
Paddy purchased in Chhattisgarh: धान का कटोरा कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ में न्यूनतम समर्थन मूल्य (Minimum Support Price) पर धान खरीदी तीन हफ्ते पहले यानी 1 नवंबर से ही जारी है. दिलचस्प ये है कि इस बार धान खरीद की रफ्तार सुस्त है. इसके पीछे की बड़ी वजह चुनावों में किए गए वादे हैं. चौंकिए नहीं...बात ये है कि 17 नवंबर को खत्म हुए मतदान के पहले कांग्रेस (Congress) ने 32 सौ रुपये प्रति क्विंटल की दर से धान खरीदने और कर्जमाफी का वादा (promise of loan waiver) किया है वहीं बीजेपी ने 3100 रुपये क्विंटल की दर से खरीदी और 2 साल का बोनस का वादा किया है. ऐसे कई किसान भी सरकार बनने और वादों को पूरा करने के इंतजार में हैं. हालांकि जो किसान समितियों में पहुंच रहे हैं उन्हें वादों के पूरा होने पर पूरा भरोसा है. इसके लिए वे तर्क भई देते हैं कि पिछली सरकार ने जितना देने का वादा किया वो दिया भी.
इस साल प्रदेश में 22 लाख से ज्यादा किसान सहकारी समितियों में धान बेचने के लिए पंजीकृत हैं. पिछले 21 दिनों की बात करें तो अब तक पहुंचे किसानों ने 7.60 लाख टन धान बेचा है.जबकि 31 दिसंबर तक के टाइमलाइन में कुल 130 लाख मीट्रिक टन धान खरीदी का लक्ष्य मौजूदा सरकार ने रखा है.आंकड़े बता रहे हैं कि या तो किसानों का धान अभी तैयार नहीं हुआ है या फिर वे अभी शांत बैठे हैं और सरकार बनने व उनकी घोषणाओं के अमल में आने का इंतजार कर रहे हैं.

बकाया मिलने पर पूरा भरोसा
समतियों में अभी पहुंच रहे किसानों को पूरा भरोसा है कि उन्हें वर्तमान न्यूनतम समर्थन मूल्य 2,224 के अतिरिक्त राजनीतिक दलों की घोषणा के अनुरूप भावी सरकार बकाया राशि जरूर उपलब्ध कराएगी. इस संबंध में मंदिर हसौद धान खरीदी केंद्र में पहुंचे किसान मुकेश निर्मलकर का मानना है कि पिछली बार कांग्रेस सरकार ने 2500 रुपये भुगतान का वादा किया था. उसे पूरा भी किया. इसलिए उनसे संपूर्ण भुगतान की पूरी उम्मीद है.
सरकार भी किसानों पर निर्भर
ऐसा नहीं है कि किसानों को ही सरकार पर निर्भरता है. छत्तीसगढ़ किसानों का प्रदेश है. उनके वोटों को कोई भी राजनीतिक दल छिटकने देना नहीं चाहता. किसानों की नाराजगी यानी सरकारों की चिंता बढ़ना स्वाभाविक है. ऐसे में किसानों को भी सरकार द्वारा वादा पूरा करने पर भरोसा होता है. एनडीटीवी से चर्चा में किसान विनोद कुमार पटेल कुछ यही बात कहते हैं. उनका ये भी कहना है कि कांग्रेस के पक्ष में किसान ज्यादा आशान्वित हैं, क्योंकि पूर्व में उन्होंने 2500 रुपये का वादा पूरा किया था.
उम्मीद से ज्यादा वादे, दिए भी ज्यादा
किसान दिलीप जोशी से लेकर कई अन्य किसानों का ये भी कहना रहा कि वादों का पूरा होना तो छोटी बात है,उन्हें उम्मीद से ज्यादा मिल चुका है.वहीं अब जो मिलने जा रहे हैं वे भी उम्मीद से ज्यादा ही होंगे. बात यहीं आकर खत्म हो रही है कि पिछली बार का वादा पूरा हुआ है तो अब भी पूरा होगा. यानी किसान अब अपने वोटबैंक का न सिर्फ मूल्य जानते हैं, बल्कि उस पर पूरा भरोसा भी करते हैं.उम्मीद है कि सरकार बनने और घोषणाओं के अमल में आने के साथ ही सभी किसानों का धान तैयार होने के बाद समितियों में किसानों की संख्या और बढ़ेगी और न ससर्फ लक्ष्य पूरा होगा बल्कि किसानों की उम्मीदें भी पूरी होंगी.
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