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This Article is From Apr 09, 2024

CG Railways: बिलासपुर रेल मंडल की एक और उपलब्धि, ऑटोमैटिक सिग्नलिंग सिस्टम का हुआ विस्तार

Automatic Signaling System: बिलासपुर में दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे ने ऑटोमैटिक सिग्नलिंग सिस्टम लगाया. इसके बाद इस जोन में ऑटोमैटिक सिग्नलिंग की कुल लंबाई 136.25 किलोमीटर हो गई.

CG Railways: बिलासपुर रेल मंडल की एक और उपलब्धि, ऑटोमैटिक सिग्नलिंग सिस्टम का हुआ विस्तार
Bilaspur Automatic Signaling System

Railways News: छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के बिलासपुर (Bilaspur) जिले में दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे (South East Central Railways) ने ऑटोमैटिक सिग्नलिंग सिस्टम (Automatic Signaling System) में नया कीर्तिमान स्थापित किया है. सुविधाजनक, सुरक्षित और यात्रियों को बेहतर सेवा देने के साथ-साथ क्षमता में वृद्धि के लिए आधुनिक और उन्नत तकनीक को अपनाया जा रहा है. इस साल में अब तक दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे ने ऑटोमैटिक सिग्नलिंग सिस्टम के क्षेत्र में कुल 136.25 किलोमीटर की वृद्धि की है, जो खुद में एक कीर्तिमान बनाने जैसा है. बता दें कि इस खास टेक्नोलॉजी की मदद से रेल दुर्घटनाओं (Rail Accidents) का पहले ही आसानी से पता लगाया जा सकेगा.

ऐसे काम करता है ऑटोमैटिक सिग्नलिंग सिस्टम

अगर किसी पटरी पर ट्रेन पहले से है तो ऑटोमैटिक सिग्नलिंग सिस्टम इसकी जानकारी दूसरे ट्रेन के पायलट को तुरंत ही दे देता है. इससे रेल दुर्घटनाओं को रोक पाना बहुत आसान हो जाता है. अब तक दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे का कुल 460 किलोमीटर का सेक्शन ऑटोमैटिक सिग्नलिंग सिस्टम से लैस हो चुका है. इस ऑटोमेटिक ब्लॉक सिगनलिंग सिस्टम में दो स्टेशनों के बीच निश्चित दूरी पर सिग्नल लगाए जाते हैं. नई व्यवस्था में स्टेशन यार्ड के एडवांस स्टार्टर सिग्नल से आगे लगभग एक से डेढ़ किलोमीटर पर सिग्नल लगाए गए हैं, जिससे सिग्नल की मदद से आसानी से ट्रेनें एक ही ट्रैक पर एक-दूसरे के पीछे चलती रहती हैं.

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ट्रेनों की बढ़ सकेगी संख्या

ऑटोमैटिक सिग्नलिंग सिस्टम की मदद से किसी भी तय रूट पर ट्रेनों की संख्या को बढ़ाया जा सकता है. अगर किसी कारण से आगे वाले सिग्नल में तकनीकी खामी आती है तो पीछे चल रही ट्रेनों को भी सूचना मिल जाती है और जो ट्रेन जहां रहती है, वहीं रुक जाती है. इससे अधिक ट्रेनों को चलाने में मदद मिलती है. प्रमुख जंक्शन स्टेशनों पर ट्रेन के ट्रैफिक को संभालने में भी मदद मिलती है. जहां पहले दो स्टेशनों के बीच केवल एक ट्रेन चल सकती थी, वहां अब ऑटो सिग्नेलिंग की मदद से चार, पांच या छह ट्रेनों को प्रत्येक सेक्शन में चलाया जा सकता है.

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