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सांसे हो रहीं कम... ये नशा है सेहतमंद! चंदा नहीं, सहयोग से बनाया मुकाम, भगत सिंह हैं इनके रोल माॅडल

Sarthak Prayas: पौधों के रेस्क्यू सुनकर आपको भले ही अजीब लगे, लेकिन ये काम दूजराम बखूबी करते हैं. उनको जहां भी मटके मिलते हैं, जैसे मंदिरों में पूजन के बाद खाली पड़े हुए, वैवाहिक समारोहों में आदि को वे जुटाते हैं. इसके बाद उन्हें जगह-जगह खाली जगहों पर व पौधों के किनारे रख देते हैं. उनमें वे सप्ताह में एक दिन पानी भर देते हैं.

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सांसे हो रहीं कम... ये नशा है सेहतमंद! चंदा नहीं, सहयोग से बनाया मुकाम, भगत सिंह हैं इनके रोल माॅडल

Good Initiative: कहा जाता है कि अगर कोई भी शख्स किसी काम को सच्ची लगन और मेहनत से करे तो उस काम में आई बाधाओं से पार पाया जा सकता है. इसीलिए कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो अपने से ज्यादा समाज और प्रकृति (Nature) के लिए सोचते हैं. उसकी बेहतरी के लिए हर एक चुनौती से पार पा लेते हैं. ऐसे ही एक शख्स हैं छत्तीसगढ़ की न्यायधानी बिलासपुर से लगे गांव सेंदरी के दूजराम भेड़पाल, जो सिर्फ पौधे (Plantation) नहीं लगाते, बल्क‍ि उसके आसपास पूरा एक इकोसिस्टम (Ecosystem) तैयार कर कीटों से लेकर घास तक को बचाने की पहल करते हैं. पौधरोपण भी ऐसा कि 6 साल के भीतर 5000 से ज्यादा पौधे लगा चुके हैं.

आय से ज्यादा बड़ा है जज्बा

बिलासपुर से निकलकर जैसे ही आप रतनपुर-कटघोरा-कोरबा रोड की ओर आगे बढ़ेंगे, महज 5 किलोमीटर की दूरी पड़ता है गांव सेंदरी. इस गांव में एक छोटी सी किराना दुकान है. दुकान की आय ज्यादा नहीं है, लेकिन इतनी है कि इसके मालिक दूजराम अपना घर चलाने के साथ-साथ हरियाली बिछाने के उनके काम में मदद कर देती है. यही नहीं, दुकान उन्हें इतना समय भी दे देती है कि वे अपने घर, परिवार और गांव से आगे बढ़कर प्रकृति के लिए कुछ कर गुजरने में सफल हो जाते हैं.

ऐसे हुई शुरुआत

पौधरोपण कर हरियाली बिछाने का काम वैसे तो आजकल कई लोग कर रहे हैं और समाज व प्रकृति की बेहतरी के लिए ये अच्छी बात भी है. ऐसी ही एक प्रेरणा दूजराम को भी मिली थी करीब 7 साल पहले. वह भी स्वच्छता अभियान के जरिए. फिर उन्होंने कुछ साथियों के साथ मिलकर गांव के मुक्तिधाम के आसपास की सफाई की. इसी दौरान उन्होंने कुछ पौधे लगाए. इस पहल ने उन्हें खुद से प्रेरित किया कि वे इसी तरह कई अन्य जगहों पर पौधे लगाने शुरू किए. धीरे-धीरे यह उनकी जिंदगी का हिस्सा बनता चला गया.

पेड़ लगाने का नशा सा है दूजराम को, कुछ ही वर्षों में 5 हजार पौधे लगा चुके दूजराम भेड़पाल शहीद भगत सिंह को अपना रोल मॉडल मानते हैं. वे सड़क किनारे, नदी किनारे, मुक्तिधाम, स्कूल कैंपस आदि में पौधे लगाकर वहां हरियाली बिछाने का काम करते हैं.

संगठन टूटा तो बना लिया WhatsApp Group

दूजराम बताते हैं कि शुरुआत में वे एक संगठन से जुड़े थे, ज‍िसके सदस्य मिलकर पौधे लगाते थे. उसमें अधिकांश शहर के लोग थे. बाद में कुछ-कुछ बातों को लेकर मनमुटाव शुरू हो गया. फिर संगठन टूट गया. पर खुद नहीं टूटे और पौधे लगाने का काम जारी रखा. इसके बाद उनके साथ गांव के ही साथी सहयोग करने लगे. लेकिन, दूजराम ने कोई संगठन नहीं बनाया, जबकि स्वयंसेवा करने वाले स्वस्फूर्त उनके साथ आते गए. अब बस एक वाट्सएप ग्रुप है, जिसमें उन्हें पौधे लगाने, पौधों की उपलब्धता, संबंधित सामान जुटाने में मदद भी मिल जाती है.

मटकों से बचा रहे हरियाली

पौधा लगाकर हरियाली बिछाने के अलावा प्रकृति का कैसा ध्यान रखते हैं? ये दूजराम की एक और पहल से जाना जा सकता है. उनको जहां भी मटके मिलते हैं, जैसे मंदिरों में पूजन के बाद खाली पड़े हुए, वैवाहिक समारोहों में आदि को वे जुटाते हैं. इसके बाद उन्हें जगह-जगह खाली जगहों पर व पौधों के किनारे रख देते हैं. उनमें वे सप्ताह में एक दिन पानी भर देते हैं. इससे मटकों के नीचे जमीन पर नमी बनी रहती है. ये नमी न सिर्फ पौधों के लिए बल्कि घास तक के लिए मददगार साबित होती है. कुल मिलाकर ये इकोसिस्टम का काम करता है.

बाइक रिक्शा से पौधों का रेस्क्यू

पौधों के रेस्क्यू सुनकर आपको भले ही अजीब लगे, लेकिन ये काम दूजराम बखूबी करते हैं. दरअसल, हमारे आसपास कई जगहों पर कुछ ऐसे पौधे उगा जाते हैं, जो वहां सर्वाइव नहीं कर सकते. या फिर ऐसी जगह, ज‍िसे हटाना जरूरी है, तब इसकी सूचना मिलते ही दूजराम उस पौधे की रेस्क्यू करते हैं और सुरक्षित और अनुकूल जगह पर लगाते हैं. इस काम के लिए उन्होंने एक मोडिफाइड बाइक रिक्शा तैयार कराया है. इससे वे पौधे भी लाते हैं. इसके अलावा एक और गाड़ी भी उनके पास है. दोनों में पर्यावरण का संदेश तो लिखा ही है, साथ ही दूजराम का मोबाइल नंबर भी, ताकि रेस्क्यू व मदद के लिए लोग उनसे संपर्क कर सकें.

चंदा नहीं, सहयोग से काम

अच्छा काम करने वालों को सहयोग करने वालों की भी कमी नहीं है. यही वजह है कि कभी भी दूजराम को अपने काम के लिए चंदा नहीं जुटाना पड़ता. बल्क‍ि उन्हें सहयोग करने वाले कई लोग आगे आते हैं. वन विभाग की नर्सरी का एक स्टाफ उन्हें पौधे प्रदान करते हैं. इसी तरह से ट्री गार्ड आदि की व्यवस्था हो जाती है. सड़े-गले पत्तों व खाद्य पदार्थों से युक्त लेकिन पौधों के लिए पौष्टिकता का काम करने वाला पानी वे खुद तैयार करते हैं.

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