
Chaitra Navratri 2025 Day 7 Maa Kalratri Saptami Puja: चैत्र नवरात्रि (Chaitra Navratri) की छह तिथियां बीत चुकी हैं. नवरात्रि (Navratri 2025) के दौरान मां जगत जननी दुर्गा देवी (Durga Maa) के 9 अलग-अलग स्वरूपों या अवतारों का पूजन पूरे विधि-विधान से किया जाता है. चैत्र नवरात्रि में पहले दिन मां शैलपुत्री, दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी, तीसरे दिन मां चंद्रघंटा, चौथे दिन कूष्मांड़ा, पांचवें दिन स्कंदमाता, छठवें दिन कात्यायनी की स्तुति और पूजन करने के बाद सातवें दिन यानी सप्तमी तिथि के दिन मां कालरात्रि (Kalratri Devi) की पूजा-उपासना करनी होती है. यहां पर हम आपको देवी कालरात्रि की पूजा से जुड़ी सभी जानकारी उपलब्ध करा रहे हैं. उनके मंत्र से लेकर पूजा विधि, कथा, भोग और आरती तक सब कुछ यहां आपको बताएंगे.
नवरात्रि की महासप्तमी मां कालरात्रि के पूजन का पावन दिन है। माता की कृपा से उनके सभी भक्तों का जीवन भयमुक्त हो, यही कामना है। मां कालरात्रि की एक स्तुति आप सभी के लिए... pic.twitter.com/L7bzDsFzyX
— Narendra Modi (@narendramodi) October 9, 2024
कालरात्रि का अर्थ क्या है?
कालरात्रि, मां दुर्गा का रौद्र रूप है. इन्हें मां काली या कालिका के नाम से भी जाना जाता है. कालरात्रि नाम का मतलब देवी जो काली रात की तरह हैं. कालरात्रि का शाब्दिक अर्थ है- जो सब को मारने वाले काल की भी रात्रि या विनाशिका हो. मान्यता है कि देवी के इस रूप की आराधना करने से साधक बुरी शक्तियों से दूर रहते हैं और अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता. यह भी माना जाता है कि इनकी पूजा करने से सिद्धियां प्राप्त होती हैं.
मां कालरात्रि की पूजा विधि (Maa Kalratri Pooja Vidhi)
देवी दुर्गा के सातवें स्वरूप मां कालरात्रि की पूजा सुबह और रात्रि दोनों समय की जाती है. साफ और स्वच्छ कपड़े पहन कर पूजा करनी चाहिए. इसके बाद सभी देवताओं की पूजा के बाद मां कालरात्रि की पूजा भी करनी चाहिए. लाल चम्पा के फूलों से मां कालरात्रि प्रसन्न होती हैं. लाल चन्दन, केसर, कुमकुम आदि से माता का तिलक करें. अक्षत चढ़ाएं और माता के सामने सुगंधित धूप और अगरबत्ती आदि भी लगाए. इसके अलावा आप मां कालरात्रि की रुद्राक्ष की माला से मंत्रों का जाप करें. यह भी बहुत फलदायी होता है.
मां कालरात्रि का ध्यान मंत्र (Maa Kalratri Mantra)
महाशक्ति मां दुर्गा का सातवां स्वरूप है कालरात्रि. मां कालरात्रि काल का नाश करने वाली हैं, इसी वजह से इन्हें कालरात्रि कहा जाता है. नवरात्रि के सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा की जाती है.
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी॥
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टक भूषणा।
वर्धन्मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी॥
ॐ कालरात्र्यै नम:
जय त्वं देवि चामुण्डे जय भूतार्ति हारिणि।
जय सार्वगते देवि कालरात्रि नमोस्तुते॥
ॐ ऐं सर्वाप्रशमनं त्रैलोक्यस्या अखिलेश्वरी।
एवमेव त्वथा कार्यस्मद् वैरिविनाशनम् नमो सें ऐं ॐ।।
मां कालरात्रि का भोग (Maa Kalratri Bhog)
ऐसी मान्यता है कि देवी मां कालरात्रि को गुड़ से बनी चीजे बेहद प्रिय हैं. ऐसे में माता के इस स्वरूप को गुड़ से बने भोग-प्रसाद अर्पित करने चाहिए. मां कालरात्रि को प्रसन्न करने के लिए गुड़ का मालपुआ बना सकते हैं. अगर इसका का भोग नहीं सकते हैं तो खीर-पूड़ी या हलवा पूड़ी का भोग तैयार कर सकते हैं.
