं और न तो हलफ़नामे का हिस्सा हैं, न किसी स्वीकृत नीति का.

पिछली सुनवाई में सामान्य वर्ग के याचिकाकर्ताओं ने आपत्ति दर्ज कर कहा था कि राज्य सरकार ने सुनवाई से ठीक पहले 15,000 पन्नों के दस्तावेज जमा कर दिए, जिनका अध्ययन करने के लिए समय चाहिए, उस वक्त बेंच ने 8 अक्तूबर से मामले में रोज़ाना सुनवाई तय कर दी.

कोर्ट में सरकार को सिद्ध करनी होगी ये बात

दरअसल, मध्य प्रदेश में ओबीसी वर्ग को 27 फीसद आरक्षण मिलने पर 50 फीसद आरक्षण की सीमा टूट जाएगी, जिसके लिए राज्य सरकार को इंदिरा साहनी फैसले के मद्देनजर ये सिद्ध करना होगा कि राज्य में इसके लिए विशेष/असाधारण परिस्थितियां हैं. इसको साबित करने के लिए सरकार ने सर्वे, आयोगों के निष्कर्ष और प्रशासनिक आंकड़े दिए हैं, जो सेवाओं और सार्वजनिक सहभागिता में OBC के कम प्रतिनिधित्व को दिखाते हैं. सरकार ने यह भी स्पष्ट किया कि 1983 में बने महाजन आयोग ने 35% आरक्षण का सुझाव दिया था, जबकि राज्य का निर्णय ओबीसी को 27% देने का है यानी सिफारिश को ज्यों का त्यों नहीं अपनाया गया. पुराने दस्तावेज़ों को प्रसंग से हटाकर वायरल करने पर जांच और “उचित कार्रवाई” की बात भी कही गई है.

पहले भी आरक्षण बढ़ाने की हुई हैं कोशिशें

दरअसल, 2019 में तत्कालीन कमलनाथ सरकार ने OBC आरक्षण को 14% से बढ़ाकर 27% किया. 2020 में हाईकोर्ट ने इसके अमल पर रोक लगाकर 50% सीमा का सिद्धांत दोहराया. सितंबर 2021 में नई गाइडलाइंस आईं. शिवराज सरकार ने महाधिवक्ता की राय पर 27% OBC आरक्षण की अनुमति दी. अगले साल शिवम गौतम की याचिका पर हाईकोर्ट ने इसपर रोक लगा दी, फिर राज्य में 87:13 का फ़ॉर्मूला लागू हुआ, जिसमें 87% पदों के परिणाम घोषित हुए, 13% नतीजों को होल्ड किया गया. जनवरी 2025 में 87:13 फॉर्मूले पर चुनौती खारिज हुई, फिर राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची और मामले में जल्द सुनवाई की मांग की.

सरकार के फैसले से मध्य प्रदेश में आरक्षण 73% तक पहुंच जाएगा. ST 20% + SC 16% + OBC 27% + EWS 10%. अब मूल सवाल है, क्या राज्य “असाधारण परिस्थितियां” सिद्ध कर 50% सीमा पार करने का औचित्य साबित कर सकता है?

अंतिम फैसले तक 87:13 की अंतरिम व्यवस्था जारी है. हर भर्ती में 87% पदों के परिणाम घोषित होते हैं, 13% रोके जाते हैं, जिसमें आधा OBC और आधा अनारक्षित स्लॉट माने जाते हैं, ताकि अदालत के अंतिम आदेश के अनुरूप समायोजन हो सके. लेकिन इस फैसले से 2019 से 35+ भर्तियां प्रभावित हुई हैं, जिससे 8 लाख अभ्यर्थियों पर असर पड़ा है. 3.2 लाख चयनित उम्मीदवार नियुक्ति की प्रतीक्षा में हैं. 2023 विधानसभा चुनाव के बाद राज्य में 29,000 पद भरे गए, जबकि 1,04,000 सरकारी पद खाली हैं.

8 अक्टूबर से सुप्रीम कोर्ट रोज परखेगी कि क्या मध्यप्रदेश के पास संवैधानिक लक्ष्मण रेखा पार करने लायक प्रमाण हैं और उतना ही अहम, क्या लाखों अटकी नियुक्तियां अब सूचियों से नियुक्ति-पत्रों तक पहुंच पाएंगी.

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