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Kakoda ki Kheti: खेखसी की खेती को मिली नई पहचान; बलौदा बाजार के किसानों के लिए ये तकनीक बनी वरदान

Kakoda ki Kheti: खेखसी पोषण और औषधीय गुणों से समृद्ध है. इसमें प्रमुख रूप से पाए जाने वाले तत्व है एंटीऑक्सिडेंट, बीटा कैरोटीन, विटामिन सी, मैग्नीशियम, फॉस्फोरस और पोटाशियम. वहीं स्थानीय व ग्रामीण चिकित्सा प्रणालियों में इसकी पत्तियों का उपयोग बुखार, कंठ के दर्द, सिरदर्द, माइग्रेन में किया जाता है. फल मधुमेह और उच्च रक्तचाप से पीड़ित लोगों के लिए भी लाभकारी बताए जाते हैं. छत्तीसगढ़ के आदिवासी समुदाय पारंपरिक रूप से इसके बीज को छाती के दर्द और अन्य मामूली समस्याओं के उपचार के लिए उपयोग करते आए हैं.

Kakoda ki Kheti: खेखसी की खेती को मिली नई पहचान; बलौदा बाजार के किसानों के लिए ये तकनीक बनी वरदान
Kakoda ki Kheti: खेखसी की खेती को मिली नई पहचान; बलौदा बाजार के किसानों के लिए ये तकनीक बनी वरदान

Bhatapara Agricultural College: दाऊ कल्याण सिंह कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र, भाटापारा में पारंपरिक सब्जी खेखसी (लोकप्रिय नाम काकोड़ा) पर चल रहे शोध ने इसकी वैज्ञानिक खेती और मानकीकृत उत्पादन तकनीक की दिशा में महत्वपूर्ण उपलब्धिययां दी हैं. महाविद्यालय ने आधा एकड़ क्षेत्र में काकोड़ा की व्यावहारिक खेती कर तकनीकों का परीक्षण और मानकीकरण किया है. जिससे आने वाले समय में खेखसी की खेती में बढ़ोतरी दर्ज करने की संभावना जताई जा रही है. महाविद्यालय पौध उत्‍पादन कर रहा है और किसानों तक पहुंचाने के साथ-साथ प्रशिक्षण व सूचना सामग्री भी तैयार कर रहा है. जून—जुलाई के माह को बुवाई हेतु उपयुक्त मानते हुए उस अवधि के लिये व्यवहारिक पद्धतियां विकसित की जा रही हैं.

इंदिरा काकोड़ा-2 प्रजाति पर हो रहा अध्ययन

महाविद्यालय के सहायक प्राध्यापक डॉ. देवेंद्र उपाध्याय इस परियोजना में अनुसंधान कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि कृषि महाविद्यालय भाटापारा के अधिष्ठाता डॉ एचएल सोनबोईर के मार्गदर्शन में इस शोध में बुवाई की तिथि, प्लास्टिक मल्च तकनीक, ड्रिप सिंचाई तथा फर्टिगेशन (fertigation) की मानकीकरण प्रक्रियाएं शामिल हैं. अध्ययन के लिये विशेष रूप से इंदिरा काकोड़ा-2 प्रजाति को चुना गया है. इधर शोध की जानकारी मिलने के बाद आसपास के किसान इस फसल की ओर आकर्षित हुए हैं. महाविद्यालय से अब तक 15–20 किसान पौधे लेकर इसे उत्पादन के लिए लगा चुके हैं. पौधों की मांग इतनी बढ़ गई है कि बलौदा बाजार जिले के अलावा अन्य जिलों और पड़ोसी राज्यों के किसान भी पौध खरीदने संपर्क कर रहे हैं.

एक बार पौधे रोपें — हर साल होगा उत्पादन

काकोड़ा की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसे एक बार लगाने के बाद पौधे कंद बनाकर स्वतः हर साल उगते रहते हैं, इसलिए यह लम्बी अवधि का स्थायी उत्पादन देता है और किसानों की आय स्थायी रूप से बढ़ाने में सहायक हो सकता है. डॉ. देवेंद्र ने कहा कि काकोड़ा के पौधे डायोइशियस (dioecious) होते हैं — यानी नर व मादा अलग-अलग पौध होते हैं. फल उत्पादन के लिए रोपाई के समय 8:1 या 8:2 के अनुपात में रोपना आवश्यक है, अर्थात 8 मादा पौधों के साथ 1 या 2 नर पौधे. यदि दोनों प्रकार न हों तो फल नहीं बनेगा.

पोषण व औषधीय गुण से भरपूर है खेखसी 

खेखसी पोषण और औषधीय गुणों से समृद्ध है. इसमें प्रमुख रूप से पाए जाने वाले तत्व है एंटीऑक्सिडेंट, बीटा कैरोटीन, विटामिन सी, मैग्नीशियम, फॉस्फोरस और पोटाशियम. वहीं स्थानीय व ग्रामीण चिकित्सा प्रणालियों में इसकी पत्तियों का उपयोग बुखार, कंठ के दर्द, सिरदर्द, माइग्रेन में किया जाता है. फल मधुमेह और उच्च रक्तचाप से पीड़ित लोगों के लिए भी लाभकारी बताए जाते हैं. छत्तीसगढ़ के आदिवासी समुदाय पारंपरिक रूप से इसके बीज को छाती के दर्द और अन्य मामूली समस्याओं के उपचार के लिए उपयोग करते आए हैं.

विकसित किस्में व उत्पादन अवधि

कृषि विश्वविद्यालय द्वारा अब तक विकसित किस्मों में इंदिरा काकोड़ा-1, इंदिरा काकोड़ा-2 और छत्तीसगढ़ काकोड़ा-2 शामिल हैं. इधर दाऊ कल्याण कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र भाटापारा का उद्देश्य उत्पादन अवधि बढ़ाकर किसानों को लगभग 6 महीने तक नियमित उत्पाद उपलब्‍ध कराना है — इस पर रिसर्च जारी है.

अधिक से मूल्य व संभावित ज्यादा लाभ

कम व्यावसायिक उत्पादन और जंगल पर निर्भरता के कारण काकोड़ा की कीमतें सामान्यतः उच्च रहती हैं—थोक मंडी में कीमत लगभग 110–130 रुपए प्रति किलो और खुदरा बाजार में 200–250 रुपए प्रति किलो तक मिल जाती है. उच्च मांग और अच्छा मूल्य मिलना इसे किसानों के लिये आर्थिक रूप से आकर्षक विकल्प है. कुल मिलाकर भाटापारा कृषि महाविद्यालय के मानकीकृत उत्पादन तकनीक और पौध उपलब्धता ने खेखसी (काकोड़ा) को किसानों के लिए एक व्यवहारिक, लाभदायक और टिकाऊ फसल के रूप में प्रस्तुत किया है. महाविद्यालय से पौधे लेकर और अध्ययन की मान्य विधियां अपनाकर किसान इस फसल से अपनी आय बढ़ा सकते हैं.

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