महत्व (Maa Kalratri Significance)
नवरात्रि के दौरान महा सप्तमी के दिन मां कालरात्रि का पूजन करने से सभी तरह के भय, बाधाएं और नकारात्मकता का नाश होता है. देवी मां सभी प्रकार की बुरी शक्तियों और जीवन की हर कठिनाईयों से अपने भक्तों को मुक्ति दिलाती हैं. ऐसी मान्यता है कि कालरात्रि माता की कृपा से व्यक्ति को अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता और उसे जीवन में साहस, आत्मविश्वास और सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है.
मां कालरात्रि की कथा (Kalratri Mata Katha)
पौराणिक कथा के अनुसार दैत्य असुर शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज ने जब तीनों लोकों में हाहाकार मचा रखा था. तब इससे चिंतित होकर सभी देवगण भगवान शिव जी के पास गए. देवताओं की गुहार सुनकर भोलेनाथ जी ने देवी पार्वती से राक्षसों का वध कर अपने भक्तों की रक्षा करने को कहा. भगवान शिव की बात मानकर पार्वती माता ने दुर्गा का रूप धारण किया और शुंभ-निशुंभ का वध कर दिया. लेकिन जैसे ही दुर्गा मां ने रक्तबीज को मारा उसके शरीर से निकले रक्त से लाखों रक्तबीज उत्पन्न हो गए. इसे देख दुर्गा माता ने अपने तेज से कालरात्रि को उत्पन्न किया. इसके बाद जब देवी दुर्गा ने रक्तबीज को मारा तो उसके शरीर से निकलने वाले रक्त को कालरात्रि ने अपने मुख में भर लिया और सबका गला काटते हुए रक्तबीज का वध कर दिया.
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नवरात्रि की सप्तमी में मां के इन स्वरूप की पूजा और अर्चना की जाती है. इस दिन साधक को अपना चित्त भानु चक्र यानी मध्य ललाट में स्थिर कर साधना करनी चाहिए. भक्तों द्वारा इनकी पूजा के उपरांत उसके सभी दु:ख, संताप माता भगवती हर लेती हैं. मां दुश्मनों का नाश करती हैं तथा मनोवांछित फल प्रदान कर उपासक की रक्षा करती हैं.
माता कालरात्रि की आरती (Maa Kalratri Aarti)
देवी कालरात्रि माता की विशेष कृपा पाने और जीवन में सुख, समृद्धि व शांति के लिए यह आरती अत्यंत महत्वपूर्ण मानी गई है. नवरात्रि के दिनों में महा सप्तमी के दिन मां की यह आरती करने से इंसान को भय व अन्य नकारात्मकता से मुक्ति मिलती है. तो आइए सब मिलकर बोलिए- माता कालरात्रि की जय.
कालरात्रि जय जय महाकाली।
काल के मुंह से बचाने वाली॥
दुष्ट संघारक नाम तुम्हारा।
महाचंडी तेरा अवतारा॥
पृथ्वी और आकाश पे सारा।
महाकाली है तेरा पसारा॥
खड्ग खप्पर रखने वाली।
दुष्टों का लहू चखने वाली॥
कलकत्ता स्थान तुम्हारा।
सब जगह देखूं तेरा नजारा॥
सभी देवता सब नर-नारी।
गावें स्तुति सभी तुम्हारी॥
रक्तदन्ता और अन्नपूर्णा।
कृपा करे तो कोई भी दुःख ना॥
ना कोई चिंता रहे ना बीमारी।
ना कोई गम ना संकट भारी॥
उस पर कभी कष्ट ना आवे।
महाकाली मां जिसे बचावे॥
तू भी भक्त प्रेम से कह।
कालरात्रि माँ तेरी जय॥
आरती करते वक्त विशेष ध्यान इस पर दें कि देवी-देवताओं की 14 बार आरती उतारना है. चार बार उनके चरणों पर से, दो बार नाभि पर से, एक बार मुख पर से और सात बार पूरे शरीर पर से. आरती की बत्तियां 1, 5, 7 यानी विषम संख्या में ही बनाकर आरती करनी चाहिए.
पूजा सामाग्री लिस्ट (Puja Samagri List)
मां दुर्गा की प्रतिमा या फोटो, सिंदूर, केसर, कपूर, धूप, वस्त्र, दर्पण, कंघी, कंगन-चूड़ी, सुगंधित तेल, बंदनवार आम के पत्तों का, पुष्प, दूर्वा, मेंहदी, बिंदी, सुपारी साबुत, हल्दी की गांठ और पिसी हुई हल्दी, पटरा, आसन, चौकी, रोली, मौली, पुष्पहार, बेलपत्र, कमलगट्टा, दीपक, दीपबत्ती, नैवेद्य, मधु, शक्कर, पंचमेवा, जायफल, लाल रंग की गोटेदार चुनरी, लाल रेशमी चूड़ियां आदि.
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