
Acharya Vidyasagar Ji Maharaj: दिगंबर जैन के संत शिरोमणि आचार्य प्रवर विद्यासागर महामुनिराज 17 फरवरी यानी शनिवार की रात 2 बजकर 35 मिनट पर छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के डोंगरगढ़ स्थित चंद्रगिरी पर्वत में अंतिम सांस ली. दरअसल, आचार्य विद्यासागर महाराज ने विधिवत सल्लेखना धारण कर ली थी. पूर्ण जागृत अवस्था में ही उन्होंने आचार्य पद का त्याग करते हुए 3 दिन से उपवास और अखंड मौन धारण कर लिया था. विद्यासागर महाराज जैन समाज के प्रमुख संत थे. कुछ महीने पूर्व विधानसभा चुनाव से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डोंगरगढ़ पहुंचकर जैन मुनि विद्यासागर महाराज से मुलाकात कर आशीर्वाद लिया था.
जैन धर्म के प्रमुख आचार्यों में से एक आचार्य विद्यासागर महाराज पिछले कई दिनों से अस्वस्थ चल रहे थे. डोंगरगढ़ के चंद्रगिरी में उन्होंने अंतिम सांसें ली. जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज देवलोक गमन से पहले अन्य संतों से चर्चा करते हुए संघ संबंधी कार्यों से निवृत्ति ले ली थी. इसके साथ ही उन्होंने आचार्य का पद भी त्याग दिया था. महाराज का डोला राजनांदगांव जिले के डोंगरगढ़ के चंद्रगिरी तीर्थ स्थल पर रविवार को दोपहर एक बजे पंचतत्व में विलीन किया जाएगा. इस दौरान बड़ी संख्या में जैन संत और गणमान्य नागरिक मौजूद रहेंगे.
जानिए कौन है आचार्य विद्यासागर महाराज
जैन संत संप्रदाय में सबसे ज्यादा विख्यात संत विद्यासागर महाराज का जन्म 10 अक्टूबर 1946 को विद्याधर के रूप में कर्नाटक के बेलगांव जिले के सदलगा में शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था. उनके पिता का नाम मल्लप्पा था, जो बाद में मुनि मल्लिसागर बने. उनकी माता का नाम श्रीमंती था, जो बाद में आर्यिका समयमति बन गई थी. 22 नवम्बर 1972 में ज्ञानसागर को आचार्य का पद दिया गया था. उनके भाई महावीर, अनंतनाथ और शांतिनाथ ने आचार्य विद्यासागर से दीक्षा ग्रहण की और मुनि योग सागर और मुनि समय सागर, मुनि उत्कृष्ट सागर कहलाए.
इन भाषाओं में थी महारत
आचार्य विद्यासागर संस्कृत, प्राकृत सहित विभिन्न आधुनिक भाषाओं जैसे हिन्दी, मराठी और कन्नड़ में विशेषज्ञ स्तर का ज्ञान रखते थे. उन्होंने हिन्दी और संस्कृत के विशाल मात्रा में रचनाएं भी की हैं. सौ से अधिक शोधार्थियों ने उनके कार्य का मास्टर्स और डॉक्ट्रेट के लिए अध्ययन किया है. उनके कार्य में निरंजना शतक, भावना शतक, परीषह जाया शतक, सुनीति शतक और शरमाना शतक शामिल हैं. उन्होंने काव्य मूक माटी की भी रचना की है. विभिन्न संस्थानों में यह स्नातकोत्तर के हिन्दी पाठ्यक्रम में पढ़ाया जाता है. आचार्य विद्यासागर कई धार्मिक कार्यों में प्रेरणास्रोत रहे हैं.
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