
छत्तीसगढ़ में आदिवासी समाज बड़ी संख्या में मौजूद है. ये समाज न सिर्फ समाज में अहम योगदान दे रहा है बल्कि अपनी परंपराओं को भी शिद्दत से संजोए हुए भी है. ऐसी ही एक परंपरा है माटी पूजा त्योहार की. राज्य के बस्तर जिले में ये त्योहार काफी उत्साह और धूमधाम से मनाया जाता है.
अलग-अलग नाम भी हैं माटी पूजा केबस्तर में माटी पूजा को अलग-अळग नामों से बुलाया जाता है. मसलन- मध्य बस्तर में माटी टी आर और दक्षिण बस्तर में बीजा पांडुम. ज्यादातर ये त्योहार अप्रैल-मई में ही मनाया जाता है. जन मान्यताओं के मुताबिक लोग आने वाले सीज़न के लिए फसलों की पर्याप्त पैदावार प्राप्त करने के अवसर पर धरती मां की पूजा करते हैं. इस क्षेत्र में त्योहार का विशेष महत्व है क्योंकि लोग खेती करके अपना जीवन यापन करते हैं और पूरी तरह से हर साल अपनी फसल की पैदावार पर निर्भर रहते हैं.
देखा जाए तो बस्तर संभाग के कांकेर क्षेत्र के कुछेक गांवों को छोड़ लगभग सभी गांव में माटी पूजा या माटी तिहार मनाया जाता है. माटी तिहार का मतलब मिट्टी की पूजा कर अच्छी फसल के लिए धन्यवाद अदा करना. यह पर्व चैत्र माह में मनाया जाने वाला एक दिवसीय पर्व है. परन्तु अलग-अलग गांवों में अपने मर्जी से अलग-अलग दिन में मनाया जाता है जिसे गांव के गायता, पुजारी एवं समुदाय के सभी लोग मिल कर तय करते हैं.
मूलत: आदिवासियों का त्योहार होने के बावजूद सभी स्थानीय जातियां इस रिवाज जुडे़ हैं. इस पर्व के दिन गांव में माटी से संबंधित किसी प्रकार से कोई भी कार्य नहीं किए जाते हैं. जैसे मिट्टी खोदना, खेतों मे हल चलाना. इतना ही नहीं यदि कोई इस तरह से कार्य करते पाया गया तो समुदाय द्वारा उस व्यक्ति को दंडित भी किया जाता है. पूजा में सहयोग के लिए किसी पर किसी प्रकार की कोई दबाव नहीं होता कुछ पूजा स्थल में ही चंदा लेकर आते हैं. कुछ लोग रुपये पैसे के अलावा चावल, दाल, सब्जी, फल, कांदा, पशु, पक्षी की भेंट देते हैं.
एक-दूसरे को लगाते हैं मिट्टी का लेप
पूजा के शुरुआत में गायता पुजारी द्वारा अपने माटी देवकोट में बुढ़ादेव को फूल, नारियल सुपारी चढ़ा कर माटी की पूजा करता है ताकि पूरे गांव में साल भर सुख शांति बना रहे. इसके बाद लोग एक दूसरे पर मिट्टी का लेप लगाते हैं. शाम को सभी भोजन कर ढ़ोल, मांदर रेला गाकर खुशी मनाते हैं. माटी देव की पूजा के साथ हीं अंचल में खेती किसानी का काम शुरू हो जाता है.