
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट (Chhattisgarh High Court) ने एक तलाक मामले की सुनवाई के दौरान मानसिक क्रूरता (Mental Toughness) को लेकर एक अहम टिप्पणी की है. अदालत ने कहा कि बिना किसी ठोस प्रमाण के किसी व्यक्ति को नपुंसक कहना मानसिक क्रूरता की श्रेणी में आता है और इससे न केवल व्यक्ति के आत्मसम्मान (Self Esteem) को ठेस पहुंचती है, बल्कि उसका मानसिक स्वास्थ्य भी प्रभावित हो सकता है.
यह मामला जांजगीर जिले के निवासी एक याचिकाकर्ता से जुड़ा है, जिसने फैमिली कोर्ट के उस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी, जिसमें उसकी तलाक की याचिका खारिज कर दी गई थी. याचिकाकर्ता का आरोप था कि विवाह के बाद से ही पत्नी का व्यवहार कठोर और अपमानजनक था. सुनवाई के दौरान पत्नी ने पति पर नपुंसकता का आरोप लगाया था, जिसके समर्थन में वह कोई भी वैध चिकित्सा प्रमाण प्रस्तुत नहीं कर सकी.
हाईकोर्ट ने क्या कहा
हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि किसी व्यक्ति की लैंगिक योग्यता पर इस तरह की झूठी और अपमानजनक टिप्पणी न केवल वैवाहिक संबंधों में विश्वास को खत्म करती है, बल्कि यह वैवाहिक जीवन के मूल्यों के खिलाफ भी है. अदालत ने कहा कि इस तरह की झूठी बातों से पति को सामाजिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया, जो तलाक का मजबूत आधार बनता है.
फैमिली कोर्ट का बदला फैसला
इस आधार पर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के निर्णय को त्रुटिपूर्ण बताते हुए खारिज कर दिया और याचिकाकर्ता की तलाक याचिका स्वीकार कर ली. कोर्ट ने यह भी कहा कि वैवाहिक जीवन में सम्मान और गरिमा का होना आवश्यक है और जब यह तत्व खत्म हो जाएं तो विवाहित जीवन को जबरन बनाए रखना न्यायसंगत नहीं होता.
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