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World Theatre Day 2025: दुनिया की सबसे पुरानी नाट्यशाला के सबूत छत्तीसगढ़ में, जानिए रंगमंच दिवस का इतिहास

World Theatre Day 2025: रंगमंच (नाट्य कला) एक ऐसी विधा है, जिससे आपके भीतर का आत्मविश्वास बढ़ता है. दूसरों के विचारों और बातों को सुनने की सहनशीलता में वृद्धि होती है. यहां तक कि रंगमंच से सबसे शर्मीले व्यक्ति को भी धीरे-धीरे आत्मविश्वास से भर देता है.

World Theatre Day 2025: दुनिया की सबसे पुरानी नाट्यशाला के सबूत छत्तीसगढ़ में, जानिए रंगमंच दिवस का इतिहास
World Theatre Day 2025: विश्व रंगमंच दिवस

World Theatre Day 2025: ज़िंदगी एक रंगमंच है और हम सब उसकी कठपुतलियां हैं... साहित्यकार व नाटककार शेक्सपियर (William Shakespeare) की प्रसिद्ध पंक्तियाें से ये समझा जा सकता है कि थियेटर (Theatre) का हमारे जीवन में क्या महत्व है और क्यों इसे समाज का दर्पण कहा गया है? रंगमंच सिर्फ अभिनय या मनोरंजन का साधन नहीं बल्कि जीवन को जीने का सही ढंग सिखाने वाला गुरु है. रंग मंच आपको कलाकार बनाने के पहले एक तजुर्बेदार इंसान बनने में आपकी मदद करता है. इसके अलावा और भी कई चीजें हैं, जो हम अपने जीवन में रंगकर्म के माध्यम से सीखते हैं.

क्या है इस दिवस का इतिहास?

विश्व रंगमंच दिवस यानी वर्ल्ड थिएटर डे 27 मार्च को हर वर्ष मनाया जाता है. इस दिवस की स्थापना 1961 में इंटरनेशनल थिएटर इंस्टीट्यूट (आईटीआई) द्वारा की गई थी. उसके बाद से ही हर साल 27 मार्च को विश्वभर में रंगमंच दिवस मनाया जाता आ रहा है. सन् 1961 में पहले हेलसिंकी और फिर विएना में अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच संस्थान (इंटरनेशनल थिएटर इंस्‍टीट्यूट) के नौवें विश्व समागम के दौरान संस्थान के तत्कालीन अध्यक्ष अर्वी किविमा ने विश्व रंगमंच दिवस की स्थापना किए जाने का प्रस्ताव किया रखा था. आईटीआई के फिनलैंड स्थित केंद्र की ओर से रखे गए इस प्रस्ताव का स्कैन्डिनेवियाई केंद्रों ने समर्थन किया और विश्व के अन्य केंद्रों ने भी इसका जोरदार समर्थन किया. जिसके परिणाम स्वरूप 27 मार्च, 1962 को पहली बार औपचारिक तौर पर अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच दिवस मनाया गया. 

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ये हैं दुनिया के प्रमुख थिएटर

  • ग्रान थिएटर डेल लिसेउ, बार्सिलोना, स्पेन
  • थिएटर डु जिम्नास, फ्रांस
  • सैल्ले मोलियर, लियोन, फ्रांस
  • पलाउ म्यूजिका कैटालाना, बार्सिलोना, स्पेन
  • ग्रैंड थिएटर इन जेनेवा, स्विट्जरलैंड
  • हैल्ले टोनी गार्नियर, लियोन, फ्रांस
  • कैसिनो थिएटर, इन एक्स लेस बेन, फ्रांस
  • थिएटर डेज सिलेस्टिन, लियोन, फ्रांस

भारत में रंगमंच

भारत में रंगमंच का इतिहास बहुत पुराना है, ऐसा माना जाता है कि नाट्यकला का विकास सबसे पहले भारत में ही हुआ था. ऋग्वेद के सूत्रों में यम और यमी, पुरुरवा और उर्वशी आदि के कुछ संवाद हैं. कहा जाता है कि इन्हीं संवादों से प्रेरणा ग्रहण कर लोगों ने नाटक की रचना की और नाट्यकला का विकास हुआ. उसी समय भरतमुनि ने नाट्य को शास्त्रीय रूप प्रदान किया. भरतमुनि ने अपने नाट्यशास्त्र में नाटकों के विकास की प्रक्रिया को लिखा है, "नाट्यकला की उत्पत्ति दैवी है, अर्थात दु:ख रहित सत्ययुग बीत जाने पर त्रेतायुग के आरंभ में देवताओं ने ब्रह्माजी से मनोरंजन का कोई ऐसा साधन उत्पन्न करने की प्रार्थना की जिससे देवता लोग अपना दु:ख भूल सकें और आनंद प्राप्त कर सकें.'

