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This Article is From Jan 05, 2024

Ravindra Bhawan: 1962 में ऐसे हुआ था रवींद्र भवन का निर्माण, जानिए रोचक कहानी

देश भर में कई जगह मुख्य रूप से राजधानियों और बड़े बड़े शहरों में रवींद्र भवन बनाने की योजना आयी थी. उसी योजना के अंतर्गत भोपाल में 1962 में रवींद्र भवन की स्थापना की गई थी.

Ravindra Bhawan: 1962 में ऐसे हुआ था रवींद्र भवन का निर्माण, जानिए रोचक कहानी

Ravindra Bhawan: भोपाल भ्रमण करने के लिए बहुत सारे ऐसे स्थान हैं जो काफी रोचक और दिलचस्प है, जिन्हें आपको जरूर देखना चाहिए. उन्हीं में से एक है भोपाल का रवींद्र भवन (Ravindra Bhawan). हस्तशिल्प मेले, आर्टिस्टों और रंगकर्मियों से मिलने-जुलने और उनकी कला को देखने का स्थान रवींद्र भवन है. रवींद्र भवन भोपाल शहर (Bhopal Places) की सांस्कृतिक धड़कन का प्रतीक माना जाता है. ऐसे में आइए जानते हैं कि भोपाल के रवींद्र भवन का निर्माण कैसे हुआ? 

भोपाल का रवींद्र भवन की सांस्कृतिक कलाकृतियों और कलाकारों को अपनी कला का प्रदर्शन करने के लिए यहां भेजा जाता है. सप्ताह के अंत में लोग यहां एन्जॉय करने के लिए आते हैं. यहां आने वाले दर्शकों का कहना है कि वे सुबह से यदि यहां आते हैं और कब शाम हो जाती है... पता भी नहीं चलता है. ये रवींद्र भवन बेहद रोचक है. 

1962 में रवींद्र भवन की थी स्थापना

देश भर में कई जगह मुख्य रूप से राजधानियों और बड़े बड़े शहरों में रवींद्र भवन बनाने की योजना आई  थी. उसी योजना के अंतर्गत भोपाल में 1962 में रवींद्र भवन की स्थापना की गई थी. उस समय प्रोफेसर हुमायूं कबीर केंद्रीय शिक्षा मंत्री थे, जिन्होंने इस भवन का शिलान्यास किया था. तब मध्य प्रदेश में उस तरह का कोई और दूसरा हॉल नहीं था और उस समय जो रवींद्र भवन की पहचान बनी वो आज भी कायम है.

भवन में बैठ सकते हैं 1500 लोग

भोपाल के रवींद्र भवन में सैकड़ों की संख्या में लोग पहुंचते हैं. भोपाल की सांस्कृतिक धरोहर कहे जाने वाले इस भवन में बदस्तूर सांस्कृतिक कार्यक्रमों की शृंखला जारी है. इस भवन में 1500 लोगों को एक साथ बैठने की कैपेसिटी है. वही पुराने रवींद्र भवन में 550 लोग बैठ सकतेहैं.

रवींद्र भवन का उद्देश्य

रवींद्र भवन का उद्देश्य कला संस्कृति का व्यापक प्रचार-प्रसार करना है. कलाकारों को अपनी कला का प्रदर्शन करने के लिए एक मंच मिले उन्हें पूरा अवसर मिले कि वे अपनी कला को जन-जन तक पहुंचाएं, रवींद्र भवन की पहचान अब तक कामयाब है.

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