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भारत-फ्रांस ने मिलकर विकसित किया ऐसा एल्गोरिदम, जो आसमान में रोक सकेगा ड्रोनों की भिड़ंत

आईआईटी इंदौर ने फ्रांस के इंस्टीट्यूट माइन्स-टेलीकॉम के साथ मिलकर एक सॉफ्टवेयर आधारित एल्गोरिदम विकसित किया है, जो आकाश में ड्रोन के बड़े समूहों की संभावित भिड़ंत को रोकने में मदद करेगा.

भारत-फ्रांस ने मिलकर विकसित किया ऐसा एल्गोरिदम, जो आसमान में रोक सकेगा ड्रोनों की भिड़ंत

India-France Made Algorithms: इंदौर के भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी, IIT Indore) ने आकाश में ड्रोन के बड़ी तादाद वाले समूहों की संभावित भिड़ंत रोकने के लिए फ्रांस के एक संस्थान के साथ साझा अनुसंधान के तहत सॉफ्टवेयर आधारित एल्गोरिदम विकसित किया है. आईआईटी-इंदौर के एक अधिकारी ने बृहस्पतिवार को यह जानकारी दी.

अधिकारी ने बताया कि आईआईटी-इंदौर और फ्रांस के ‘इंस्टीट्यूट माइन्स-टेलीकॉम (आईएमटी, IMT)' के अनुसंधानकर्ताओं ने यह एल्गोरिदम विकसित किया है. अनुसंधानकर्ताओं में शामिल आईआईटी-इंदौर के कंप्यूटर साइंस और इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर कपिल आहूजा ने बताया कि खास सॉफ्टवेयर पर आधारित इस एल्गोरिदम के जरिए ड्रोन के बड़ी तादाद वाले समूहों की सुरक्षित, सुचारू और पहले से ज्यादा कुशल उड़ानें सुनिश्चित हो सकती हैं.

उन्होंने बताया कि यह एल्गोरिदम आईआईटी -इंदौर और फ्रांस के संस्थान के करीब डेढ़ साल के साझा अनुसंधान के बाद विकसित किया गया है. आहूजा ने बताया कि एल्गोरिदम की नवाचारी तकनीक का इस्तेमाल कृषि, रक्षा और लॉजिस्टिक्स (माल के परिवहन एवं आपूर्ति का काम) सरीखे क्षेत्रों के साथ ही जंगलों में वन्य जीवों की निगरानी और बाढ़, भूकंप एवं सुनामी जैसी प्राकृतिक आपदाओं के वक्त राहत तथा बचाव के कार्यों में किया जा सकता है.

उन्होंने बताया कि नियमित अंतराल पर आकाश में ड्रोन की स्थिति पर नजर रखने वाले ‘सिम्युलेटर' (किसी वास्तविक प्रणाली या स्थिति की नकल करने उपकरण) का उपयोग करते हुए अनुसंधानकर्ताओं ने ड्रोन के प्रक्षेप पथ (आकाश में गतिशील वस्तु का तय किया जाने वाला रास्ता) को बदलने की तकनीक वाला एल्गोरिदम विकसित किया है, ताकि इन मानव रहित विमानों (यूएवी) की संभावित भिड़ंत रोकी जा सके.

आहूजा ने बताया,‘‘उड़ान के दौरान जब दो ड्रोन के आपस में टकराने की संभावना होती है, तो इस तकनीक के जरिये इनमें से एक ड्रोन की स्थिति आकाश में धीरे-धीरे अपने आप बदल जाती है. इससे संभावित हादसा रुक जाता है. यह तकनीक खासकर उन क्षेत्रों के लिए विकसित की गई है जहां बड़ी तादाद में ड्रोन की जरूरत पड़ती है.''

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