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This Article is From Nov 08, 2023

CG Election 2023: कभी 'लोकतंत्र के खिलाफ' लड़ने वाली बनी 'लोकतंत्र की रक्षक', पढ़ें सुमित्रा साहू की कहानी

Chhattisgarh Election 2023: सुमित्रा ने आज पहली बार मतदान किया. लोकतंत्र के इस पर्व (Chhattisgarh Election) में शामिल होने को लेकर सुमित्रा उत्साहित थी. उन्होंने कहा, ''यह गर्व का क्षण है, कभी लोकतंत्र के खिलाफ हथियार उठाया अब सुरक्षा बल में शामिल होकर लोकतंत्र की सुरक्षा में तैनात हूं.''

CG Election 2023: कभी 'लोकतंत्र के खिलाफ' लड़ने वाली बनी 'लोकतंत्र की रक्षक', पढ़ें सुमित्रा साहू की कहानी

Chhattisgarh Assembly Election 2023: छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव के पहले चरण (First Phase Election in Chhattisgarh) के मतदान में मंगलवार को नारायणपुर जिले (Narayanpur) के हजारों मतदाताओं के साथ सुमित्रा साहू ने भी मतदान किया. सुमित्रा वह महिला हैं जो कभी लोकतंत्र के खिलाफ लड़ती थी, लेकिन आज वह लोकतंत्र की सुरक्षा में तैनात हैं. अपने मताधिकार का प्रयोग करने वाली हजारों महिलाओं में से एक सुमित्रा भी हैं. सुमित्रा ने नारायणपुर निर्वाचन क्षेत्र (Narayanpur Assembly Seat) में अपना वोट डाला. वह 2018 में नक्सलवाद छोड़कर पुलिस में शामिल हुई हैं.

सुमित्रा ने आज पहली बार मतदान किया. लोकतंत्र के इस पर्व (Chhattisgarh Election) में शामिल होने को लेकर सुमित्रा उत्साहित थी. उन्होंने कहा, ''यह गर्व का क्षण है, कभी लोकतंत्र के खिलाफ हथियार उठाया अब सुरक्षा बल में शामिल होकर लोकतंत्र की सुरक्षा में तैनात हूं.''

2004 में नक्सली संगठन में हुईं थी शामिल

सुमित्रा (34) ने 'पीटीआई-भाषा' को बताया कि वह नारायणपुर में माओवादियों की आमदई एरिया कमेटी में कमांडर के रूप में सक्रिय थी और दिसंबर 2018 में उन्होंने नक्सली संगठन छोड़ दिया. सुमित्रा ने कहा, "मैं जनवरी 2019 में पुलिस बल में शामिल हुई. मुझे खुशी है कि मैंने पहली बार वोट दिया.'' नारायणपुर जिले के कड़ेनार गांव की निवासी सुमित्रा साहू 2004 में माओवादियों की सांस्कृतिक शाखा चेतना नाट्य मंडली के सदस्य के रूप में नक्सलवाद में शामिल हुईं थी. उसे तत्कालीन पूर्वी बस्तर डिवीजन सचिव उर्मिला ने नक्सल आंदोलन में भर्ती किया था.

माओवादी विचारों का प्रचार करती थीं सुमित्रा

नक्सल आंदोलन से जुड़ने के बाद सुमित्रा को संसदीय, विधानसभा और पंचायत चुनावों के दौरान माओवादियों द्वारा किए गए बहिष्कार के आह्वान का प्रचार करने का काम सौंपा जाता था. वह सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से माओवादी विचारों का प्रचार करती थी. बाद में उन्हें माओवादियों की आमदई एरिया कमेटी में कमांडर का पद मिला. सुमित्रा ने बताया, ''अपने छह-सात सहयोगियों के पुलिस के साथ मुठभेड़ में मारे जाने और कड़ेनार गांव में पुलिस शिविर स्थापित होने के बाद दिसंबर 2018 में मैंने नक्सलवाद छोड़ दिया और 2019 में पुलिस में शामिल हो गई. शुरुआत में मैंने गुप्त सैनिक के रूप में काम किया और बाद में आरक्षक के रूप में पदोन्नत हुई.''

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