जिले का इकलौता तुंगल ईको पर्यटन स्थल बर्बादी की कगार पर पहुंच गया है. वन विभाग की तरफ से तुंगल बांध को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए करीब डेढ़ करोड़ से भी ज्यादा की राशि खर्च की गई है. इसमें कैंपा और विभागीय की मदद भी ली गई थी... लेकिन वन विभाग की उदासीनता और रख रखाव के अभाव के चलते तुंगल बांध पूरी तरह से बदहाल हो गया है. सुविधाएं नहीं होने के चलते पर्यटकों ने तुंगल बांध से दूरी बना ली है. आज बदहाल और उजड़ चुके तुंगल बांध की सुध लेने वाला कोई नहीं है. तुंगल बांध आज केवल सरकारी पैसे निकालने का ATM बनकर रह गया है.
सुविधाओं के भाव में पर्यटकों का आना-जाना हुआ कम
बस्तर में पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए प्रकृति ने अपना खजाना लुटाया है. नक्सलवाद के नाम से प्रसिद्ध सुकमा जिले में भी पर्यटन की दृष्टि से मनमोहक नजारे हैं, लेकिन सुविधाओं का अभाव होने की वजह से लोग यहां आना नहीं चाहते हैं. तुंगल जलाशय के नाम से प्रसिद्ध बांध कभी क्षेत्र के किसानों के लिए वरदान साबित हुआ करता था. बांध के पानी से किसानों की खेत सिंचाई होती थी. साल 2016 में तत्काल जिला प्रशासन ने तुंगल बांध को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने का फैसला लिया था. सुकमा वन विभाग को इसे विकसित करने की जिम्मेदारी सौंपी गई.
बदहाली की कगार पर सुकमा ज़िले का तुंगल बांध
शुरुआती कुछ सालों तक तुंगल बांध में जिले के अलावा ओडिशा समेत अन्य जिलों के लोगों को आकर्षित करने में सफल रहा. लेकिन धीरे—धीरे वन अफसरों ने तुंगल बांध की ओर ध्यान देना छोड़ दिया. रखरखाव नहीं होने की वजह से तुंगल बांध पूरी तरह से उजड़ गया है. लाखों रुपए खर्च कर बोटिंग सुविधा के नाम पर लाए गए मोटर बोट और पैडल बोट टूट चुके हैं. सुविधाओं के नाम पर तुंगल बांध में आज कुछ नहीं है. चारों तरफ बदबू और गंदगी फैली हुई है. डेढ़ करोड़ से ज्यादा सरकारी राशि यहां खर्च करने के बाद भी तुंगल बांध ना पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हो पाया और ना ही किसानों को सिंचाई सुविधा मिल रही है.
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