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Jallikattu Festival: मदुरै में जल्लीकट्टू उत्सव शुरू, जानिए क्या है 2500 साल पुराना त्योहार?

Jallikattu Festival in Tamil Nadu: जल्लीकट्टू तमिलनाडु में पोंगल के त्योहार के दौरान मनाया जाता है. यह खेल लगभग 2500 साल पहले शुरू हुआ था. इसे तमिल संस्कृति में गर्व का प्रतीक माना जाता है. वहीं, अगर इसके शाब्दिक अर्थ की बात करें, तो "जल्ली" का अर्थ है सिक्के और "कट्टू" का मतलब है सांड के सींग.

Jallikattu Festival: मदुरै में जल्लीकट्टू उत्सव शुरू, जानिए क्या है 2500 साल पुराना त्योहार?
Jallikattu Bull Festival: जल्लीकट्टू

Jallikattu Bull Festival 2025: मदुरै के अलंगनल्लूर में जल्लीकट्टू (Jallikattu ) की शुरुआत गुरुवार को धूमधाम से हुई. इस कार्यक्रम को और रोमांचक बनाने के लिए ढोल वादक पारंपरिक तमिल संगीत (Tamil Music) बजा रहे हैं, जिसमें "पराई" ढोल की धुन भी शामिल है. डिप्टी सीएम उदयनिधि स्टालिन (Udhayanidhi Stalin) ने दौड़ को हरी झंडी दिखाई. इस आयोजन में बड़ी संख्या में दर्शक पहुंचने की उम्मीद है, जिसके चलते पुलिस सुरक्षा कड़ी कर दी गई है. कार्यक्रम की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए विशेष इंतजाम किए गए हैं. कार्यक्रम में तमिलनाडु के उपमुख्यमंत्री उदयनिधि स्टालिन और थेनी के सांसद थंगा तमिलसेल्वन सहित कई प्रमुख व्यक्ति भी भाग ले रहे हैं. कार्यक्रम की शुरुआत पारंपरिक शपथ ग्रहण समारोह से हुई, जिसमें मंत्री मूर्ति और मदुरै जिला कलेक्टर संगीता ने भाग लिया. जल्लीकट्टू समिति के सदस्य, सांडों को काबू करने वाले और स्थानीय लोग भी इसमें शामिल हुए.

क्या है परंपरा?

जल्लीकट्टू हर साल पारंपरिक शपथ ग्रहण के बाद शुरू होता है और यह तमिलनाडु की सांस्कृतिक धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. जल्लीकट्टू तमिलनाडु का एक प्राचीन खेल है, जिसमें सांडों को काबू करने की चुनौती होती है. यह  जल्लीकट्टू बेल्ट के नाम से विख्यात तमिलनाडु के मदुरई, तिरुचिरापल्ली, थेनी, पुदुक्कोट्टई और डिंडीगुल ज़िलों में लोकप्रिय है. जल्लीकट्टू को किसान समुदाय के लिये अपनी शुद्ध नस्ल के सांडों को संरक्षित करने का एक पारंपरिक तरीका माना जाता है. जल्लीकट्टू के लिये इस्तेमाल किये जाने वाले लोकप्रिय देशी मवेशी नस्लों में कंगायम, पुलिकुलम, उमबलाचेरी, बारगुर और मलाई मडु आदि शामिल हैं.

इस खेल की शुरुआत तीन सांडों को छोड़ने से होती है. ये सांड गांव के सबसे बुजुर्ग होते हैं और इन्हें कोई नहीं पकड़ता, क्योंकि इन्हें सम्मानित माना जाता है. इन तीनों सांडों के जाने के बाद मुख्य खेल शुरू होता है, जिसमें अन्य सांडों के सींगों में सिक्कों की थैली बांधकर उन्हें भीड़ में छोड़ा जाता है. इसके बाद जो व्यक्ति किसी सांड के सींग से सिक्कों की थैली को निर्धारित समय के भीतर निकाल लेता है, उसे नियमों के मुताबिक विजयी माना जाता है.

मदुरै में अवनियापुरम जल्लीकट्टू खेल शुरू, जिसमें 659 बैलों का परीक्षण किया गया, 634 को मंजूरी दी गई और 25 को अयोग्य घोषित किया गया. खेल का समापन पुरस्कारों के साथ होगा, जिसमें सर्वश्रेष्ठ बैल के लिए ट्रैक्टर और सर्वश्रेष्ठ बैल को काबू करने वाले के लिए कार शामिल है.

कानूनी अड़चने भी हैं

वर्ष 2011 में  केंद्र सरकार द्वारा बैलों को उन जानवरों की सूची में शामिल किया गया जिनका प्रशिक्षण और प्रदर्शनी प्रतिबंधित है. वर्ष 2014 में सर्वोच्च न्यायालय में वर्ष 2011 की अधिसूचना का हवाला देते हुए एक याचिका दायर की गई थी जिस पर फैसला सुनाते सर्वोच्च न्यायालय ने जल्लीकट्टू पर प्रतिबंध लगा दिया. लेकिन बाद में राज्य सरकार ने इन कार्यक्रमों को वैध कर दिया है, जिसे अदालत में चुनौती दी गई है. 2018 में सर्वोच्च न्यायालय ने जल्लीकट्टू मामले को एक संविधान पीठ के पास भेज दिया, जहां यह मामला अभी लंबित है.

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