Dhan smuggling in Chhattisgarh: छत्तीसगढ़ में धान तस्करी का नेटवर्क अब केवल आर्थिक अपराध नहीं, बल्कि वन्यजीव और वनभूमि पर अतिक्रमण का गंभीर मामला बन गया है. गरियाबंद के अमलीपदर इलाके में संगठित तस्करों ने ओडिशा से अवैध धान खपाने के लिए जंगल के बीचों-बीच 16 किलोमीटर लंबी कच्ची सड़क का निर्माण कर डाला. यह रास्ता सघन वन क्षेत्र से होकर गुजरता है और 6-7 दिनों में बनी इस सड़क पर चार पहिया वाहन दौड़ रहे हैं, जिससे वन विभाग की निगरानी व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं.
वन क्षेत्र में हुई इंजीनियरिंग, विभाग बेखबर
स्पष्ट रूप से यह वन भूमि का अतिक्रमण है. इस दौरान पेड़ों को नुकसान पहुंचाया गया है और वन्यजीवों के आवास को भी बाधित किया गया. सवाल उठता है कि वन विभाग, जिसकी ज़िम्मेदारी जंगल की सुरक्षा करना है, वह इस बड़े पैमाने पर हुए सड़क निर्माण से पूरी तरह अनभिज्ञ कैसे रहा? तस्करों ने न केवल 16 किलोमीटर का रास्ता तैयार किया, बल्कि अट्ठाराह नाम के एक ही नाले को भी 18 बार पार करने लायक बनाया, जो उनकी संगठनात्मक क्षमता और प्रशासनिक निगरानी में बड़ी चूक को दर्शाता है.
करोड़ों के सिंडिकेट... छोटी पड़ गई प्रशासन की कार्रवाई
अमलिपदर तहसीलदार ने स्वीकार किया है कि यह तस्करी एक संगठित सिंडिकेट द्वारा संचालित की जा रही है, जो लगातार रणनीति बदल रहा है. यह सिंडिकेट अब इस नई तस्करी रोड का उपयोग रात के समय कर रहा है. जानकारी के अनुसार, देवभोग इलाके में लगातार कार्रवाई के बाद अब डबरी गांव में धान डंप करने के बाद, रोज रात में लगभग 50 गाड़ियां इस जंगल के रास्ते से छत्तीसगढ़ में प्रवेश कर रही हैं, जो करोड़ों रुपये के अवैध कारोबार का संकेत है.
अब प्रशासन पर दोहरी चुनौती
अमलीपदर के तहसीलदार सुशील कुमार भोई ने कहा है कि तस्करों की नई रणनीति के जवाब में प्रशासन भी नई रणनीति के साथ शिकंजा कसने की तैयारी कर रहा है. लेकिन अब प्रशासन के सामने दोहरी चुनौती है- अवैध धान तस्करी रोकना. इस तस्करी रोड को तत्काल बंद करना और सिंडिकेट के मास्टमाइंड को पकड़ना.
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