  • भारतीय सिनेमा के दिग्गज पृथ्वीराज कपूर ने 1944 में एक चलती-फिरती थिएटर कंपनी की स्थापना की थी. देश में घूम-घूम कर नाटक दिखाने वाली इस कंपनी में सैकड़ों लोग काम करते थे जिसमें कलाकार, मज़दूर, रसोइया, लेखक और टेक्नीशियन सभी प्रकार के लोग थे.
  • हिन्दी क्षेत्र के पहली नाट्य विद्यालय की स्थापना मध्यप्रदेश में हुई है. प्रदेश के नाट्य विद्यालय का औपचारिक शुभारंभ वर्ष 2011 में हुआ था.
  • राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय विश्व के अग्रणी नाट्य प्रशिक्षण संस्थाओं में से एक और भारत में अपनी तरह का एक मात्र संस्थान है. इसकी स्थापना संगीत नाटक द्वारा उसकी एक इकाई के रूप में वर्ष 1959 में की गई. वर्ष 1975 यह एक स्वतंत्र संस्थान बना. यह संस्थान संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा पूर्ण रूप से वित्त पोषित है.
  • भोपाल स्थित रविंद्र भवन, प्रदेश का ही नहीं बल्कि देश के श्रेष्ठ नाट्गृहों में से एक है. रविंद्र भवन में दो रंगमंच है एक सभागृह के भीतर अंतः रंगमंच और दूसरा बाहर का खुला रंगमंच या मुक्ताकाश मंच. सभाग्रह में 700 से ज्यादा लोगों की बैठक व्यवस्था है, जबकि मुक्ताकाश मंच के सामने हजारों की तादात में दर्शक के बैठ सकते हैं.
  • उज्जैन में कालिदास अकादमी की स्थापना की गई है. वर्ष 1978 में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा स्थापित यह एक बहु-अनुशासनात्मक संस्था है. यह अकादमी देशभर में सभी अध्ययन और संस्कृत में शोध के लिए बेहतरीन केंद्र मानी जाती है.
रंगमंच वह स्थान है जहां नृत्य, नाटक, खेल आदि होते हैं. रंगमंच शब्द रंग और मंच दो शब्दों से मिलकर बना है. एक रंग जिसके तहत दृश्य को आकर्षक बनाने के लिए दीवारों, छतों और पर्दों पर विविध प्रकार की चित्रकारी की जाती है. साथ ही अभिनेताओं की वेशभूषा और सज्जा में भी विविध रंगों का प्रयोग होता है. दूसरा मंच- जिसके तहत दर्शकों की सुविधा के लिए रंगमंच का तल फर्श से कुछ ऊंचा रहता है. वहीं दर्शकों के बैठने के स्थान को प्रेक्षागार और रंगमंच सहित समूचे भवन को प्रेक्षागृह, रंगशाला या नाट्यशाला कहते हैं. पश्चिमी देशों में इसे थिएटर या ऑपेरा के नाम से जाना जाता है. माना जाता है कि नाट्यकला का विकास सर्वप्रथम भारत में ही हुआ.

दुनिया की सबसे पुरानी नाट्यशाला के प्रमाण छत्तीसगढ़ में

ऐसा माना जाता है कि दुनिया की सबसे पुरानी नाट्यशाला छत्तीसगढ़ के सरगुजा में रामगढ़ के पहाड़ी पर स्थित है. रामगढ़ की पहाड़ी पर स्थित सीताबोंगरा गुफा और जोगमारा गुफा में प्राचीन नाट्यशाला के प्रमाण मिले है. कहा जाता है कि महाकवि कालिदास ने यहीं मेघदूतम की रचना की थी. ऐसा माना जाता है कि भगवान राम ने अपनी सेना के मनोरंजन के लिए इस नाट्यशाला को बनवाया था.

बॉक्स ऑफिस की प्रथा

विलियम शेक्सपीयर ने अपने दोस्तों के साथ मिलकर सन 1599 में लंदन में एक थिएटर की स्थापना की. उस थिएटर का नाम ‘ग्लोब थिएटर' रखा गया. ‘ग्लोब थिएटर' को लंदन शहर के बीचों-बीच नहीं बल्कि शहर के बाहर बनवाया गया था. ग्लोब अर्धवृत्ताकार में बना एक ओपन एयर थिएटर था. इसके ओपन एयर संरचना के दो बड़े फायदे थे. एक यह कि बंद थिएटरों के मुकाबले ग्लोब की प्रेक्षक क्षमता कई गुना ज्यादा थी. थिएटर इतना बड़ा था कि करीबन ढ़ाई से तीन हजार लोग एक साथ नाटक देख पाएं. दूसरा फायदा ये कि यहां आसानी से मिलने वाली प्राकृतिक रोशनी के कारण मोमबत्तियां, चिरागदान, और मशालें इन सब की जरूरत ही नहीं पड़ती थी. प्रकाश योजना पर कोई खर्चा नहीं करना पड़ता था. खर्चा कम तो टिकटों के दाम भी कम. इस वज़ह से आम से आम आदमी भी अब आसानी से टिकट खरीद कर नाटक देखने का आनंद लेने लगा. नाट्य व्यवसाय और ख़ास कर के शेक्सपीयर के नाटकों को समाज जीवन के सभी स्तरों तक पहुंचाने में ग्लोब की उन कम क़ीमत वाली ‘वन पैनी' टिकटों का सबल योगदान रहा. रंगमंच के ठीक आगे की जगह ‘वन पैनी' टिकट धारकों के लिए निर्धारित थी जिसे ‘पीट' कहते थे. पीट में बैठने के लिए आसन नहीं होते थे. बस खड़े होने भर के लिए जगह होती थी. नाट्यगृह के प्रवेश द्वार पर एक बक्सा ‘बॉक्स' रखा जाता था जिसमें एक पैसा (पैनी) डालकर नाट्यगृह के अंदर प्रवेश मिलता था. इस ‘बॉक्स' में जमा हुई राशि उस दिन के नाटक (प्ले) का नफ़ा या नुकसान निर्धारित करती थी. इस प्रकार हम कह सकते हैं कि ‘बॉक्स ऑफ़िस' और ‘बॉक्स ऑफ़िस कलेक्शन' की संकल्पना उन दिनों से आज तक चली आ रही है.

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